दोपहर में एक जरूरी मीटिंग निपटाने के बाद दिल्ली से नोएडा आफिस लौट रहा था। कार संसद भवन के सामने से निकल रही थी, आज ना जाने क्यों मेरी निगाह संसद भवन से हट ही नहीं रही थी, जबकि कार को ड्राईवर संसद भवन से राजपथ पर काफी दूर तक ला चुका था। लेकिन मैं पीछे इसी ऐतिहासिक इमारत को देखता रहा। अचानक मुझे ना जाने क्या हुआ, मैने ड्राईवर से कहा कि इंडिया गेट से वापस मुझे फिर संसद भवन आना है। हालाकि ड्राईवर ने मुझे याद दिलाया कि आपको वैसे ही आफिस पहुंचने में देर हो चुकी है, और आप दोबारा संसद भवन जाने को कह रहे हैं। ये बात याद दिलाते हुए ड्राईवर फिर संसद भवन के करीब पहुंच कर कार रोक दी।
आपको बता दूं कि पिछले पांच छह महीनों को छोड़ दें तो इसके पहले कई साल तक ऐसा शायद ही कोई दिन रहा हो, जब हम अपने पत्रकार मित्रों के साथ एक दो घंटे संसद भवन के सामने विजय चौक पर ना बिताते हों। सच तो ये है कि हम सभी पत्रकार साथी सुबह आफिस निकलने के बाद पूरे दिन जहां कहीं से भी कोई रिपोर्ट कर रहे हों, लंच हम सब यहीं विजय चौक पर साथ ही करते रहे हैं। इसलिए ऐसा भी कुछ नहीं कि मैं पहली बार संसद भवन के सामने से गुजर रहा हूं। खैर पांच सात मिनट यहां ख़ड़े रहने के दौरान मैं फिर गाडी में बैठा और आफिस के लिए रवाना हो गया।
वापस लौटते वक्त सोचता रहा आखिर कितने हमले झेलेगी ये पर्लियामेंट। एक बार 13 दिसंबर 2001 को पांच आतंकी सीमापार हथियारों से लेस होकर यहां घुस आए। वो तो इस संसद को लहुलुहान कर देना चाहते थे और यहां एक ऐसी काली इबारत लिखना चाहते थे, जो धब्बा हम जीवन भर ना भुला सकें। लेकिन हमारे बहादुर सिपाहियों ने उन पांचो को मार गिराया और संसद भवन के भीतर भी घुसने नहीं दिया।
आज 10 साल बाद एक बार फिर संसद पर हमला हो रहा है। आप भले कहें कि ये कोई आतंकी हमला नहीं है। लेकिन मित्रों मैं बताऊं ये उससे भी बड़ा और खतरनाक हमला है। इस हमले में किसी एक व्यक्ति या नेता की हत्या करना मकसद नहीं है। बल्कि इनका मकसद संसदीय परंपराओं और मान्यताओं की हत्या करना है। आज तमाम लोग भावनाओं में बहकर शायद उन पांच आतंकियों को ज्यादा खतरनाक कहें तो हथियार के साथ संसद भवन में घुसे थे, लेकिन मैं उनके मुकाबले सिविल सोसाइटी के पांच लोगों को उनसे ज्यादा खतरनाक मानता हूं। बस दुख तो ये है कि ये सीमापार से नहीं आए हैं, हमारे ही भाई है। लोकतांत्रिक व्यवस्था से भली भांति परिचित भी हैं, फिर भी देश के लोकतंत्र को कमजोर और खत्म करने पर आमादा हैं।
आपको ये जानना जरूरी है कि संसद सदस्य पर ये दबाव नहीं बनाया जा सकता कि वो किस बिल का समर्थन करें और किसका नहीं। ये संवैधानिक अधिकार उन्हें बाबा भीमराव अंबेडकर ने दिया है। अगर उन्हें संसद की किसी कार्रवाई के लिए बाध्य किया जाता है तो यह संसद सदस्य के विशेषाधिकार के उलंघन का मामला बनता है। आज अन्ना जो खुद को गांधी कहे जाने पर गर्व महसूस करते हैं, वो कह रहे हैं कि जो सांसद बिल का समर्थन ना करे, उसके घर के बाहर धरना दो। यहां फिर अन्ना के चेले कहेगें कि