आज ही या यूं कहिए कुछ देर पहले ही कश्मीर से वापस लौटा हूं। मन हुआ आप सबसे बातें करने का तो सबसे पहले ब्लाग ही लिखने बैठ गया। चलिए पहले आपको ईमानदारी से एक बात बता दूं। आप कभी कश्मीर जाना तो दूर वहां जाने की सोचना भी मत ! कश्मीर अब धरती का स्वर्ग बिल्कुल नहीं नहीं रह गया है, ये पूरी तरह नरक बन चुका है, और हां इसे नरक किसी और ने नहीं बल्कि खुद कश्मीरियों ने बनाया है। यहां की खूबसूरती में चार चाँद लगाने वाली डल झील का एक बड़ा हिस्सा गंदा नाला भर रह गया है, पार्कों की खूबसूरती लगभग खत्म हो चुकी है, बिना बर्फ के सोनमर्ग और गुलमर्ग भी बुंदेलखंड के पहाड़ से ज्यादा मायने नहीं रखते, भारी प्रदूषण ने पहलगाम से उसकी प्राकृतिक सुंदरता छीन ली है। रही बात मौसम की तो इन दिनों श्रीनगर में भी चेहरा झुलसा देने वाली धूप और गरमी ने टूरिस्ट का जीना मुहाल कर रखा है। साँरी मैने खुद को टूरिस्ट कह दिया, क्योंकि कश्मीरी हमें टूरिस्ट नहीं बस एक बेवकूफ " कस्टमर " समझते हैं। होटल, रेस्टोरेंट, टैक्सी, घोड़े वाले हमारे ऊपर गिद्ध नजर रख कर बस मौके की तलाश में रहते हैं। बेशर्मी की हद तो ये है कि टाँयलेट के लिए ये 10 रुपये वसूल करते हैं। चलिए हर बात की चर्चा करता हूं, लेकिन एक सप्ताह में मेरा अनुभव रहा है कि कश्मीरी सिर्फ हमें ही नहीं केंद्र की सरकार को भी लूट रहे हैं और कमजोर सरकार ने यहां सेना को होमगार्ड बनाकर रख दिया है।
आइये सबसे पहले आपको डल झील लिए चलते हैं। वैसे तो मैं ही क्या आप में से भी तमाम लोगों ने पहले भी डल झील को ना सिर्फ देखा होगा, बल्कि इसमें शिकारे की सवारी का भी जरूर आनंद लिया होगा। लेकिन पुरानी यादों के साथ अगर आप अब इस झील में जाएंगे तो आपको बहुत निराशा होगी। वजह झील का एक बड़ा हिस्सा नाले की शक्ल ले चुका है। झील में हाउस वोट के भीतर भले ही रोशनी की चकाचौंध आपको शुकून दे, लेकिन जब आप बाहर निकलेंगे तो आपको बहुत तकलीफ होगी, क्योंकि आप देखेंगे कि आपका हाउस वोट झील में नहीं बल्कि गंदे पानी के नाले पर खड़ा है, जिस जगह आपने पूरी रात बिताई है। मैं जब हाउस वोट पर पहुंचा तो अंधेरा होने को था, इसलिए कुछ देख नहीं पाया, लेकिन सुबह बाहर आया तो इतना मन खिन्न हुआ कि उसके बाद मैने इस हाउस वोट पर ब्रेकफास्ट करना भी मुनासिब नहीं समझा। बच्चों की इच्छा पूरी करने के लिए शिकारे पर सवार हुआ और डल झील में कुछ दूर ही गया कि झील के भीतर गंदी घास देखकर निराशा हुई। सोचने लगा कि जिस झील की सुंदरता के चलते ना सिर्फ देश से बल्कि विदेशों से भी बडी संख्या में लोग यहां आते हैं, उसका ये हाल बना दिया गया है। बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है, ये शिकारे वाले तो सैलानियों से मनमानी वसूली करते ही है, ये झील में मौजूद दुकानों पर आपकी मर्जी ना होने के बाद भी ले जाते हैं और दुकानदारों से कश्मीरी भाषा में बात कर हमारी जेब काटने का इंतजाम करते हैं। इतना ही नहीं झील में घूमने के दौरान ये अपने मोबाइल से लगातार ऐसे दुकानदारों को अपने पास बुला लेते हैं, जो आपके शिकारे के साथ अपने शिकारे को लगाकर कुछ खरीदने की जिद्द करते रहते हैं। बताते हैं कि हमें आपको पता भी नहीं चलता है और ये शिकारे वाले हमारी सौदेबाजी कर लेते हैं।
