मित्रों
काफी दिनों से कुछ ऐसे मुद्दों पर आप लोगों से बात चीत कर रहा था, जिसमें मैने देखा कि तमाम लोगों की रुचि ही नहीं है। हालत ये हुई लोगों ने मुझे हाशिए पर डाल दिया। मैं आप सभी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाई देने के साथ ही कविवर डा. सुनील जोगी की एक रचना पढवाता हूं। मुझे पक्का भरोसा है कि आप सभी को ये रचना पसंद आएगी।
लेकिन दोस्तों कल से मैं फिर देश की बातें करुंगा, क्योंकि सच्चाई से आपको रुबरू कराना को मैं अपना नैतिक धर्म समझता हूं, इसके लिए कोई मुझे कांग्रेसी कहता है, कोई पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए ये समझाने की कोशिश करता है, लेकिन मैं जानता हूं कि सच वो नहीं है जो आंखो के सामने है, सच वो है जो लोगों के मन मे है। आइये फिलहाल इस रचना का आनंद लीजिए......
कलयुग में अब ना आना रे प्यारे कृष्ण कन्हैया
तुम बलदाऊ के भाई यहाँ हैं दाउद के भैया।।
दूध दही की जगह पेप्सी, लिम्का कोकाकोला
चक्र सुदर्शन छोड़ के हाथों में लेना हथगोला
कलयुग में अब. . .।।
गोबर को धन कहने वाले गोबर्धन क्या जानें
रास रचाते पुलिस पकड़ कर ले जाएगी थाने
लेन देन करके फिर छुड़वाएगी जसुमति मैया।
कलयुग में अब. . .।।
नंद बाबा के पास गाय की जगह मिलेंगे कुत्ते
औ कदंब की डार पे होंगे मधुमक्खी के छत्ते
यमुना तट पर बसी झुग्गियों में करना ता थैया।
कलयुग में अब. . .।।
जीन्स और टीशर्ट डालकर डिस्को जाना होगा
वृंदावन को छोड़ क्लबों में रास रचाना होगा
प्यानो पर धुन रटनी होगी मुरली मधुर बजैया।
कलयुग में अब. . .।।
देवकी और वसुदेव बंद होंगे तिहाड़ के अंदर
जेड श्रेणी की लिए सुरक्षा होंगे कंस सिकंदर
तुम्हें उग्रवादी कह करके फसवा देंगे भैया
कलयुग में अब. . .।।
विश्व सुंदरी बनकर फ़िल्में करेंगी राधा रानी
और गोपियाँ हो जाएँगी गोविंदा दीवानी
छोड़के गोकुल औ' मथुरा बनना होगा बंबइया।
कलयुग में अब. . .।।
साड़ी नहीं द्रौपदी की अब जीन्स बढ़ानी होगी
अर्जुन का रथ नहीं मारुति कार चलानी होगी
ईलू-ईलू गाना होगा गीता गान गवैया।
कलयुग में अब. . .।।
आना ही है तो आ जाओ बाद में मत पछताना
कंप्यूटर पर गेम खेलकर अपना दिल बहलाना
दुर्योधन से गठबंधन कर बनना माल पचइया..
कलयुग मे अब ना आना रे........
काफी दिनों से कुछ ऐसे मुद्दों पर आप लोगों से बात चीत कर रहा था, जिसमें मैने देखा कि तमाम लोगों की रुचि ही नहीं है। हालत ये हुई लोगों ने मुझे हाशिए पर डाल दिया। मैं आप सभी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बधाई देने के साथ ही कविवर डा. सुनील जोगी की एक रचना पढवाता हूं। मुझे पक्का भरोसा है कि आप सभी को ये रचना पसंद आएगी।
लेकिन दोस्तों कल से मैं फिर देश की बातें करुंगा, क्योंकि सच्चाई से आपको रुबरू कराना को मैं अपना नैतिक धर्म समझता हूं, इसके लिए कोई मुझे कांग्रेसी कहता है, कोई पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए ये समझाने की कोशिश करता है, लेकिन मैं जानता हूं कि सच वो नहीं है जो आंखो के सामने है, सच वो है जो लोगों के मन मे है। आइये फिलहाल इस रचना का आनंद लीजिए......