सांसद भी तो पैसे लेकर सवाल पूछते हैं, उनका क्या होगा। अरे भाई उन्हें कानून सजा देगा ना। दिल्ली पुलिस ने वोट के बदले नोट कांड में राज्यसभा सदस्य अमर सिंह समेत कई और लोगों के खिलाफ कोर्ट मे चार्जशीट दायर किया है ना। हां आप कह सकते हैं कि इन मामलों के निस्तारण की रफ्तार कम है। इसके लिए स्पेशन कोर्ट बनाकर मामलों की सुनवाई जल्दी की जा सकती है। लेकिन आज सांसदो को मजबूर किया जा रहा है कि वो सिविल सोसाइटी के जनलोकपाल बिल का ही समर्थन करें। वरना उनके घर के बाहर हम हंगामा करेंगे, धरना देंगे।
सिविल सोसायटी घमंड में चूर है। उसे लग रहा है कि आज वो किसी भी तरह का फैसला करा सकते हैं। उनकी भाषा बेअंदाजों जैसी है। उन्हें लग रहा था कि अनशन शुरू होते ही सरकार हिल जाएगी। मंच से चिल्लाने लगे कि सरकार से जो बात होगी वो यहीं रामलीला मैदान के मंच पर होगी। हालत ये हुई कि सरकार ने बात करने से ही इनकार कर दिया। इस पर सभी हैसियत में आ गए। सरकार ने ठीक ढंग से बात की तो कहने लगे, सरकार झुक गई। भूखे अन्ना तो इतने बेलगाम हैं कि उन्होंने सरकार को सीधे धमकी दी कि अगर 30 अगस्त तक बिल पास ना करा पाए तो गद्दी छोडकर जाएं। अन्ना की बात पर हंसी आती है। दरअसल अन्ना जी ने तमाम लडाइयां जरूर लडी हैं, लेकिन वो छोटे स्तर की थी। मुंबई में नगर पालिका के खिलाफ, प्रदेश सरकार के मंत्री के खिलाफ, कुछ अफसरों को लेकर धरना दिया, और वो कामयाब भी हुए हैं। लेकिन अन्ना जी अब आपकी लडाई केंद्र से है। खैर इसमें आपकी भी कोई ज्यादा गल्ती नहीं है। आपकी पढाई तीन दर्जे तक हुई है, आपके साथ जो लोग हैं उनके बारे में सबको पता है।
कहा जा रहा है कि एक भुट्टे को पैदा करने के लिए एक दाने को शहीद होना ही पड़ता है। यानि जब एक बीज जमीन में डाला जाता है, तभी एक पूरा भुट्टा पैदा हो सकता है। तो क्या सिविल सोसाइटी अन्ना जी को शहीद होने का दाना समझ रही है। रामलीला मैदान है, यहां लोग कई साल से तरह तरह की लीलाएं देखने के लिए जमा होते हैं। यह कोई शहीद स्थल तो है नहीं। आपकी लीला भी देश देख रहा है। अन्ना जी आप अपने टीम के मुखौटा हैं। आपके साथी तो आपको मुखौटा बनाकर जंतर मंतर की छोटी मोटी लडाई लड़ना चाहते थे, लेकिन भ्रष्टाचार से परेशान लोग आपके साथ खडे हैं।
प्रधानमंत्री सच्चे आदमी हैं, वो आपकी तरह झूठी बात जनता के सामने नहीं कह सकते। वजह उनकी बातों की और पद की एक मर्यादा है। आप कुछ भी कह सकते हैं। बताइये जिस देश का प्रधानमंत्री कह रहा हो कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जो एक दिन में इसे खत्म कर दें। लेकिन अन्ना और टीम जिस तरह से बात कर रही है उससे लगता है कि जनलोकपाल बनते ही भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा।