आठ दिन के कश्मीर ट्रिप में मुझे सबसे ज्यादा खराब अनुभव गुलमर्ग में हुआ। अगर आपको पहाड़ों पर बर्फ देखनी है तो लोग गुलमर्ग से गंडोला जाते हैं। गंडोला जाने के लिए अगर आपने पहले से आँन लाइन टिकट बुक कराया है तो ये बिल्कुल ना समझें की आपका गंडोला भ्रमण आसान हो गया है, बल्कि समझ लीजिए कि आपने एक बड़ी मुश्किल को दावत दे दिया है। दरअसल गुलमर्ग से गंडोला जाने के लिए "रोपवे" का इस्तेमाल करना होता है। रोपवे तक जाने के लिए लगभग एक किलोमीटर पैदल चलना होता है। श्रीनगर से जिस टैक्सी से आप गुलमर्ग जाएंगे, वही टैक्सी वाला गुलमर्ग पहुंच कर आपका दुश्मन हो जाता है। वो आपको ये भी नहीं बताएगा कि एक किलोमीटर पैदल किस ओर जाना है। वजह ये कि यहां गाइड वालों और घोड़े वालों से उसका कमीशन तय होता है। अच्छा टैक्सी ड्राईवर आपको ये भी डराता रहता है कि ऊपर हो सकता है कि काफी ठंड हो तो वो लांग बूट और ओवर कोट किराए पर लेने की आप को सलाह भी देता रहता है। सच्चाई ये है कि इस समय वहां एक स्वेटर की भी जरूरत नहीं है, ओवर कोट तो दूर की बात है। अब आप रोपवे का किराया सुनेंगे तो हैरत में पड़ जाएंगे। एक व्यक्ति का किराया 1150 रुपये। अच्छा आँनलाइन टिकट के बाद वहां पहुंच कर आपको बोर्डिंग टिकट लेने में पसीने छूट जाएंगे। काफी लंबी लाइन लगी होगी और बोर्डिंग बनाने में वो आना-कानी करते रहेंगे। यहां होने वाली लूट की जानकारी सब को है, लेकिन सभी खामोश है। मतलब साफ है कि पर्यटकों को लूटने में स्थानीय प्रशासन और सूबे की सरकार दोनों शामिल हैं।
अब इस चित्र को आप ध्यान से देखिए। ये गंडोला में बने एक टाँयलेट का चित्र है। वैसे तो पहाड़ी इलाका है, कई किलोमीटर में फैला है। लोग जहां तहां टाँयलेट के लिए खड़े हो जाते हैं, कोई रोक टोक नहीं है। लेकिन आप में अगर सिविक सेंस है और आप चाहते हैं कि टाँयलेट का इस्तेमाल करना चाहिए तो आपको पता है यहां कितने पैसे चुकाने होंगे। पूरे दस रुपये। कश्मीरियों की इससे ज्यादा बेशर्मी भला क्या हो सकती है ? खाने पीने की तमाम चीजों की मनमानी वसूली तो ये करते ही हैं, जब पूछिए कि कीमत कुछ ज्यादा नहीं है ? एक जवाब कि साहब सब कुछ नीचे से लाना होता है। मैं पूछता हूं कि टाँयलेट के लिए तो मैं ही ऊपर आया हूं, इसके लिए इतने पैसे भला क्यों ? कश्मीर में कोई भी सामान खरींदे तो उस पर लिखी कीमत यानि एमआरपी देखने का कोई मतलब नहीं है। दुकानदार ने जो कह दिया वही सामान की असली कीमत है। इस मामले में ज्यादा बहस की जरूरत नहीं है।
आपको पता ही है कि कश्मीर में दर्जनों पार्क हैं, हालांकि ये पार्क अब अपनी पुरानी पहचान खो चुके हैं। सभी पार्क एक तरह से व्यावसायिक हो गए हैं। अब ना यहां साफ सफाई है और ना ही कोई खास देखरेख का इंतजाम है। हां अब हर पार्क में प्रवेश शुल्क जरूर तय कर दिया गया है। एक नई बात और बताता चलूं। पहलगाम के एक पार्क में हम लोग अंदर घुसे और एक पेड के नीचे बैठ गए। यहां बैठे हुए पांच मिनट भी नहीं बीते कि करीब पांच छह लोग आ गए और कश्मीरी शाल और सलवार शूट वगैरह देखने को कहने लगे। मैने कहाकि इस समय तो हम घूमने आए हैं, अभी मेरी खरीददारी करने में कोई रूचि नहीं है। इसके बाद उसने जो बताया वो सुनकर मैं हैरान रह गया। बोला साहब जब पर्यटक पार्क के अंदर घुसते हैं, उसी वक्त नंबर लग जाता है कि इनके पास कौन जाएगा। सुबह से अब मेरा नंबर आया है, इसलिए कुछ तो आप ले ही लीजिए। उसकी बात सुनकर मुझे हैरानी भी थी और गुस्सा भी। लेकिन मेरे लिए ये नया अनुभव था कि आपको पता भी नहीं और आपकी बिक्री हो रही है। मैं तो चुपचाप उसकी सुनता रहा, इस माहौल में कुछ खरीदने का तो सवाल ही नहीं।
