मैं आज बात करूंगा भारतीय प्रेस परिषद के चेयरमैन पूर्व जस्टिस मारकंडेय काटजू की। मेरी नजर में मारकंडेय काटजू बोले तो समझिए निर्मल बाबा ! जिस तरह से निर्मल बाबा के पास हर समस्या का समाधान है, कुछ इसी तरह का व्यवहार कर रहे हैं आजकल काटजू साहब। हालाकि उनके पास समस्या का कोई समाधान नहीं है, बस एक उंगली जो हर मसले पर करते रहते हैं। पहली नजर में तो यही लगता है कि दोनों प्रचार के भूखे हैं, दोनों को लगता है कि वो बहुत जानकार हैं, दोनों को लगता है कि उनकी बातों को अगर देशवासी माने तो वो तरक्की कर सकते हैं। आपको बता दूं कि दोनों में अंतर भी बहुत मामूली है। जानते हैं क्या ? एक टीवी पर आने के लिए पैसा देता है, दूसरा अपने विवादित बातों से टीवी पर जगह बनाने में कामयाब हो जाता है। ये तो सही बात है दोनों मीडिया में किसी तरह जगह बनाने में कामयाब हो ही जाते हैं। अब निर्मल बाबा की तो ब्रांडिग हो चुकी है, उनके तो चरणों में कोटि कोटि नमन करने के लिए देश भर से लोग पैसा देकर जुटते हैं, पर अभी काटजू साहब के साथ ऐसा नहीं है। उन्हें अभी भी समाज का एक बड़ा तपका समझ नहीं पा रहा है कि आखिर काटजू साहब चाहते क्या हैं ? वो पूर्व जस्टिस रहे हैं, लेकिन आज जब भी किसी चर्चित मामले में सु्प्रीम कोर्ट किसी कोई सजा सुनाती है, तो ये उसके हमदर्द बन जाते हैं। कोर्ट के हर महत्वपूर्ण फैसले पर उन्हें आपत्ति है। चलिए मैं दूसरो से क्यों पूछूं, सीधे उन्हीं से पूछता हूं, काटजू साहब आप ठीक तो हैं ना ?
निर्मल बाबा के समागम को देखता हूं, उनके पास ज्यादातर अपर मीडिल क्लास मरीज आते हैं। अपर मीडिल इसलिए कि उनके पास खाने को रोटी है, पहनने को कपड़े हैं और रहने को मकान भी है। इनका तकनीकि ज्ञान भी ठीक ठाक है, क्योंकि वो समागम की आँनलाइन बुकिंग कराकर आते हैं, ये सब मोबाइल इस्तेमाल करने वाले लोग हैं। इन्हें पता है कि बैंक में पैसा कैसे जमा किया जाता है और कैसे निकाला जा सकता है। इन सबके घरों पर टीवी वगैरह भी है, वरना बाबा के बारे में कैसे जानते। चूंकि अपर मीडिल क्लास के लोग हैं, लिहाजा इनकी समस्याएं भी उसी तरह की हैं। ज्यादातर की समस्या इन्वेस्टमेंट की है, वो समझ नहीं पा रहे हैं कि किस क्षेत्र में दांव लगाएं। ये बताते हैं कि उनका कारोबार पटरी से उतर गया है, बाबा उन्हें बताते हैं कि तुम जलेबी खा रहे हो, ये तो ठीक है, लेकिन शाम की बजाए अब सुबह खाओ, कृपा आनी शुरू हो जाएगी। कई लोग अब बाबा से बीजा की भी बात करते हैं। कहते हैं बाबा अमेरिका का बीजा नहीं मिल रहा है, बाबा पूछते हैं कभी मंदिर मे हलुवे का प्रसाद चढ़ाया, मरीज बताते हैं कि हां चढ़ाया था, बाबा का सवाल आता है कि सूजी का चढ़ाया या आंटे का ? भक्त बोला बाबा मैने सूजी का हलुवा चढ़ाया। बाबा ने गलती पकड़ ली और कहा कि जाओ अब आटे का हलुवा चढ़ाना और थोड़ा हलुवा गरीबों में भी बांट देना। कृपा भी आएगी और बीजा भी मिल जाएगा।