वैसे सच सिर्फ इतना भर है कि देश में बडी संख्या में सियासी, नौकरशाह और निचले स्तर पर कर्मचारी बेईमान हो गए हैं। इसकी वजह से आम आदमी की मुश्किलें बढ गई हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 121 करोड़ की आबादी को कानून के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। देश में आज किस अपराध के लिए सख्त कानून नहीं है, फिर भी कौन सा अपराध देश में नहीं हो रहा है। मित्रों मुंबई पर हमला करने वाले कसाब को हम सजा नहीं दे पा रहे हैं। संसद पर हमला करने का षडयंत्र करने वाला अफजल गुरू जेल मे वीआईपी सुविधा ले रहा है। और हम चोरों को फांसी देने की बात कर रहे हैं। अन्ना जी सरकार अपराधियों को न्यायालय से मिली सजा पर अमल भर करने लगे, तो लोगों में कानून के प्रति सम्मान और भय पैदा होगा। बडे बडे भ्रष्टाचारी जेल जाने लगें और उनकी संपत्ति जब्त होने लगे, छोटे कर्मचारी तो ऐसे ही रास्ते पर आ जाएंगे।
अन्ना जी प्रधानमंत्री ने आज सर्वदलीय बैठक कर आपकी बातों को उनके सामने रख दिया। सर्वदलीय बैठक ने आपके जनलोकपाल को खारिज कर दिया। लेकिन सभी दलों ने आपके प्रति सम्मान व्यक्त किया है, और सलाह दी है कि आप अनशन खत्म करें। प्लीज अन्ना दादा मैं भी आपकी बातों और तरीके से सहमत नही हूं। आप पहले अनशन खत्म करें, फिर सरकार के साथ बात करके मजबूत बिल बनाने के लिए सरकारी तंत्र के साथ लडाई लडें।
आपको बता दूं कि पिछले पांच छह महीनों को छोड़ दें तो इसके पहले कई साल तक ऐसा शायद ही कोई दिन रहा हो, जब हम अपने पत्रकार मित्रों के साथ एक दो घंटे संसद भवन के सामने विजय चौक पर ना बिताते हों। सच तो ये है कि हम सभी पत्रकार साथी सुबह आफिस निकलने के बाद पूरे दिन जहां कहीं से भी कोई रिपोर्ट कर रहे हों, लंच हम सब यहीं विजय चौक पर साथ ही करते रहे हैं। इसलिए ऐसा भी कुछ नहीं कि मैं पहली बार संसद भवन के सामने से गुजर रहा हूं। खैर पांच सात मिनट यहां ख़ड़े रहने के दौरान मैं फिर गाडी में बैठा और आफिस के लिए रवाना हो गया।
वापस लौटते वक्त सोचता रहा आखिर कितने हमले झेलेगी ये पर्लियामेंट। एक बार 13 दिसंबर 2001 को पांच आतंकी सीमापार हथियारों से लेस होकर यहां घुस आए। वो तो इस संसद को लहुलुहान कर देना चाहते थे और यहां एक ऐसी काली इबारत लिखना चाहते थे, जो धब्बा हम जीवन भर ना भुला सकें। लेकिन हमारे बहादुर सिपाहियों ने उन पांचो को मार गिराया और संसद भवन के भीतर भी घुसने नहीं दिया।
आज 10 साल बाद एक बार फिर संसद पर हमला हो रहा है। आप भले कहें कि ये कोई आतंकी हमला नहीं है। लेकिन मित्रों मैं बताऊं ये उससे भी बड़ा और खतरनाक हमला है। इस हमले में किसी एक व्यक्ति या नेता की हत्या करना मकसद नहीं है। बल्कि इनका मकसद संसदीय परंपराओं और मान्यताओं की हत्या करना है। आज तमाम लोग भावनाओं में बहकर शायद उन पांच आतंकियों को ज्यादा खतरनाक कहें तो हथियार के साथ संसद भवन में घुसे थे, लेकिन मैं उनके मुकाबले सिविल सोसाइटी के पांच लोगों को उनसे ज्यादा खतरनाक मानता हूं। बस दुख तो ये है कि ये सीमापार से नहीं आए हैं, हमारे ही भाई है। लोकतांत्रिक व्यवस्था से भली भांति परिचित भी हैं, फिर भी देश के लोकतंत्र को कमजोर और खत्म करने पर आमादा हैं।