मुझे कश्मीरी युवक किसी दूसरे राज्यों से कहीं ज्यादा लफंगे दिखे। पहलगाम में लिद्दर नदी पर एक अरु प्वाइंट हैं। यहां रोजाना बड़ी संख्या में पर्यटक जमा होते हैं। लेकिन देखा जाता है कि तमाम कश्मीरी युवक यहां सुबह से ही इकट्ठे हो जाते हैं और एक दूसरे पर पानी फैंकते है, इसके अलावा वो एक दूसरे को इस झरने में डुबोने के लिए हुडदंग करते रहते हैं। ऐसे में यहां बाहर से आए पर्यटकों को काफी मुश्किल होती है। कई बार तो इनकी शैतानी इतनी ज्यादा होती है कि इस अरु प्वाइंट पर दो चार मिनट खड़े होना भी मुश्किल हो जाता है। अच्छा इनसे कुछ कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इन्हें रोकने टोकने वाला कोई है ही नहीं। रही बात कश्मीरी पुलिस की, तो उसका यहां रहना ना रहना कोई मायने नहीं रखता। कानून के राज की बहुत बड़ी-बड़ी बातें वहां के मुख्यमंत्री करते हैं। कश्मीरियों की गुंडागिरी का आलम ये है कि एक ही राज्य होने के बाद भी जम्मू की टैक्सी पहलगाम या श्रीनगर में नहीं चल सकती। मैं जम्मू से ही पूरे टूर के लिए टैक्सी करना चाहता था, लेकिन टैक्सी वालों ने बताया कि वहां के युवक हमें वहां टैक्सी नहीं चलाने देते हैं। अच्छा ये कोई कानून नहीं है, बस स्थानीय युवकों की गुंडागिरी है। पुलिस खामोश है।
कश्मीर के विभिन्न इलाकों में जगह-जगह सेना दिखाई देती है। कहने को तो उसके पास सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) कानून है। पर हकीकत ये है कि सेना को सरकार ने होमगार्ड बना दिया है। खुलेआम वहां लोग भारत विरोधी बातें करते हैं, हर आदमी अपनी सुविधा को कानून मानता है और उसे वैसा करने से कोई रोक नहीं सकता। सेना की मौजूदगी इन कश्मीरियों को बहुत खटकती है, वजह ये कि कुछ हद तक इनकी मनमानी पर तो रोक लगी ही है। हर मौसम में यहां बड़ी संख्या में पर्यटक मौजूद होते हैं, लेकिन अलगाववादी ताकतों का यहां इतना भय है कि अगर उन्होंने बंद यानि हड़ताल का ऐलान कर दिया तो फिर किसी की हिम्मत नहीं है कि वो अपनी दुकान खोल ले। हां हड़ताल के बाद चोर दरवाजे से जरूरी सामान आपको मिल तो जाएंगे, लेकिन फिर इसकी कीमत कई गुना ज्यादा हो जाती है। फिर यहां बात बात हड़ताल तो आम बात है।
कश्मीर के विभिन्न इलाकों में आठ दिन बिताने के बाद मैं तो इसी नतीजे पर पहुंचा हूं कि यहां से धारा 370 को तत्काल हटा लिया जाना चाहिए। इससे अलगाववादी ताकतों का एकाधिकार खत्म होगा, हर तपके की वहां पहुंच होगी। इलाके का विकास भी होगा। आपको सुनकर हैरानी होगी कि श्रीनगर जैसे शहर में एक भी माँल नहीं है, कोई अच्छा सिनेमाघर नहीं है। वहां हमेशा सिनेमा की शूटिंग तो होती रहती है, पर वहां के लोग ये पिक्चर देख नहीं पाते। धारा 370 के समाप्त हो जाने से हर क्षेत्र में एक स्वस्थ प्रतियोगिता शुरू होगी, रोजगार के अवसर उपलब्ध होगे, जिससे इलाके का विकास भी होगा। यहां के नौजवानों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ा भी जा