समागम सुनता हूं तो मुझे हैरानी इस बात पर होती है कि यहां तमाम लोग ऐसे भी मिल जाते हैं जिन्हें वाकई बाबा के इलाज से फायदा हुआ है। वो टीवी पर बोलते हैं कि बाबा कल तक वो बिल्कुल सड़क पर थे, पर आज आपके हलुवा, चटनी, समोसे की बदौलत करोडों के मालिक हैं। अब ये अजीबो गरीब समागम भी काफी हाईटैक हो गया है। यहां आप बच्चे का इंजीनियरिंग या मेडिकल कालेज में ही नहीं लोवर केजी या अपर केजी में एडमिशन ना हो रहा हो तो आ सकते हैं, बेटी की शादी नहीं हो रही है तो आ सकते हैं, प्लाट खरीदना है तो भी आइये, बेचना है और बढिया कीमत नहीं मिल रही है तो भी आ सकते हैं, वैष्णो देवी मंदिर जाना है तो ट्रेन का वेटिंग टिकट कन्फर्म कराने के लिए भी आ सकते हैं, आपके पास छोटी गाड़ी है, आप चाहते बड़ी गाड़ी हैं तो इसके लिए भी यहां आ सकते हैं, नौकरी है, लेकिन नौकरी बदलनी है इसका भी इलाज बाबा के पास है। गर्दन, पीठ, कमर, घुटने, एडी इन सबके दर्द का भी इलाज अब यहां होने लगा है। माफ कीजिएगा बाबा के पास अभी सेक्स समस्याओं का इलाज नहीं है, वो इसलिए भी नहीं है कि बाबा के समागम का शो टीवी चैनलों पर दिन में चलता है, इसलिए उसमें इसके इलाज के बारे में बाबा बात नहीं कर सकते।
ओह ! लगता है कि मुझे भी इलाज की जरूरत है। मैं बात करने आया था पूर्व जस्टिस, भारतीय प्रेस परिषद के चेयरमैन मारकंडेय काटजू की और बात करने लगा निर्मल बाबा की। खैर कोई बात नहीं, मुझे पता है कि आप तो मनोरंजन कर रहे हैं, अब मनोरंजन चाहे निर्मल बाबा से हो या काटजू साहब से, बात तो एक ही है। जिस तरह निर्मल बाबा किस समस्या का क्या इलाज बता देगें आप बिल्कुल अनुमान नहीं लगा सकते, उसी तरह काटजू साहब भी गंभीर से गंभीर मसलों पर अपनी क्या राय रख देगें, समझ से परे है। हम सब जानते हैं कि अभिनेता संजय दत्त अपराधी नहीं है, लेकिन खतरनाक प्रतिबंधित शस्त्र उसके पास से बरामद हुआ है। फिर 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के मामले से ये मसला जुड़ा हुआ है। ऐसे में संजय को कैसे बरी किया जा सकता है ? देश में अभी न्याय बचा है ना। संजय दत्त को सजा हुई तो काटजू साहब उसकी पैरवी में आ धमके। राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक को चिट्ठी लिख मारी। इतना ही नहीं इसी मामले की एक अन्य दोषी जैबुनिस्सा काजी को माफी देने की वकालत करने से भी पीछे नहीं रहे। खैर संजय दत्त के मामले में बोलकर काटजू साहब दो तीन दिन मीडिया में जगह बनाने में जरूर कामयाब हो गए।
आप सबको याद होगा काटजू साहब देश के निर्वाचन प्रणाली से खासे नाराज दिखाई देते हैं। एक बार तो उन्होंने तो देश की जनता की तुलना भेड़ बकरी से की और कहाकि यहां की जनता भेड़ और बकरी की तरह वोट करती है। काटजू ने कहा, नब्बे प्रतिशत भारतीय भेड़-बकरियों की तरह मतदान करते हैं। लोग जानवरों के झुंड की तरह बिना सोचे-समझे जाति और धर्म के आधार पर मतदान करते हैं। ऐसे ही भारतीय मतदाताओं के समर्थन के कारण ही कई अपराधी संसद में हैं। काटजू साहब यहीं नहीं रुके, उन्होंने यहां तक कहा कि वह मतदान नहीं करेंगे क्योंकि देश को कुछ ऐसे नेता चला रहे हैं जो अपनी जाति के कारण चुने जाते हैं। यह लोकतंत्र का असली रूप नहीं है। उन्होंने कहा, मैं मतदान नहीं करता क्योंकि मेरा मत निरर्थक है। मतदान जाट, मुस्लिम, यादव या अनुसूचित जाति के नाम पर होता है। काटजू साहब की बातों से कुछ हद तक मैं सहमत भी हूं। उनकी ये चिंता जायज है कि आज संसद और विधानसभा में तमाम आपराधिक छवि के लोग चुनाव जीत कर पहुंच रहे हैं। देश के लिए ये वाकई चिंता का विषय है।
