धरा बेच देगें, गगन बेच देगें,
नमन बेच देगें, शरम बेच देगें।
कलम के पुजारी अगर सो गए तो,
वतन के पुजारी, वतन बेच देगें।
बात कहां से शुरू करूं, समझ नहीं पा रहा हूं। दरअसल मैं बताना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री के निकम्मे सलाहकारों की वजह से आज देश का लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है। मैं मानता हूं कि अन्ना जी का तरीका गलत हो सकता है, लेकिन उनकी मांग पूरी तरह जायज है। देश भर में अन्ना को जिस तरह का समर्थन मिल रहा है, उसके पीछे वजह और कुछ नहीं, सिर्फ सरकारी तंत्र में फैला भ्रष्टाचार है। आज देश में नीचे से ऊपर तक फैले भ्रष्टाचार से लोग उकता गए हैं और अब तो इस तंत्र से बदबू भी आने लगी है। ये जनसैलाब जो सड़कों पर उतरा है, इसके पीछे यही भ्रष्टाचार ठोस वजह है।
इस भीड़ का दुश्मन नंबर एक कौन है ? इस सवाल का सिर्फ एक जवाब है वो है राजनेता। इस सवाल का दूसरा कोई जवाब हो ही नहीं सकता। लोग जब देखते हैं पहला चुनाव लड़ने के दौरान जिस आदमी की हैसियत महज एक 1974 माडल जीप की थी, आज वो कई एकड वाले रिसार्ट, आलीशान बंगला, फरारी, पजीरो और होंडा सिटी कार का मालिक कैसे बन गया। नेताओं के बच्चे कैसे विदेशों में पढाई करने के साथ ही मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे ओहदे पा गए। हम तो यही सोच कर शांत हो गए कि.....
प्यास ही प्यास है जमाने में, एक बदली कहां कहां बरसे।
ना जाने कौन कौन उसे छलकाएगा, कौन दो घूंट के लिए तरसे।।
लेकिन मित्रों ये सोच लेने भर से हम शांत नहीं हो सकते हैं, क्योंकि हमारी भूख का क्या होगा। रोजी रोटी भी तो जरूरी है। इसके लिए क्या किया जाए। आज करोडों नौजवानों के हाथ पढाई पूरी करने के बाद भी खाली हैं। अगर पढा लिखा नौजवान किसी भी नौकरी के लिए जाता है, तो जिस तरह पैसे की मांग होती है, वो किसी से छिपी नहीं है। जब देश की सीमा की रखवाली करने के लिए हम सेना में भर्ती होने की बात करते हैं और वहां भी पैसे की मांग होती है, तब सच में शर्म आने लगती है भारतीय होने पर। आज नौकरी के लिए केंद्र या राज्य सरकार के किसी भी महकमें में नौजवान आवेदन करता है तो उससे खुलेआम पैसे की मांग की जाती है। तब मै सोचता हूं जो लोग लाखों रुपये रिश्वत देकर नौकरी पाते हैं तो हम उनसे ईमानदारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। इस मामले को लेकर अगर आप अपने इलाके के सांसद के पास चले गए तो भगवान ही मालिक है। उसके रवैये पर हैरत होती है।
कोई राहत की भीख मांगे, तो आप संगीन तान लेते हैं।
और फौलाद के शिकंजे में, फूल का इंतहान लेते हैं।।
ये बात सच है दोस्तों की इन नेताओं ने रिश्वतखोरी,बेईमानी को न सिर्फ बढावा दिया है, बल्कि ये इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसलिए हमारा गुस्सा इनको लेकर जितना भी है वो कम है। बहरहाल इस गंभीर मामले में जब जनता ने आवाज बुलंद की तो उसे चुप कराने का जो तरीका सरकार ने इख्तियार किया, इससे इतना तो साफ है कि ये सत्ता के नशे में चूर हैं। जबकि कांग्रेस को जनता के गुस्से का कई बार पहले भी सामना करना पड़ चुका है। लेकिन कांग्रेस नेता इतिहास से पता नहीं क्यों सबक लेने को तैयार नहीं हैं।