सकेगा। लेकिन मुझे लगता नहीं कि ऐसा फैसला कोई कमजोर सरकार ले सकती है। वैसे तो इस मामले में सभी राजनीतिक दलों को एक साथ बैठकर देशहित में कठोर फैसला करना ही होगा, वरना ये कश्मीर की समस्या और बड़ी हो सकती है। वैसे भी कश्मीर में राज्य सरकार की बात करना बेमानी है, जब उसकी कुछ भी चलती ही नहीं, तो उसके होने ना होने का कोई मतलब नहीं है। वहां हर फैसला केंद्र की अनुमति के बैगर लागू नहीं हो सकता। बहरहाल ये राजनीतिक बाते होंगी, लेकिन अगर पर्यटन के हिसाब से बात की जाए तो कश्मीर किसी लिहाज से अब इस काबिल नहीं रह गया है।
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आइये सबसे पहले आपको डल झील लिए चलते हैं। वैसे तो मैं ही क्या आप में से भी तमाम लोगों ने पहले भी डल झील को ना सिर्फ देखा होगा, बल्कि इसमें शिकारे की सवारी का भी जरूर आनंद लिया होगा। लेकिन पुरानी यादों के साथ अगर आप अब इस झील में जाएंगे तो आपको बहुत निराशा होगी। वजह झील का एक बड़ा हिस्सा नाले की शक्ल ले चुका है। झील में हाउस वोट के भीतर भले ही रोशनी की चकाचौंध आपको शुकून दे, लेकिन जब आप बाहर निकलेंगे तो आपको बहुत तकलीफ होगी, क्योंकि आप देखेंगे कि आपका हाउस वोट झील में नहीं बल्कि गंदे पानी के नाले पर खड़ा है, जिस जगह आपने पूरी रात बिताई है। मैं जब हाउस वोट पर पहुंचा तो अंधेरा होने को था, इसलिए कुछ देख नहीं पाया, लेकिन सुबह बाहर आया तो इतना मन खिन्न हुआ कि उसके बाद मैने इस हाउस वोट पर ब्रेकफास्ट करना भी मुनासिब नहीं समझा। बच्चों की इच्छा पूरी करने के लिए शिकारे पर सवार हुआ और डल झील में कुछ दूर ही गया कि झील के भीतर गंदी घास देखकर निराशा हुई। सोचने लगा कि जिस झील की सुंदरता के चलते ना सिर्फ देश से बल्कि विदेशों से भी बडी संख्या में लोग यहां आते हैं, उसका ये हाल बना दिया गया है। बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है, ये शिकारे वाले तो सैलानियों से मनमानी वसूली करते ही है, ये झील में मौजूद दुकानों पर आपकी मर्जी ना होने के बाद भी ले जाते हैं और दुकानदारों से कश्मीरी भाषा में बात कर हमारी जेब काटने का इंतजाम करते हैं। इतना ही नहीं झील में घूमने के दौरान ये अपने मोबाइल से लगातार ऐसे दुकानदारों को अपने पास बुला लेते हैं, जो आपके शिकारे के साथ अपने शिकारे को लगाकर कुछ खरीदने की जिद्द करते रहते हैं। बताते हैं कि हमें आपको पता भी नहीं चलता है और ये शिकारे वाले हमारी सौदेबाजी कर लेते हैं।
अब इस चित्र को आप ध्यान से देखिए। ये गंडोला में बने एक टाँयलेट का चित्र है। वैसे तो पहाड़ी इलाका है, कई किलोमीटर में फैला है। लोग जहां तहां टाँयलेट के लिए खड़े हो जाते हैं, कोई रोक टोक नहीं है। लेकिन आप में अगर सिविक सेंस है और आप चाहते हैं कि टाँयलेट का इस्तेमाल करना चाहिए तो आपको पता है यहां कितने पैसे चुकाने होंगे। पूरे दस रुपये। कश्मीरियों की इससे ज्यादा बेशर्मी भला क्या हो सकती है ? खाने पीने की तमाम चीजों की मनमानी वसूली तो ये करते ही हैं, जब पूछिए कि कीमत कुछ ज्यादा नहीं है ? एक जवाब कि साहब सब कुछ नीचे से लाना होता है। मैं पूछता हूं कि टाँयलेट के लिए तो मैं ही ऊपर आया हूं, इसके लिए इतने पैसे भला क्यों ? कश्मीर में कोई भी सामान खरींदे तो उस पर लिखी कीमत यानि एमआरपी देखने का कोई मतलब नहीं है। दुकानदार ने जो कह दिया वही सामान की असली कीमत है। इस मामले में ज्यादा बहस की जरूरत नहीं है।