आपको ये जानना जरूरी है कि संसद सदस्य पर ये दबाव नहीं बनाया जा सकता कि वो किस बिल का समर्थन करें और किसका नहीं। ये संवैधानिक अधिकार उन्हें बाबा भीमराव अंबेडकर ने दिया है। अगर उन्हें संसद की किसी कार्रवाई के लिए बाध्य किया जाता है तो यह संसद सदस्य के विशेषाधिकार के उलंघन का मामला बनता है। आज अन्ना जो खुद को गांधी कहे जाने पर गर्व महसूस करते हैं, वो कह रहे हैं कि जो सांसद बिल का समर्थन ना करे, उसके घर के बाहर धरना दो। यहां फिर अन्ना के चेले कहेगें कि सांसद भी तो पैसे लेकर सवाल पूछते हैं, उनका क्या होगा। अरे भाई उन्हें कानून सजा देगा ना। दिल्ली पुलिस ने वोट के बदले नोट कांड में राज्यसभा सदस्य अमर सिंह समेत कई और लोगों के खिलाफ कोर्ट मे चार्जशीट दायर किया है ना। हां आप कह सकते हैं कि इन मामलों के निस्तारण की रफ्तार कम है। इसके लिए स्पेशन कोर्ट बनाकर मामलों की सुनवाई जल्दी की जा सकती है। लेकिन आज सांसदो को मजबूर किया जा रहा है कि वो सिविल सोसाइटी के जनलोकपाल बिल का ही समर्थन करें। वरना उनके घर के बाहर हम हंगामा करेंगे, धरना देंगे।
सिविल सोसायटी घमंड में चूर है। उसे लग रहा है कि आज वो किसी भी तरह का फैसला करा सकते हैं। उनकी भाषा बेअंदाजों जैसी है। उन्हें लग रहा था कि अनशन शुरू होते ही सरकार हिल जाएगी। मंच से चिल्लाने लगे कि सरकार से जो बात होगी वो यहीं रामलीला मैदान के मंच पर होगी। हालत ये हुई कि सरकार ने बात करने से ही इनकार कर दिया। इस पर सभी हैसियत में आ गए। सरकार ने ठीक ढंग से बात की तो कहने लगे, सरकार झुक गई। भूखे अन्ना तो इतने बेलगाम हैं कि उन्होंने सरकार को सीधे धमकी दी कि अगर 30 अगस्त तक बिल पास ना करा पाए तो गद्दी छोडकर जाएं। अन्ना की बात पर हंसी आती है। दरअसल अन्ना जी ने तमाम लडाइयां जरूर लडी हैं, लेकिन वो छोटे स्तर की थी। मुंबई में नगर पालिका के खिलाफ, प्रदेश सरकार के मंत्री के खिलाफ, कुछ अफसरों को लेकर धरना दिया, और वो कामयाब भी हुए हैं। लेकिन अन्ना जी अब आपकी लडाई केंद्र से है। खैर इसमें आपकी भी कोई ज्यादा गल्ती नहीं है। आपकी पढाई तीन दर्जे तक हुई है, आपके साथ जो लोग हैं उनके बारे में सबको पता है।
कहा जा रहा है कि एक भुट्टे को पैदा करने के लिए एक दाने को शहीद होना ही पड़ता है। यानि जब एक बीज जमीन में डाला जाता है, तभी एक पूरा भुट्टा पैदा हो सकता है। तो क्या सिविल सोसाइटी अन्ना जी को शहीद होने का दाना समझ रही है। रामलीला मैदान है, यहां लोग कई साल से तरह तरह की लीलाएं देखने के लिए जमा होते हैं। यह कोई शहीद स्थल तो है नहीं। आपकी लीला भी देश देख रहा है। अन्ना जी आप अपने टीम के मुखौटा हैं। आपके साथी तो आपको मुखौटा बनाकर जंतर मंतर की छोटी मोटी लडाई लड़ना चाहते थे, लेकिन भ्रष्टाचार से परेशान लोग आपके साथ खडे हैं।
प्रधानमंत्री सच्चे आदमी हैं, वो आपकी तरह झूठी बात जनता के सामने नहीं कह सकते। वजह उनकी बातों की और पद की एक मर्यादा है। आप कुछ भी कह सकते हैं। बताइये जिस देश का प्रधानमंत्री कह रहा हो कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए उनके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जो एक दिन में इसे खत्म कर दें। लेकिन अन्ना और टीम जिस तरह से बात कर रही है उससे लगता है कि जनलोकपाल बनते ही भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा।