दोस्तों अब दो एक बातें देश के लिए भी कहनी है। पडो़सी देश पाकिस्तान को ले लें, इसकी आज जो दशा है उसकी मुख्य वजह वहां लोकतंत्र का लगभग खात्मा हो चुका है। उसका रिमोट कंट्रोल पूरी तरह अमेरिका के हाथ में है। लोकतंत्र कमजोर होने से नेपाल की अस्थिरता भी किसी से छिपी नहीं है। आज अन्ना का आंदोलन भी कहीं ना कहीं लोकतंत्र के लिए सबसे बडा खतरा है। संसद की सर्वोच्चता किसी भी सूरत में बरकरार रखनी ही होगी।
मैं ही नहीं टीम अन्ना भी जानती है कि उनके आंदोलन का कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है। मैं आज ही बता देता हूं कि आंदोलन के दवाब में सरकार सिविल सोसाइटी के जनलोकपाल के मसौदे को संसद में किसी रूप में पेश कर सकती है। फिर ये मसौदा संसद की स्थाई समिति में जाएगा। वहां दोबारा सिविल सोसाइटी को अपनी बात रखने का मौका मिल सकता है। आप जानते हैं कि स्थाई समिति में सभी दलों के नेता हैं, इसलिए यहां से भी सिविल सोसायटी को ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए। बहरहाल स्थाई समिति अगर इसे मान भी लेती है और ये मसौदा कैबिनेट से होता हुआ संसद में आएगा तो यहां उसकी वही हश्र होने वाला है जो महिला आरक्षण विल का हो रहा है।
आइए अन्ना की तर्ज पर हुए कुछ पुराने लेकिन बडे आंदोलनों की चर्चा कर लें। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की नीतियों और इमरजेंसी के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश ने आंदोलन का बिगुल फूंका। रामलीला मैदान की तरह ही पटना के गांधी मैदान में भी हजारों लोग जुटे। जेपी ने जनता पार्टी का गठन कर सरकार का विकल्प खडा किया, लेकिन बाद में जनता पार्टी के जितने नेता थे, उतनी पार्टी बन गई। ये आंदोलन बिखर गया और एक बार फिर सत्ता कांग्रेस के हाथ में आ गई।
दूसरा आंदोलन पूर्व प्रधानमंत्री स्व वीपी सिंह ने खडा़ किया। बोफोर्स घोटाले और मंडल कमीशन को लेकर आवाज बुलंद कर राजीव गांधी को सत्ता से बाहर करने के बाद बी पी सिंह भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। ना बोफोर्स में भ्रष्टाचार साबित कर पाए और ना ही मंडल कमीशन को लेकर ऐसा कुछ कर पाने में कामयाब हुए, जिससे लोगों की तकदीर बदल गई हो। हां वीपी सिंह खुद जरूर राजनीति के हाशिए पर आ गए।
तीसरा बडा आंदोलन हमने राम मंदिर के लिए देखा। इसके जरिए भारतीय जनता पार्टी एक बार केंद्र में और एक बार उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने में भले कामयाब हो गई हो, लेकिन बाबरी मस्जिद ढहाने का जो धब्बा इस आंदोलन से देश पर लगा, उससे दुनिया भर में देश की किरकिरी हुई। आज बीजेपी कहां है, किसी से छिपा नहीं है।