लेकिन जब इस मामले में कहीं से कोई कार्रवाई नहीं होती दिखाई दी तो सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और कहाकि जेल ही नहीं, पुलिस हिरासत में आने वाला व्यक्ति भी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ पाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जो व्यक्ति मतदान करने के लिए अयोग्य है, वह चुनाव लड़ने के योग्य कैसे हो सकता है ? न्यायमूर्ति एके पटनायक और सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने पटना हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए यह व्यवस्था दी है। पीठ ने मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि उन्हें पटना हाईकोर्ट के फैसले में कोई खामी नजर नहीं आती। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पटना हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल 2004 को दिए फैसले में कहा था, 'मत देने का अधिकार "कानूनी अधिकार" है। कानून व्यक्ति को यह अधिकार देता है और कानून इसे ले भी सकता है। अदालत से किसी अपराध में दोषी ठहराया गया व्यक्ति लोकसभा, राज्य विधानसभाओं व अन्य सभी चुनाव से बाहर हो जाता है। जो व्यक्ति पुलिस की कानूनी हिरासत में होगा, वह मतदाता नहीं होगा। कानून अस्थायी रूप से उस व्यक्ति के कहीं भी जाने का अधिकार छीन लेता है। हाईकोर्ट ने आगे कहा, 'उस व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से न हटा हो, फिर भी पुलिस की हिरासत में होने के दौरान उसकी मतदान की योग्यता और मत देने का विशेषाधिकार चला जाता है।' सुप्रीमकोर्ट ने हाई कोर्ट की इस व्यवस्था पर अपनी मुहर लगाते हुए कहा कि जिस व्यक्ति को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 62(5) में मत देने का अधिकार नहीं है और जो मतदाता नहीं हो सकता वह लोकसभा व विधानसभा का चुनाव लड़ने की भी योग्यता नहीं रखता।
मैं व्यक्तिगत रूप से इस फैसले से पूरी तरह सहमत हूं। मुझे लगता है कि राजनीति में सुचिता के लिए कुछ कड़े और ऐतिहासिक फैसले लेने ही होगें। मेरा ये भी मानना है कि हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, वो कानून के दायरे में ही रहकर सुनाया है। इसमें कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया है। पर पूर्व जस्टिस मारकंडेय काटजू भला इस फैसले का स्वागत कैसे कर सकते हैं ? उन्हें लगता है कि उनके अलावा कोई दूसरा जज ऐतिहासिक फैसले करने का अधिकार ही नहीं रखता। अब इस फैसले में उन्हें लग रहा है कि कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया है। इन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सवाल उठाया और कहाकि कोर्ट को किसी कानून में संशोधन का अधिकार नहीं है, ये काम विधायिका का है। काटजू साहब को संसद में बैठे अपराधियों से भी नाराजगी है और उन्हें रोकने के उपायों पर भी ऐतराज है। ये दोनों बातें एक साथ काटजू साहब ही कह सकते हैं।