आपको पता ही है कि कश्मीर में दर्जनों पार्क हैं, हालांकि ये पार्क अब अपनी पुरानी पहचान खो चुके हैं। सभी पार्क एक तरह से व्यावसायिक हो गए हैं। अब ना यहां साफ सफाई है और ना ही कोई खास देखरेख का इंतजाम है। हां अब हर पार्क में प्रवेश शुल्क जरूर तय कर दिया गया है। एक नई बात और बताता चलूं। पहलगाम के एक पार्क में हम लोग अंदर घुसे और एक पेड के नीचे बैठ गए। यहां बैठे हुए पांच मिनट भी नहीं बीते कि करीब पांच छह लोग आ गए और कश्मीरी शाल और सलवार शूट वगैरह देखने को कहने लगे। मैने कहाकि इस समय तो हम घूमने आए हैं, अभी मेरी खरीददारी करने में कोई रूचि नहीं है। इसके बाद उसने जो बताया वो सुनकर मैं हैरान रह गया। बोला साहब जब पर्यटक पार्क के अंदर घुसते हैं, उसी वक्त नंबर लग जाता है कि इनके पास कौन जाएगा। सुबह से अब मेरा नंबर आया है, इसलिए कुछ तो आप ले ही लीजिए। उसकी बात सुनकर मुझे हैरानी भी थी और गुस्सा भी। लेकिन मेरे लिए ये नया अनुभव था कि आपको पता भी नहीं और आपकी बिक्री हो रही है। मैं तो चुपचाप उसकी सुनता रहा, इस माहौल में कुछ खरीदने का तो सवाल ही नहीं।
मुझे कश्मीरी युवक किसी दूसरे राज्यों से कहीं ज्यादा लफंगे दिखे। पहलगाम में लिद्दर नदी पर एक अरु प्वाइंट हैं। यहां रोजाना बड़ी संख्या में पर्यटक जमा होते हैं। लेकिन देखा जाता है कि तमाम कश्मीरी युवक यहां सुबह से ही इकट्ठे हो जाते हैं और एक दूसरे पर पानी फैंकते है, इसके अलावा वो एक दूसरे को इस झरने में डुबोने के लिए हुडदंग करते रहते हैं। ऐसे में यहां बाहर से आए पर्यटकों को काफी मुश्किल होती है। कई बार तो इनकी शैतानी इतनी ज्यादा होती है कि इस अरु प्वाइंट पर दो चार मिनट खड़े होना भी मुश्किल हो जाता है। अच्छा इनसे कुछ कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि इन्हें रोकने टोकने वाला कोई है ही नहीं। रही बात कश्मीरी पुलिस की, तो उसका यहां रहना ना रहना कोई मायने नहीं रखता। कानून के राज की बहुत बड़ी-बड़ी बातें वहां के मुख्यमंत्री करते हैं। कश्मीरियों की गुंडागिरी का आलम ये है कि एक ही राज्य होने के बाद भी जम्मू की टैक्सी पहलगाम या श्रीनगर में नहीं चल सकती। मैं जम्मू से ही पूरे टूर के लिए टैक्सी करना चाहता था, लेकिन टैक्सी वालों ने बताया कि वहां के युवक हमें वहां टैक्सी नहीं चलाने देते हैं। अच्छा ये कोई कानून नहीं है, बस स्थानीय युवकों की गुंडागिरी है। पुलिस खामोश है।
कश्मीर के विभिन्न इलाकों में जगह-जगह सेना दिखाई देती है। कहने को तो उसके पास सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) कानून है। पर हकीकत ये है कि सेना को सरकार ने होमगार्ड बना दिया है। खुलेआम वहां लोग भारत विरोधी बातें करते हैं, हर आदमी अपनी सुविधा को कानून मानता है और उसे वैसा करने से कोई रोक नहीं सकता। सेना की मौजूदगी इन कश्मीरियों को बहुत खटकती है, वजह ये कि कुछ हद तक इनकी मनमानी पर तो रोक लगी ही है। हर मौसम में यहां बड़ी संख्या में पर्यटक मौजूद होते हैं, लेकिन अलगाववादी ताकतों का यहां इतना भय है कि अगर उन्होंने बंद यानि हड़ताल का ऐलान कर दिया तो फिर किसी की हिम्मत नहीं है कि वो अपनी दुकान खोल ले। हां हड़ताल के बाद चोर दरवाजे से जरूरी सामान आपको मिल तो जाएंगे, लेकिन फिर इसकी कीमत कई गुना ज्यादा हो जाती है। फिर यहां बात बात हड़ताल तो आम बात है।