मैं नहीं कहता कि जनता को अपनी आवाज उठाने का हक नहीं है, जरूर उठाना चाहिए। लेकिन हमें ये भी देखना है कि कहीं संवैधानिक संस्थाओं का अस्तित्व खतरे में ना पड़ जाए। मैं फिर दावे के साथ कहता हूं कि भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए हमारे पास कानून की कमी नहीं है। उसका कड़ाई से पालन भर किया जाए तो बहुत कुछ समस्या का समाधान हो सकता है। तमाम बडे बडे नेताओं को भ्रष्टाचार के मामले में जेल की हवा खानी पड़ चुकी है। आज भी कई नेता जेल में हैं। सैकडो आईएएस और आईपीएस अफसर भ्रष्टाचार के मामले में पकडे जा चुके हैं। लेकिन कानून का पालन ही ना हो, तो लोकपाल बन जाने से भी कुछ नहीं होने वाला है।
मैं जानना चाहता हूं किस कानून में लिखा है कि आतंकवादी अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा सुनाए जाने के पांच साल बाद तक उसका मामला गृहमंत्रालय में सिर्फ इसलिए लटकाए रखा जाए, हमें एक खास तपके का वोट चाहिए। मुंबई हमले के आरोपी कसाब को वीआईपी सुविधाएं दी जाएं। आतंकवादियों के खिलाफ सख्त और जल्दी कार्रवाई के लिए बने पोटा कानून को इसी कांग्रेस की सरकार ने खत्म कर दिया। सिविल सोसाइटी क्यों नहीं इस मामले में सरकार से जवाब मांग रही है।
मुझे इस बात पर भी आपत्ति है कि इस आंदोलन को आजादी की दूसरी लडाई कहा जाए। समझ लीजिए ये कह कर हम आजादी के लिए दी गई कुर्बानी और शहीद हुए लोगों को गाली दे रहे हैं। अन्ना खुद को गांधी कहे जाने पर गर्व जरूर महसूस करें, लेकिन मैं उन्हें गांधीवादी तो कह सकता हूं, पर दूसरा गांधी नहीं। जो लोग उन्हें दूसरा गांधी बोल रहे हैं, वो पहले गांधी को गाली दे रहे हैं। मुझे लगता है कि ये जिम्मेदारी अन्ना की है कि लोगों उन्हें दूसरा गांधी कहने से रोकें। बहरहाल मैं तो इस आंदोलन को आंदोलन कम आराजकता ज्यादा मानता हूं।
गणपति बप्पा मोरिया, गणपति बप्पा मोरिया।
राजघाट में गांधी बाबा सुबुक-सुबुक के रो रिया।।
यही बात बिलकुल सही है की यह आजादी की दूसरी -तीसरी या कोई भी लड़ाई नहीं है .
ReplyDeleteगहन भावों की अभिव्यक्ति .आभार
BLOG PAHELI NO.1
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
bilkul sahi kaha hai aapne poori tarah se sahmat.
ReplyDeleteबहुत ही सच्चाई से आपने बुद्धिजीवी वर्ग के विचार प्रस्तुत किये हैं ..बधाई
ReplyDeleteसभी लोग सुखद निष्कर्ष की प्रतीक्षा में हैं।
ReplyDeleteअन्ना खुद को गांधी कहे जाने पर गर्व जरूर महसूस करें, लेकिन मैं उन्हें गांधीवादी तो कह सकता हूं, पर दूसरा गांधी नहीं। जो लोग उन्हें दूसरा गांधी बोल रहे हैं, वो पहले गांधी को गाली दे रहे हैं। मुझे लगता है कि ये जिम्मेदारी अन्ना की है कि लोगों उन्हें दूसरा गांधी कहने से रोकें। बहरहाल मैं तो इस आंदोलन को आंदोलन कम आराजकता ज्यादा मानता हूं।
ReplyDeleteपूर्णतः सहमत ।
सादर
mujhe to yahi per baat samajh me aati hai...