मैं देखता हूं जो मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से खड़ा होता है और काटजू साहब को लगता है कि इस पर बोलने से वो मीडिया की सुर्खियों में आ सकते हैं तो वे मौका नहीं छोड़ते। अब देखिए उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना और केजरीवाल की लड़ाई को निरर्थक बता दिया। काटजू ने कहा, यह आंदोलन किसी मूर्ख आदमी द्वारा कही गई कहानी की तरह है, जिसका कोई मतलब नहीं निकलता। देश में कोई नैतिक संहिता नहीं है, इसलिए भ्रष्टाचार को पूरी तरह मिटाया ही नहीं जा सकता। वो यहीं नहीं रुके, आगे कहाकि जनलोकपाल हो या लोकपाल विधेयक, यह किसी भी हाल में जनहित में नहीं है। यह महज ब्लैकमेलर बनकर ही रह जायेगा। आंदोलन को लेकर उनकी राय है कि आप 'भारत माता की जय' और 'इंकलाब जिंदाबाद' चिल्लाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष नहीं कर सकते। चिल्लाने से क्या होगा। लोग यहां 10-15 दिनों तक चिल्लाते रहे और फिर अपने घर चले गए। सवाल उठा रहे हैं कि आखिर इससे क्या हुआ ? अब काटजू साहब को कैसे बताया जाए कि कुछ भी हो आज भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में जागरूकता आई है। इस विषय पर कम से कम बहस तो शुरू हो गई है। खैर काटजू साहब को कोई नहीं समझा सकता।
अच्छा जब काटजू साहब सुप्रीम कोर्ट के जज थे, तब उन्हें इस बात की जानकारी नहीं हुई कि भारत की जेलों में तमाम ऐसे कैदी है, जिनके खिलाफ पुलिस ने गलत साक्ष्य दिए हैं। ऐसे ही बड़ी संख्या में लोग कई साल से जेलों में कैद हैं। उस समय काटजू साहब ने इस पर काम क्यों नहीं किया ? वो चाहते तो जज रहने के दौरान कुछ कड़े फैसले ले सकते थे। हो सकता है कि कुछ एनजीओ ठीक ठाक काम कर रहे हों, पर मैं तो इसे एक "धंधा" ही समझता हूं। अब काटजू साहब भी ऐसे ही लोगों को न्याय दिलाने के नाम पर एक एनजीओ " द कोर्ट आँफ लास्ट रिसोर्ट " बनाने की तैयारी कर रहे हैं। कीजिए काम और उद्देश्य तो वाकई बढिया है, लेकिन आपका टेंपरामेंट जो है, उससे ये संगठन कहां तक जाएगा, कहना मुश्किल है। वैसे भी आप जिस लाइन पर चल रहे हैं, उसे देखते हुए तो मैं कह सकता हूं कि एनजीओ के बजाए आप एक राजनीतिक दल बना लीजिए, कामयाब रहेंगे। या फिर थोड़ा इंतजार कीजिए, जिस रास्ते पर आप चल रहे हैं मुझे भरोसा है कि कांग्रेस आपको राज्यसभा आफर कर सकती है।
निर्मल बाबा के समागम को देखता हूं, उनके पास ज्यादातर अपर मीडिल क्लास मरीज आते हैं। अपर मीडिल इसलिए कि उनके पास खाने को रोटी है, पहनने को कपड़े हैं और रहने को मकान भी है। इनका तकनीकि ज्ञान भी ठीक ठाक है, क्योंकि वो समागम की आँनलाइन बुकिंग कराकर आते हैं, ये सब मोबाइल इस्तेमाल करने वाले लोग हैं। इन्हें पता है कि बैंक में पैसा कैसे जमा किया जाता है और कैसे निकाला जा सकता है। इन सबके घरों पर टीवी वगैरह भी है, वरना बाबा के बारे में कैसे जानते। चूंकि अपर मीडिल क्लास के लोग हैं, लिहाजा इनकी समस्याएं भी उसी तरह की हैं। ज्यादातर की समस्या इन्वेस्टमेंट की है, वो समझ नहीं पा रहे हैं कि किस क्षेत्र में दांव लगाएं। ये बताते हैं कि उनका कारोबार पटरी से उतर गया है, बाबा उन्हें बताते हैं कि तुम जलेबी खा रहे हो, ये तो ठीक है, लेकिन शाम की बजाए अब सुबह खाओ, कृपा आनी शुरू हो जाएगी। कई लोग अब बाबा से बीजा की भी बात करते हैं। कहते हैं बाबा अमेरिका का बीजा नहीं मिल रहा है, बाबा पूछते हैं कभी मंदिर मे हलुवे का प्रसाद चढ़ाया, मरीज बताते हैं कि हां चढ़ाया था, बाबा का सवाल आता है कि सूजी का चढ़ाया या आंटे का ? भक्त बोला बाबा मैने सूजी का हलुवा चढ़ाया। बाबा ने गलती पकड़ ली और कहा कि जाओ अब आटे का हलुवा चढ़ाना और थोड़ा हलुवा गरीबों में भी बांट देना। कृपा भी आएगी और बीजा भी मिल जाएगा।