कश्मीर के विभिन्न इलाकों में आठ दिन बिताने के बाद मैं तो इसी नतीजे पर पहुंचा हूं कि यहां से धारा 370 को तत्काल हटा लिया जाना चाहिए। इससे अलगाववादी ताकतों का एकाधिकार खत्म होगा, हर तपके की वहां पहुंच होगी। इलाके का विकास भी होगा। आपको सुनकर हैरानी होगी कि श्रीनगर जैसे शहर में एक भी माँल नहीं है, कोई अच्छा सिनेमाघर नहीं है। वहां हमेशा सिनेमा की शूटिंग तो होती रहती है, पर वहां के लोग ये पिक्चर देख नहीं पाते। धारा 370 के समाप्त हो जाने से हर क्षेत्र में एक स्वस्थ प्रतियोगिता शुरू होगी, रोजगार के अवसर उपलब्ध होगे, जिससे इलाके का विकास भी होगा। यहां के नौजवानों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ा भी जा सकेगा। लेकिन मुझे लगता नहीं कि ऐसा फैसला कोई कमजोर सरकार ले सकती है। वैसे तो इस मामले में सभी राजनीतिक दलों को एक साथ बैठकर देशहित में कठोर फैसला करना ही होगा, वरना ये कश्मीर की समस्या और बड़ी हो सकती है। वैसे भी कश्मीर में राज्य सरकार की बात करना बेमानी है, जब उसकी कुछ भी चलती ही नहीं, तो उसके होने ना होने का कोई मतलब नहीं है। वहां हर फैसला केंद्र की अनुमति के बैगर लागू नहीं हो सकता। बहरहाल ये राजनीतिक बाते होंगी, लेकिन अगर पर्यटन के हिसाब से बात की जाए तो कश्मीर किसी लिहाज से अब इस काबिल नहीं रह गया है।
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TV स्टेशन का लिंक
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (01-07-2013) को प्रभु सुन लो गुज़ारिश : चर्चा मंच 1293 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार..
Deleteपढ़कर लगता है कि स्थितियाँ बहुत अधिक खराब हैं, अलगाव का जहर हर क्षेत्र में बिखर रहा है।
ReplyDeleteजी सही कहा आपने, हालात तो वाकई खराब है।
Deleteआभार
बेबाकी से रख दिया, बाकी भी बेकार |
ReplyDeleteदेख शिकारे कर रहे, कैसे हमें शिकार |
कैसे हमें शिकार, रेट सबके मनमाने |
बड़ा कमीशन जाल, सेब कश्मीरी खाने |
सड़े-गले एहलाक, नरक देवा रे देवा |
होमगार्ड सरकार, यहाँ पर बिलकुल बेवा ||
क्या बात है रविकर जी,
Deleteबहुत दिनों बाद आपका ऐसा स्नेह मिला..
बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteसभी राजनीतिक दलों को एक साथ बैठकर देशहित में धारा ३७० समाप्त करने का कठोर फैसला करना ही होगा,
ReplyDeleteRECENT POST: ब्लोगिंग के दो वर्ष पूरे,
पूरी तरह सहमत हूं,
Deleteमुझे लगता है कि 370 हटाना ही चाहिए..
मतलब दूर के ढोल सुहावने ...
ReplyDeleteकश्मीर और देश ... दोनों सरकारें मौज कर रही हैं ...
सही कहा आपने कि दूर के ढोल सुहावने...
Deleteआभार
महेंद्र जी , आपनें कश्मीर के बारे में जो हकीकत बयान की है वो बिलकुल सही है ! में आपकी इस बात पूरी तरह सहमत हूँ कि देशहित और कश्मीर के हित में धारा ३७० को तो हटा ही लेना चाहिए !!
ReplyDeleteहां, मेरा तो यही मत है कि 370 बिल्कुल खत्म होना चाहिए,
Deleteसेना के अधिकार में और बढोत्तरी या यूं कहूं कि वहा सैनिक शासन ही सही विकल्प है।
katu saty
ReplyDeleteशुक्रिया ..