ReplyDeleteपदौसी देशों के लोकतन्त्र का दृष्टांत तो मई भी देकर लोगों को अन्ना के प्रति आगाह करता रहा हूँ परंतु खाकी नेकर वालों पर तो अन्ना का भूत सवार है ,हमेशा की तरह वे इस बार भी युवा शक्ति का शोषण कर रहे हैं। आपकी ही बात लोग समझ लें-- मे ऐसी प्रार्थना करता हूँ --लोगों को सद्बुद्धि आए और वे भावावेश मे बहना बंद करें एवं यथार्थ समझें॰
ReplyDeleteआपकी लेखनी में सच में दम है आपके विचार बहुत खूबसूरत और सही हैं ये सच है कि लोगों का जन् सेलाब उमड़ रहा है वो भ्रष्टाचार से ग्रसित होकर ही पर आपकी ये बात भी सही है कि ये तरीका सही नहीं पर जनता भी क्या करे उसे भी किसी ऐसे इंसान कि तलाश थी जो आगे बढ़कर आवाज उठा सके और बस नतीजा सामने आवाज लगी लोगो कि भावनाओं को कुछ सोचने मौका नहीं मिला कि इस को किस तरीके से आगे ले जाना चाहिए और बाकि सब हमारे सामने है |
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत बहुत अच्छा लगता है आपके लेख को पढ़ना |
गहन भावों की अभिव्यक्ति .........
ReplyDeleteसार्थक और सटीक प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
अन्ना अन्ना हैं गांधी गांधी थे ... आदत है लोगों की तुलना करने की .. अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletegood article...
ReplyDeleteजन्माष्टमी की शुभकामनायें स्वीकार करें !
ReplyDeleteसचमुच, आधा सच................
ReplyDeleteमैं ही नहीं टीम अन्ना भी जानती है कि उनके आंदोलन का कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार।
जो लोग उन्हें दूसरा गांधी बोल रहे हैं, वो पहले गांधी को गाली दे रहे हैं।
ReplyDeleteकैसे भैया, जरा स्पस्ट करें।
नीलेश जी शायद आप पहली बार मेरे ब्लाग पर आए हैं। इसलिए मेरे पिछले लेख से वाकिफ नही हैं। मैने अभी आपके ब्लाग को देखा है, आप यहां एक विचार का प्रतिनिधित्व करते दिखाई दे रहे हैं। इसलिए आप को मेरी बात बिल्कुल समझ में नहीं आएगी, मुझे मालूम है कि आप समझना भी नहीं चाहेंगे। वैसे पिछले लेख का एक पैराग्राफ आपकी जानकारी दे रहा हूं, शायद आप जो जानना चाहते हैं, वो जान सकें।...
ReplyDeleteदादा देश आपको आपको गांधी कह रहा है, इसलिए आपकी जिम्मेदारी कहीं ज्यादा बढ गई है, क्योंकि आपने कुछ भी ऐसा वैसा किया, जो नहीं होना चाहिए तो आपका कुछ नहीं होगा, हां गांधी के बारे में बच्चों के बीच गलत राय बनेगी। पिछले दिनों आपने फांसी देने की बात की, आपने ये भी कहा कि गांधी के रास्ते बात ना बने तो शिवाजी का रास्ता अपनाना होगा। अरे दादा आपको तो पता है कि गांधी जी कहते थे कि कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा सामने कर दो। पर आप तो कुछ भी बोल रहे हैं। इससे बच्चों में गलत संदेश जा रहा है। गांधी जी तो हर हाल में अंहिसा को मानने वाले थे। दादा कई बार आप जब भाषा की मर्यादा तोडते हैं, उस समय बच्चे पूछते हैं कि गांधी जी भी ऐसे ही बोला करते थे, तो मेरे पास कोई जवाब नहीं होता है।
महेंद्र जी ......जहाँ तक हम जानते है ...इस देश में नौकरी का हर पद बिका हुआ है ....अन्ना जी के आन्दोलन से के कर अंत तक .... नई शुरुआत कहाँ से होगी ...ये अब कोई नहीं जानता ????????
ReplyDeleteanu
वतन के पुजारी, वतन बेच दे रहे हैं. हम सरे बाज़ार लुट रहे हैं .
ReplyDelete