समागम सुनता हूं तो मुझे हैरानी इस बात पर होती है कि यहां तमाम लोग ऐसे भी मिल जाते हैं जिन्हें वाकई बाबा के इलाज से फायदा हुआ है। वो टीवी पर बोलते हैं कि बाबा कल तक वो बिल्कुल सड़क पर थे, पर आज आपके हलुवा, चटनी, समोसे की बदौलत करोडों के मालिक हैं। अब ये अजीबो गरीब समागम भी काफी हाईटैक हो गया है। यहां आप बच्चे का इंजीनियरिंग या मेडिकल कालेज में ही नहीं लोवर केजी या अपर केजी में एडमिशन ना हो रहा हो तो आ सकते हैं, बेटी की शादी नहीं हो रही है तो आ सकते हैं, प्लाट खरीदना है तो भी आइये, बेचना है और बढिया कीमत नहीं मिल रही है तो भी आ सकते हैं, वैष्णो देवी मंदिर जाना है तो ट्रेन का वेटिंग टिकट कन्फर्म कराने के लिए भी आ सकते हैं, आपके पास छोटी गाड़ी है, आप चाहते बड़ी गाड़ी हैं तो इसके लिए भी यहां आ सकते हैं, नौकरी है, लेकिन नौकरी बदलनी है इसका भी इलाज बाबा के पास है। गर्दन, पीठ, कमर, घुटने, एडी इन सबके दर्द का भी इलाज अब यहां होने लगा है। माफ कीजिएगा बाबा के पास अभी सेक्स समस्याओं का इलाज नहीं है, वो इसलिए भी नहीं है कि बाबा के समागम का शो टीवी चैनलों पर दिन में चलता है, इसलिए उसमें इसके इलाज के बारे में बाबा बात नहीं कर सकते।
ओह ! लगता है कि मुझे भी इलाज की जरूरत है। मैं बात करने आया था पूर्व जस्टिस, भारतीय प्रेस परिषद के चेयरमैन मारकंडेय काटजू की और बात करने लगा निर्मल बाबा की। खैर कोई बात नहीं, मुझे पता है कि आप तो मनोरंजन कर रहे हैं, अब मनोरंजन चाहे निर्मल बाबा से हो या काटजू साहब से, बात तो एक ही है। जिस तरह निर्मल बाबा किस समस्या का क्या इलाज बता देगें आप बिल्कुल अनुमान नहीं लगा सकते, उसी तरह काटजू साहब भी गंभीर से गंभीर मसलों पर अपनी क्या राय रख देगें, समझ से परे है। हम सब जानते हैं कि अभिनेता संजय दत्त अपराधी नहीं है, लेकिन खतरनाक प्रतिबंधित शस्त्र उसके पास से बरामद हुआ है। फिर 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के मामले से ये मसला जुड़ा हुआ है। ऐसे में संजय को कैसे बरी किया जा सकता है ? देश में अभी न्याय बचा है ना। संजय दत्त को सजा हुई तो काटजू साहब उसकी पैरवी में आ धमके। राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक को चिट्ठी लिख मारी। इतना ही नहीं इसी मामले की एक अन्य दोषी जैबुनिस्सा काजी को माफी देने की वकालत करने से भी पीछे नहीं रहे। खैर संजय दत्त के मामले में बोलकर काटजू साहब दो तीन दिन मीडिया में जगह बनाने में जरूर कामयाब हो गए।