कलयुग में अब ना आना रे प्यारे कृष्ण कन्हैया
तुम बलदाऊ के भाई यहाँ हैं दाउद के भैया।।
दूध दही की जगह पेप्सी, लिम्का कोकाकोला
चक्र सुदर्शन छोड़ के हाथों में लेना हथगोला
कलयुग में अब. . .।।
गोबर को धन कहने वाले गोबर्धन क्या जानें
रास रचाते पुलिस पकड़ कर ले जाएगी थाने
लेन देन करके फिर छुड़वाएगी जसुमति मैया।
कलयुग में अब. . .।।
नंद बाबा के पास गाय की जगह मिलेंगे कुत्ते
औ कदंब की डार पे होंगे मधुमक्खी के छत्ते
यमुना तट पर बसी झुग्गियों में करना ता थैया।
कलयुग में अब. . .।।
जीन्स और टीशर्ट डालकर डिस्को जाना होगा
वृंदावन को छोड़ क्लबों में रास रचाना होगा
प्यानो पर धुन रटनी होगी मुरली मधुर बजैया।
कलयुग में अब. . .।।
देवकी और वसुदेव बंद होंगे तिहाड़ के अंदर
जेड श्रेणी की लिए सुरक्षा होंगे कंस सिकंदर
तुम्हें उग्रवादी कह करके फसवा देंगे भैया
कलयुग में अब. . .।।
विश्व सुंदरी बनकर फ़िल्में करेंगी राधा रानी
और गोपियाँ हो जाएँगी गोविंदा दीवानी
छोड़के गोकुल औ' मथुरा बनना होगा बंबइया।
कलयुग में अब. . .।।
साड़ी नहीं द्रौपदी की अब जीन्स बढ़ानी होगी
अर्जुन का रथ नहीं मारुति कार चलानी होगी
ईलू-ईलू गाना होगा गीता गान गवैया।
कलयुग में अब. . .।।
आना ही है तो आ जाओ बाद में मत पछताना
कंप्यूटर पर गेम खेलकर अपना दिल बहलाना
दुर्योधन से गठबंधन कर बनना माल पचइया..
कलयुग मे अब ना आना रे........
आपकी सोच और लोगो की सोच अपनी अपनी हों सकती है,पर सच्चाई और ईमानदारी से दिल का जुडाव बना रहता है.
ReplyDeleteआपकी रचना अच्छा व्यंग्य प्रस्तुत कर रही है.
जन्माष्टमी के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
EXCELLENT !
ReplyDeleteBLOG PAHELI
सुन्दर व्यंग्य्।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत
ReplyDeleteडा साहब ने बेहद अच्छे भावों को दर्शाया है। लोगों की आज मनोवृत्ति ही ऐसी हो गई है। तभी तो सब के सब अंध भक्ति के साथ बिना राष्ट्र-हितसोचे अन्ना के गीत गा रहे हैं।
ReplyDeleteहाशिये पर होकर भी सच बोलना पत्रकार के लिए ज़रूरी है.... और यह रचना भी एक सच है , लिखनेवाले को बधाई
ReplyDeleteसटीक ....सुंदर कटाक्ष लिए पंक्तियाँ
ReplyDeleteजीन्स और टीशर्ट डालकर डिस्को जाना होगा
ReplyDeleteवृंदावन को छोड़ क्लबों में रास रचाना होगा
प्यानो पर धुन रटनी होगी मुरली मधुर बजैया।
कलयुग में अब. . .।
बहुत सुन्दर व् सार्थक कहा है आपने .आभार
आज की यही सही स्थिति है .
वक़्त बदला ...और अब सब कुछ बदल गया है ....
ReplyDeleteन जाने कितने कंस आ चुके हैं तब से अब तक।
ReplyDeleteहम सभी को नैतिक धर्म का पालन जीवन पर्यंत करते रहना चाहिए . तात्कालिकता के परिप्रेक्ष्य में फल मनोनुकूल न हो . परन्तु प्रभाव दीर्घगामी होता ही है. स्वयं पर भरोसा रखना होता है. बैसे इस जगत की परिपाटी ही है कि चलताऊ को सभी ज्यादा पसंद करते हैं, पढ़ने से ज्यादा कहने में यकीं करते है. अच्छी लगी रचना.
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