Deleteअरे भाई साहब धारा 370 हटाने की बात कहकर क्या आफत मोल ले ली, कोई भी मुंह पर गेरुआ रंग लपेट जाएगा। कश्मीर को इसी दिन रात के लिए तो पाला गया है कि भले उसमें जूं पिस्सू पड़ते रहे लेकिन वो पेट बना रहे, उसका रोना रोते रहें, आतंकी जब चाहे उड़ा दें, सेना पर मानवाधिकार आयोग लगाम कसता रहे। हर कोई कश्मीर से सेना हटाने की वकालत करता है लेकिन कोई ये नहीं बताता कि वहां सेना को तैनात करने की नौबत ही क्यों आई। भोपाल, पटना चंडीगढ़ और हैदराबाद में सेना क्यों नहीं तैनात है। बुद्धिजीवियों को हमेशा डर रहता है कि अगर कश्मीर भी दूसरे राज्यों की तरह हो गया तो उसकी आजादी खत्म हो जाएगी तो इसका मतलब ये निकाला जाना चाहिए कि हम सब गुलाम है। नहीं तो एक बात और हो सकती है कि कश्मीर को हिंदुस्तानी खींच कर कहीं केरल या कर्नाटक ना लेकर चले जाएं। मुझे तो आजतक ये बात समझ में नहीं आई कि बिहार महाराष्ट्र और तमिलनाडु अगर भारत का हिस्सा हैं तो वहां के लोगों को क्या नुकसान है जिससे कश्मीर को बचाने की कोशिश हो रही है। पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteभाई दीपक जी, मैं जो देख कर आया हूं, उससे तो इसी नतीजे पर पहुंचा हूं कि कश्मीर को पूरी तरह सेना के हवाले ही कर दिया जाना चाहिए। वहां राज्य सरकार की दो पैसे की औकात नहीं है।
Deleteअलगाववादी नेताओं के साथ भी सख्ती जरूरी है। वरना कश्मीर को ये बर्बाद कर देंगे।
dhara 370 lagana us samy bhi bevkofi thi aur abhi tak kendra us bevkoofi ki virasat ko sambhale hue hai ..kashmir kabhi swarg tha hi nahi ..
ReplyDelete25 sal pahle jab vaha gayee thi ek kashmiri ne kaha tha " achchha aap hindustan se aaye hai " vo bat aaj bhi shool ban kar chubhati hai ...
behtar hai log vaha na jaye ...
यही हालात रहे तो लोग खुद ही नहीं जाएंगे।
Deleteकश्मीरियों का व्यवहार तो खराब है ही, मौसम भी अब वैसा नहीं रहा
आभार
कश्मीर के अभी के हालत के बारे में अच्छी जानकारी.. महत्वपूर्ण आलेख धन्यवाद !!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रंजना जी
Deletemahatvpurn jankari aur sahi sujhav ke liye aapko badhaai. Kashmir me shiksha ki shtiti bhe behad kharab hai aur uchch shikhsha to bilkul badtar hai. Log Bharat virodhi ban chuke hai yadi jaldi kuchh nahi kiya gaya to sabkuch khatm ho jayega.
ReplyDeleteहां सही बात है, वहां शिक्षा का भी बुरा हाल है।
Deleteलेकिन सबसे पहले राज्य की सोच को बदलना बहुत जरूरी है
Mahatvpurn Jankari aur sahi sujhav ke liye Aapko badhaai. Vaise dhara 370 hatane ke liye jaruri hai ki iska virodh karne valo ko kashmir bheja jaye taki ve dekhe ki yaha bharat virodh kitna badh gaya hai. kasmir jakar hi sach samajh me aa sakta hai. Congress ke netao ko samany parytak bankar jana chahiye tab unhe malum hoga ki vote bank ke lalach me desh ka kitna nuksan kar rahe hai.
ReplyDeletehatane ki baat to dur hai....koi dal dhara 370 ke virodh me bolta tak nahi hai...
ReplyDeleteसही कहा, शुक्रिया
DeleteMaahendra Vermaji Good article. agree with you what you have described. i have also gone through this bad experience before three years in J &K.
ReplyDeleteसही कहा आपने, काफी समय से वहां की हालत खराब है।
Deleteशुक्रिया
कश्मीर के ताज़ा हालात जानकर बहुत दुःख हुआ... देशहित में सरकार और राज्य सरकार को त्वरित उचित कदम उठाने की आवश्यकता है...
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत हूं, केंद्र को जल्द ही पहल करनी चाहिए..
Deleteआभार
आपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteशुक्रिया भाई अरुण जी
DeleteSame experience of mine..i was there in last June..it was first and last
ReplyDeleteआभार..
Deleteमहेन्द्र जी ,
ReplyDeleteकश्मीर घूमने की बहुत बहुत बधाई .अच्छा हुआ जो आपने ये भी बता दिया की कश्मीर अब स्वर्ग नहीं रहा किन्तु ये गलत कहा कि कमजोर सरकार ने सेना को होमगार्ड बना रखा है क्योंकि सही ये है कि कमजोर भारतियों ने सेना को होमगार्ड बना रखा है और ये कमजोरी है भावनाओं की क्योंकि हम इसका मोह छोड़ ही नहीं पा रहे .आभार मुसलमान हिन्दू से कभी अलग नहीं #
आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
आपकी बात भी कुछ हद तक सही है..
Deleteवैसे सरकार वहां बहुत कमजोर साबित होती है..