आप सबको याद होगा काटजू साहब देश के निर्वाचन प्रणाली से खासे नाराज दिखाई देते हैं। एक बार तो उन्होंने तो देश की जनता की तुलना भेड़ बकरी से की और कहाकि यहां की जनता भेड़ और बकरी की तरह वोट करती है। काटजू ने कहा, नब्बे प्रतिशत भारतीय भेड़-बकरियों की तरह मतदान करते हैं। लोग जानवरों के झुंड की तरह बिना सोचे-समझे जाति और धर्म के आधार पर मतदान करते हैं। ऐसे ही भारतीय मतदाताओं के समर्थन के कारण ही कई अपराधी संसद में हैं। काटजू साहब यहीं नहीं रुके, उन्होंने यहां तक कहा कि वह मतदान नहीं करेंगे क्योंकि देश को कुछ ऐसे नेता चला रहे हैं जो अपनी जाति के कारण चुने जाते हैं। यह लोकतंत्र का असली रूप नहीं है। उन्होंने कहा, मैं मतदान नहीं करता क्योंकि मेरा मत निरर्थक है। मतदान जाट, मुस्लिम, यादव या अनुसूचित जाति के नाम पर होता है। काटजू साहब की बातों से कुछ हद तक मैं सहमत भी हूं। उनकी ये चिंता जायज है कि आज संसद और विधानसभा में तमाम आपराधिक छवि के लोग चुनाव जीत कर पहुंच रहे हैं। देश के लिए ये वाकई चिंता का विषय है।
लेकिन जब इस मामले में कहीं से कोई कार्रवाई नहीं होती दिखाई दी तो सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया और कहाकि जेल ही नहीं, पुलिस हिरासत में आने वाला व्यक्ति भी लोकसभा और विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ पाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जो व्यक्ति मतदान करने के लिए अयोग्य है, वह चुनाव लड़ने के योग्य कैसे हो सकता है ? न्यायमूर्ति एके पटनायक और सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की पीठ ने पटना हाई कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए यह व्यवस्था दी है। पीठ ने मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य की याचिकाएं खारिज करते हुए कहा कि उन्हें पटना हाईकोर्ट के फैसले में कोई खामी नजर नहीं आती। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पटना हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल 2004 को दिए फैसले में कहा था, 'मत देने का अधिकार "कानूनी अधिकार" है। कानून व्यक्ति को यह अधिकार देता है और कानून इसे ले भी सकता है। अदालत से किसी अपराध में दोषी ठहराया गया व्यक्ति लोकसभा, राज्य विधानसभाओं व अन्य सभी चुनाव से बाहर हो जाता है। जो व्यक्ति पुलिस की कानूनी हिरासत में होगा, वह मतदाता नहीं होगा। कानून अस्थायी रूप से उस व्यक्ति के कहीं भी जाने का अधिकार छीन लेता है। हाईकोर्ट ने आगे कहा, 'उस व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से न हटा हो, फिर भी पुलिस की हिरासत में होने के दौरान उसकी मतदान की योग्यता और मत देने का विशेषाधिकार चला जाता है।' सुप्रीमकोर्ट ने हाई कोर्ट की इस व्यवस्था पर अपनी मुहर लगाते हुए कहा कि जिस व्यक्ति को जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 62(5) में मत देने का अधिकार नहीं है और जो मतदाता नहीं हो सकता वह लोकसभा व विधानसभा का चुनाव लड़ने की भी योग्यता नहीं रखता।
