सच कहूं तो निदा फाजली की शायरी बड़ी सरलता के साथ अपनी बात कह जाती है। वह जमाने के शायर या यूं कहूं कि वो आम आदमी की रहनुमाई करने वाले इकलौते शायर थे। कबीर ने जिस रहस्यवाद और फक्कड़पन का तानाबाना बुना, निदा उसी परंपरा में खड़े नजर आते हैं। हा ये जरूर है कि दुनियावी रिश्तों में भी वे समरस हो जाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं, लेकिन उनके अंतर्मन में कोई ऐसी लहर उठती रही है कि वह फिर अपनी राह पर आगे बढ जाते हैं। फिर लगने लगता है कि भले वह कहें कि
"अपनी मर्जी से कहां, अपने सफर के हम हैं,
हवाओं का रुख जिधर है उधर के हम हैं "
हवाओं का रुख जिधर है उधर के हम हैं "
वैसे करीब से महसूस करने पर वे मतवाले ही लगते हैं। जिंदगी को अपनी तरह से जीने वाले। जिंदगी को जिस तरह जी लिया, उसी से वह अनगिनत मोती समेट लाए हैं। निदा यानी आवाज। उनका पुकारना कई तरह से सुना जाता है। कभी स्कूल जाते हुए बच्चों को देखकर, कभी मां की अनुभूतियों को याद कर,कभी अपनों की तलाश करते हुए उनकी भावुकता पन्नों पर उतर आती है। वह कबीर की परंपरा से भी इसलिए जुड़ जाते हैं कि वह कह सकते हैं,
"सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर,
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फकीर।"
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फकीर।"
न जाने उनसे कितनी बार सुना गया...
"जादू टोना रोज का, बच्चों का व्यवहार,
छोटी सी एक गेंद में भर दें सब संसार। "
बच्चा बोला देखकर मस्जिद आलीशान,
अल्ला तेरे एक को इतना ब़ड़ा मकान।"
छोटी सी एक गेंद में भर दें सब संसार। "
बच्चा बोला देखकर मस्जिद आलीशान,
अल्ला तेरे एक को इतना ब़ड़ा मकान।"
निदा आवाज देते हैं तो उसे गौर से सुना जाता है। उन्हें जब भी पाया, गहरी आत्मीयता से भरा हुआ पाया। जो उनसे छूटा, उसे उन्होंने अपनी जतन से जोड़ी हुई दुनिया से पाने की कोशिश की। जब भी मन भीगा, कोई पंक्ति निकल आई। वह न तो पूरी तरह सूफी हैं, न पूरी तरह सांसारिक। मगर गूढ़ा खूब है। जीवन की संवेदनाओं को उन्होंने ऐसे शब्द दिए हैं कि उन्हें बार-बार पढ़ा और सुना जाता है। जीवन को देखने का उनका तजुर्बा वाकई अलग है, तभी वह कह पाए हैं,
"सीधा साधा डाकिया जादू करे महान,
एक ही थैले में रखे आंसू और मुस्कान।"
एक ही थैले में रखे आंसू और मुस्कान।"
साहित्य की धूनी रमाने वाले तमाम साथी उनकी खूब चर्चा किया करते है, हालाकि निदा साहब काफी दिलचस्प व्यक्ति थे, जिनसे मिलना शुकून देने वाला होता है । उनके करीबी बताते हैं कि उनकी महफिलों का मतलब है किस्से, चर्चे, साहित्य की बातें, कुछ गॉसिप, चुहुलबाजी, सामयिक विषयों पर चर्चाएं, राजनीति की भी बातें और घर में ही मशीन पर बनते सोडा के साथ कांच के सुंदर गिलासों में भरती शराब, उनकी खुद की तैयार की हुई कोई नानवेज डिश और रोटी बनाने की मशक्कत से बचने के लिए पास की ब्रेकरी से मंगाए हुए पाव। उनके घर में निंदा रस की भी गुंजाइश रहती थी। इसकी चपेट में कवि, समीक्षक, साहित्यकार फिल्म जगत और अखबारी लोग ही आते थे। या फिर कथित सांप्रदायिक आचरण वाले लोगों पर उनका गुस्सा बरसता था। गीत संगीत साथ-साथ चलता और जब उनकी इच्छा हो तो राजनीति पर भी बातें हो जाती थीं।
निदाजी का जीवन, दुनिया को देखने, समझने की तहजीब देता है। लोगों तक पहुंचने के लिए वे आवरण नहीं बनाते, लेकिन थोड़ी-सी परख हो तो निदा समझ में आने लगते हैं। सुना है शायरी-गजल लिखने के लिए शायद ही कभी वह अपना खास मिजा़ज बनाते हों। कब लिखते हैं, पता नहीं चलता । जब भी कुछ नया लेकर आते, उस दिन कुछ देर की संगत के बाद उसे धीरे-धीरे तर्ज में यार दोस्तों को सुनाने लगते। लोग वाह ! वाह ! ही करते। दूसरों को भी खूब सुनते हैं। युवाओं की कविता-कहानी, गीत,गजल को वह बहुत दिलचस्पी से सुनते थे। निदा जी के चले जाने की खबर वाकई पीडादायक है, लेकिन एक कलमकार यही कह सकता है कि निदाजी .. हम तुम्हें मरने ना देंगे, जब तलक जिंदा कलम है।
विनम्र श्रद्धांजलि...
ReplyDeleteअब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले |
--निदा फ़ाज़ली
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-02-2016) को ''चाँद झील में'' (चर्चा अंक-2248)) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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चर्चा मंच परिवार की ओर से स्व-निदा फाजली और अविनाश वाचस्पति को भावभीनी श्रद्धांजलि।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अपनी मर्जी से कहां, अपने सफर के हम हैं,
ReplyDeleteहवाओं का रुख जिधर है उधर के हम हैं "
"सीधा साधा डाकिया जादू करे महान,
एक ही थैले में रखे आंसू और मुस्कान।"
..निदा जी को सार्थक श्रद्धांजलि प्रस्तुति हेतु आभार
आपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 12/02/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 210 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
ReplyDelete"अपनी मर्जी से कहां, अपने सफर के हम हैं,
हवाओं का रुख जिधर है उधर के हम हैं "
बेहतरीन! मन मोह लेने वाली पंक्तिया
Hindi Shayari
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeletehttp://kavitarawatbpl.blogspot.in/
bahut khub kripya hamare blog www.bhannaat.com ke liye bhi kuch tips jaroor den
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ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteNice Blog..!!
ReplyDeleteAlso Read About Pune's First BJP Mayor Mukta Tilak