वैसे सच सिर्फ इतना भर है कि देश में बडी संख्या में सियासी, नौकरशाह और निचले स्तर पर कर्मचारी बेईमान हो गए हैं। इसकी वजह से आम आदमी की मुश्किलें बढ गई हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 121 करोड़ की आबादी को कानून के दायरे में नहीं बांधा जा सकता। देश में आज किस अपराध के लिए सख्त कानून नहीं है, फिर भी कौन सा अपराध देश में नहीं हो रहा है। मित्रों मुंबई पर हमला करने वाले कसाब को हम सजा नहीं दे पा रहे हैं। संसद पर हमला करने का षडयंत्र करने वाला अफजल गुरू जेल मे वीआईपी सुविधा ले रहा है। और हम चोरों को फांसी देने की बात कर रहे हैं। अन्ना जी सरकार अपराधियों को न्यायालय से मिली सजा पर अमल भर करने लगे, तो लोगों में कानून के प्रति सम्मान और भय पैदा होगा। बडे बडे भ्रष्टाचारी जेल जाने लगें और उनकी संपत्ति जब्त होने लगे, छोटे कर्मचारी तो ऐसे ही रास्ते पर आ जाएंगे।
अन्ना जी प्रधानमंत्री ने आज सर्वदलीय बैठक कर आपकी बातों को उनके सामने रख दिया। सर्वदलीय बैठक ने आपके जनलोकपाल को खारिज कर दिया। लेकिन सभी दलों ने आपके प्रति सम्मान व्यक्त किया है, और सलाह दी है कि आप अनशन खत्म करें। प्लीज अन्ना दादा मैं भी आपकी बातों और तरीके से सहमत नही हूं। आप पहले अनशन खत्म करें, फिर सरकार के साथ बात करके मजबूत बिल बनाने के लिए सरकारी तंत्र के साथ लडाई लडें।
आप के द्वारा सही और सच्ची खबर मिल्ती है ..बहुत -बहुत धन्यवाद..
ReplyDeleteyour view is very right .we respect ANNA ji but his way to solve lokpal problem is not right .he must break his fast .
ReplyDeleteमित्रों मुंबई पर हमला करने वाले कसाब को हम सजा नहीं दे पा रहे हैं। संसद पर हमला करने का षडयंत्र करने वाला अफजल गुरू जेल मे वीआईपी सुविधा ले रहा है। और हम चोरों को फांसी देने की बात कर रहे हैं।
ReplyDeleteक्यूँ? क्या आम आदमी सजा देगा कसाब को,अफजल गुरू को ?
संसद यदि अपना दायित्व ठीक से न निभाए तो क्या चारा है?
घोटोले पर घोटाले किन लोगो ने किये हैं,आम आदमी ने?
संसद जितनी आदरणीय है ,उससे ज्यादा जनसाधारण की आवाज भी.
संसद पर जनसाधारण की आवाज को सुनने और समझने का पूर्ण दायित्व है.क्या संसद वास्तव में ऐसा कर पा रही है?
जरा अपने दिल पर हाथ रखकर बताएं.
विचारोत्तेजक रचना.
ReplyDeleteयदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक विचार हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
इस वक़्त देश किन हालातो से गुज़र रहा है ...इस बात को कोई समझने की कोशिश नहीं कर रहा...आपका आलेख सत्यता पर आधारित है ...हम समझ रहे है ...पर अन्ना भगत इस बात को कहां मानेगे ....देर रात किरण बेदी जी का दिया गया ब्यान .......डर है कही फिर से कोई दंगे फसाद की भूमिका तो नहीं तैयार हो रही है ????