मैं व्यक्तिगत रूप से इस फैसले से पूरी तरह सहमत हूं। मुझे लगता है कि राजनीति में सुचिता के लिए कुछ कड़े और ऐतिहासिक फैसले लेने ही होगें। मेरा ये भी मानना है कि हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया है, वो कानून के दायरे में ही रहकर सुनाया है। इसमें कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया है। पर पूर्व जस्टिस मारकंडेय काटजू भला इस फैसले का स्वागत कैसे कर सकते हैं ? उन्हें लगता है कि उनके अलावा कोई दूसरा जज ऐतिहासिक फैसले करने का अधिकार ही नहीं रखता। अब इस फैसले में उन्हें लग रहा है कि कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन किया है। इन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर सवाल उठाया और कहाकि कोर्ट को किसी कानून में संशोधन का अधिकार नहीं है, ये काम विधायिका का है। काटजू साहब को संसद में बैठे अपराधियों से भी नाराजगी है और उन्हें रोकने के उपायों पर भी ऐतराज है। ये दोनों बातें एक साथ काटजू साहब ही कह सकते हैं।
मैं देखता हूं जो मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती से खड़ा होता है और काटजू साहब को लगता है कि इस पर बोलने से वो मीडिया की सुर्खियों में आ सकते हैं तो वे मौका नहीं छोड़ते। अब देखिए उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना और केजरीवाल की लड़ाई को निरर्थक बता दिया। काटजू ने कहा, यह आंदोलन किसी मूर्ख आदमी द्वारा कही गई कहानी की तरह है, जिसका कोई मतलब नहीं निकलता। देश में कोई नैतिक संहिता नहीं है, इसलिए भ्रष्टाचार को पूरी तरह मिटाया ही नहीं जा सकता। वो यहीं नहीं रुके, आगे कहाकि जनलोकपाल हो या लोकपाल विधेयक, यह किसी भी हाल में जनहित में नहीं है। यह महज ब्लैकमेलर बनकर ही रह जायेगा। आंदोलन को लेकर उनकी राय है कि आप 'भारत माता की जय' और 'इंकलाब जिंदाबाद' चिल्लाकर भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष नहीं कर सकते। चिल्लाने से क्या होगा। लोग यहां 10-15 दिनों तक चिल्लाते रहे और फिर अपने घर चले गए। सवाल उठा रहे हैं कि आखिर इससे क्या हुआ ? अब काटजू साहब को कैसे बताया जाए कि कुछ भी हो आज भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में जागरूकता आई है। इस विषय पर कम से कम बहस तो शुरू हो गई है। खैर काटजू साहब को कोई नहीं समझा सकता।
अच्छा जब काटजू साहब सुप्रीम कोर्ट के जज थे, तब उन्हें इस बात की जानकारी नहीं हुई कि भारत की जेलों में तमाम ऐसे कैदी है, जिनके खिलाफ पुलिस ने गलत साक्ष्य दिए हैं। ऐसे ही बड़ी संख्या में लोग कई साल से जेलों में कैद हैं। उस समय काटजू साहब ने इस पर काम क्यों नहीं किया ? वो चाहते तो जज रहने के दौरान कुछ कड़े फैसले ले सकते थे। हो सकता है कि कुछ एनजीओ ठीक ठाक काम कर रहे हों, पर मैं तो इसे एक "धंधा" ही समझता हूं। अब काटजू साहब भी ऐसे ही लोगों को न्याय दिलाने के नाम पर एक एनजीओ " द कोर्ट आँफ लास्ट रिसोर्ट " बनाने की तैयारी कर रहे हैं। कीजिए काम और उद्देश्य तो वाकई बढिया है, लेकिन आपका टेंपरामेंट जो है, उससे ये संगठन कहां तक जाएगा, कहना मुश्किल है। वैसे भी आप जिस लाइन पर चल रहे हैं, उसे देखते हुए तो मैं कह सकता हूं कि एनजीओ के बजाए आप एक राजनीतिक दल बना लीजिए, कामयाब रहेंगे। या फिर थोड़ा इंतजार कीजिए, जिस रास्ते पर आप चल रहे हैं मुझे भरोसा है कि कांग्रेस आपको राज्यसभा आफर कर सकती है।
मस्त है भाई-
ReplyDeleteखरी खरी
सादर-
बहुत बहुत आभार भाई जी
Deleteकाटजू साहब मीडिया के आलावे बाकी सब विषय पर बोलते रहते है पर अब उनके कथन को कोई गंभीरता से नहीं लेता
ReplyDeleteसही कहा आपने, उनकी बातें चुटकुला भर रह गई हैं..