सब राजनीति है..
sundar safarnama
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार८ /१ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Delete
ReplyDeleteकाश्मीर हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है परन्तु हालत बदल रहा है ----यह निराशाजनक है
latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
जी, बिल्कुल सही कहा आपने..
Deleteबिल्कुल सही स्थिति बताई है आपने, आभार.
ReplyDeleteरामराम.
आभार ताऊ जी
Deleteजिस कश्मीर की कल्पना हमारे भीतर बसी है वह बहुत सुंदर है
ReplyDeleteपर यथार्थ में कुछ अलग है----
भाई जी आपने बेवाक रपट प्रस्तुत की है
वाकई कश्मीर का सच अब यही है
सादर
बहुत बहुत आभार ...
Deleteकाश्मीर की मौजूदा हालत इतनी बिगड़ी हुई है पढकर अफ़सोस हुआ, पर आपकी पोस्ट ने बहुत लोगों को सचेत कर दिया है, आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteहम लोग पिछले वर्ष गर्मियों में कश्मीर गये थे! वो ट्रिप भी 'मेक माई ट्रिप' द्वारा था ! सबकुछ उन्हीं ने ऑर्गनाइज़ कर दिया था! इसलिये टिकेट वगैरह की दिक़्क़त तो नहीं हुई थी!
ReplyDeleteहाँ! कश्मीर के लिए एक बात हम तभी से कहते हैं... 'जब तक ऊपर-ऊपर देखते रहो... स्वर्ग ही स्वर्ग है..जहाँ नीचे देखो... वहाँ... गंदगी ही गंदगी...!' पतली-पतली सड़कें, उसी पर आना-जाना दोनों, उसपर पैदल चलने वाले, मोटर गाड़ियाँ तथा घोड़े...सभी एक साथ...! अगर आप के सामने गाड़ी जा रही हो, आप पैदल हों...और सामने से कोई घोड़े पर चला आ रहा हो... तो आपका रास्ता भगवान ही बना सकता है!
अपने देश की इतनी सुंदर प्राकृतिक धरोहर को ना हम देशवासी संभाल पाए, ना ही सरकार... फिर किसको कोई कहे तो क्या? बहुत दुख हुआ था हम लोगों को ये हाल देखकर! इसीलिए तो हमारा देश तरक़्क़ी नहीं कर पाता...
~सादर!!!
सही कहा आपने,
Deleteपर आपको इसलिए पता नहीं चला क्योंकि आप को पहले ही मेक माई ट्रिप ने चूना लगा दिया था..
लेकिन आज कश्मीर वाकई बहुत बदरंग हो गया है।
कश्मीर के ताजा हालातों के बारे जानकार दुःख हुआ ...
ReplyDeleteआपने विस्तृत जानकारी दी आभार ....!!
बहुत बहुत आभार
Deleteमाई बिग गाइड पर सज गयी 100 वीं पोस्ट, बिना आपके सहयोग के सम्भव नहीं थी, मै आपके सहयोग, आपके समर्थन, आपके साइट आगमन, आपके द्वारा की गयी उत्साह वर्धक टिप्पणीयों, तथा मेरी साधारण पोस्टों व टिप्पणियों को अपने असाधारण ब्लाग पर स्थान देने के लिये आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हॅू और आशा करता हॅू कि आपका सहयोग इसी प्रकार मुझे मिलता रहेगा, एक बार फिर ब्लाग पर आपके पुन आगमन की प्रतीक्षा में - माइ बिग गाइड और मैं
ReplyDeleteशुभकामनाएं
DeleteThank you for a very clear overview of the greedy mentality of Kashmiris and Indians. We have a Khalid Lake in Sharjah which takes in the recycled water of the city and from there it is later released to the sea. The corniche around the lake has been developed and is maintained to perfection. Whenever I go there with my family, we wonder why this can't be developed in India. India is fast becoming a garbage dump and so is the mentality of us Indian citizens.
ReplyDeleteसहमत हूं
Deleteआँखें खोल देने वाला लेख है.
ReplyDeleteलोगों को कश्मीर घूमने जाने से पहले एक बार इसे पढ़ना चाहिए.
बाकि व्यवसायिकता हर जगह छाई हुई है चाहे वह कैसा भी पर्यटन स्थल क्यूँ न हो.
बहुत बहुत आभार ...
Deleteहम नहीं जानते थे कि कश्मीर में इतने बुरा हालात है ....सलाम है आपकी लेखनी को .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
DeleteAn eye opener indeed. Thanks for sharing your experience. In fact this should be shared on various social media platforms and other tourism pages so that people who are planning to visit Kashmir are better prepared about what to expect from this so-called heaven on earth.
ReplyDeleteबिल्कुल, यही बताने की कोशिश की है
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