ReplyDeleteanu
राकेश जी,
ReplyDeleteदरअसल लग रहा है कि आप बहुत ही भावुक हो गए हैं। इसलिए लेख को समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे हैं। मैने भी यही कहा है कि जिस देश में आतंकवादियों को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी फांसी ना दी जा रही हो, वहां भ्रष्टाचारियों को कौन फांसी दे पाएगा, क्योंकि अन्ना जी भ्रष्ट लोगों को फांसी देने की बात कह रहे हैं।
रही बात सांसदों की, तो सांसदो को हमने और आपने ही संसद में भेजा है। अगर वो गुनाहगार हैं तो हम भी गुनाहगार कम नहीं हैं। क्यों ऐसे लोगों को चुनाव जिताते हैं। ये हमारे ही देश में होता है कि अपराधी जेल में होते हुए चुनाव जीत जाते हैं।
मेरा कहना सिर्फ इतना है कि अगर संसद कमजोर हो गई तो हमारा हाल भी पाकिस्तान जैसा हो जाएगा, जहां लोकतंत्र कमजोर होने के परिणाम देखे जा सकते हैं।
महेंद्र जी,
ReplyDeleteमैं नहीं समझता अन्नाजी किसी भी प्रकार से भी संसद को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं.मजबूरी यह है कि आज चुनाव में खड़ा होना किसी निर्धन के बसकी बात नहीं है.जो धन खर्च करके संसद में जाता है उसका उद्देश्य धन संग्रह का मुख्य बन जाता है, और उद्देश्य गौण हो जाते हैं.जहाँ तक चुनावों का सवाल है ,यदि वोटिंग ५०% भी हो तो अच्छी मानी जाती है,उसमे भी यदि कोई प्रत्याशी १०% से २५% भी अर्जित करले तो उसके जीतने के पूरे आसार बन जाते हैं.बाहुबली पैसा खर्च कर जात -पात,धर्म आदि से बटे समाज में चुन कर आसानी से आ जाते हैं. हम तुम तो वोट देने के बाबजूद हाथ पर हाथ रखकर सहने को मजबूर हैं. ऐसे में एक सशक्त लोकपाल भ्रष्टाचार पर नियंत्रण रखने के लिए यदि अन्ना जी आग्रह करते हैं,तो क्या बुरा करते हैं.
भ्रष्टाचारियों को फांसी की मांग एक डर पैदा करने के लिए है.तात्पर्य तो केवल कड़ी सजा ही से है.आज प्रधानमंत्री जी ने जन लोकपाल के ड्राफ्ट को अन्य ड्राफ्ट्स के साथ संसद में बहस का प्रपोजल दिया है.
मैं समझता हूँ यह अन्ना की कामयाबी है. संसद यदि ईमानदारी और ठीक से काम करे तो किसी को भी क्या आपत्ति हो सकती है.
राकेश जी,
ReplyDeleteआपको क्यों ये लग रहा है कि मैं भ्रष्टाचार का समर्थन कर रहा हूं। मैने बार बार कहा कि अन्नाजी की मांग सही है तरीका गलत है। और ये समझने के लिए जरूरी है कि आप संसद की कार्यप्रणाली केबारे में जानें। संसद मे कोई बिल कैसे पास होता है, और खासतौर पर संविधान संशोधन बिल।
इसके अलावा जिस नेताओं से आपको बिल पास कराना है, उसे ही गाली दे रहै हैं, फिर कैसे संभव है बिल पास कराना। अन्ना की कामयाबी है कि उन्होने देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरुक किया है, इससे ज्यादा कुछ नहीं होने वाला है। मै कोई बात भावनाओं मे बह कर नहीं करता हूं, जो देश की संसदीय व्यवस्था है उसके आधार पर कह रहा हूं।
और हां राकेश संसद की चौखट पर खडे होकर उसे गरियाने से अच्छा है कि खुद इस प्रक्रिया में शामिल होकर व्यवस्था को दुरुस्त करने का काम करें। जैसा की लोकनायक जय प्रकाश ने किया था। उन्होंने इंदिरा गांधी को सिर्फ कोसा ही नहीं, देश में राजनीतिक विकल्प भी दिया।
महेंद्र जी सादर अभिवादन
ReplyDeleteक्या लिखा है आपने सचमुच सत्य को आपने आइना दिखाया है बधाई स्वीकार करें आपके ब्लाग पर जब भी आया हूँ हमेशा ज्ञान की बातें पाया हूँ बिलकुल सही कहा है आपने मैं आपके विचारों का समर्थन करता हूँ
यहाँ भी कभी कभी झांकें और अपना समर्थन प्रदान करें धन्यवाद्
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN
वस्तुतः आर एस एस के लोग सच्चाई जानना और मानना ही नहीं चाहते उन्हें तो अपनी तानाशाही आती दीख रही है।
ReplyDeleteहर चीज़ के दो पहलू होते हैं एक अच्छा एक बुरा;पर अफसोस लोग दूसरे और गंभीर पहलू पर सोचने की बजाय सिर्फ अंधविश्वास के पीछे दौड़ रहे हैं।
ReplyDeleteमैं आपके लेख से पूर्ण रूप से सहमत हूँ।
सादर
सटीक आलेख...
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