Deleteबहुत रोचक और मनोरंजक प्रस्तुति !
ReplyDeletelatest post सुख -दुःख
बहुत बहुत आभार
Deleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कर का मनका डाल कर ... मन का मनका फेर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteहमनें तो काटजू साहब और दिग्विजय सिंह के बयानों पर विचार करना ही छोड़ दिया है क्योंकि दोनों का कोई भरोसा नहीं कि कब कोई हास्यास्पद बात कह दे !
ReplyDeleteहाहाहाहहा, बात तो आपकी भी सही है।
Deleteहा-हा-ह…. बहुत सटीक तुलना की है आपने !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteअच्छा है ना सरकारी तंत्र में कोई तो है जिसको उसके चुटकलों के लिए याद किया जाएगा :)))
ReplyDeleteये बात तो है ...
Deleteबहुत उम्दा,सटीक रोचक पोस्ट,,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अभी भी आशा है,
बहुत बहुत आभार सर ...
Deletebhediya aaya bhediya aaya ...kahne vale katajoo sab ki baato par ab koi dhyan nahi deta ...sateek post ..
ReplyDeleteजी शुक्रिया...
Deleteबेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
सादर...!
बहुत बहुत आभार..
Deleteबहुत सटीक और रोचक पोस्ट,,
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteअब जब कांग्रेस की ही भाषा बोलनी है तो हर समस्या का समाधान तो होगा ही काटजू साहब के पास ... अपने आकाओं को खुश तो करना ही है उन्हें ...
ReplyDeleteबिल्कुल, मुझे तो यही लगता है
Deleteबहुत बहुत आभार
कभी कभी विचार समय के कुछ वर्षों बाद आता है, सन्नाट समीक्षा।
ReplyDeleteआभार प्रवीण जी
Deleteओलख सार्थक है। लेकिन एक विनम्र सलाह है, शायद बुरा नहीं मानेंगे। यदि लेख कुछ छोटे हों तो पढ़ने में रोचकता बनी रहती है। ब्लाग पर छोटे लेख पढ़ने की ही आदत बन जाती है। नहीं तो कुछ ना कुछ तो छूट ही जाता है।
ReplyDeleteइस देश में कई बड़बोले नेता हैं, इनकी फसल लगातार लहलहाती रहनी चाहिए इसलिए अब ये नए पैदा हुए हैं।
आभार..
Deleteजी सही कहा आपने, मैं कोशिश करूंगा कि छोटे में अपनी पूरी बात कह सकूं।
मारकंडेय काटजू और निर्मल बाबा दोनों कुछ भी बोल देते है.. सही कहा अच्छी पोस्ट.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteनिर्मल मनोरंजन हुआ ..चाहे बात जैसी भी हो..
ReplyDeleteहाहाहहा आभार
Deleteसाधुवाद योग्य लाजवाब अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteकाटजू काजू जो खाते थे कैसे जानकारी होती ......
ReplyDeleteजी.. ये तो हमने सोचा ही नहीं था.. हाहाहा
Deleteआभार
पीते हैं गम को आप हसते हुए,
ReplyDeleteदर्द होता है तो आप मुस्काते हैं !
प्यार से कोई दे यदि ज़हर आपको,
आप हसते हुए उसको पी जाते हैं !!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति,आपको मेरी हार्दिक शुभ कामनायें.
बहुत बहुत आभार
Delete