अगर मैं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या फिर यूपीए का चेयरपर्सन होता तो ये इंतजार बिल्कुल नहीं करता कि दागी रेलमंत्री पवन बंसल खुद इस्तीफा दें, मैं उन्हें अब तक मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर तिहाड़ भेज चुका होता। मुझे डर होता कि कहीं पवन बंसल खुद इस्तीफा देकर स्व. लाल बहादुर शास्त्री के साथ अपना नाम ना दर्ज करा लें, इसलिए उनके खिलाफ ऐसी कार्रवाई करता कि वो ही नहीं बल्कि दूसरे नेताओं के साथ ही उनके परिवार वाले भी सबक लेते। लेकिन प्रणव मुखर्जी, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी इस कार्रवाई से चूक गईं। अब मैं इस नतीजे पर पहुंच चुका हूं कि देश की बर्बादी के सिर्फ दो कारण है, एक मनमोहन सिंह और दूसरी सोनिया गांधी। ये देश, देश के लोकतंत्र का जनाजा निकाल कर ही दम लेंगे। हालाकि इन दोनों बेईमानों से सवाल करना बेईमानी है, लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि अगर पवन बंसल को ये छूट है कि जांच के नतीजों के बाद उन पर फैसला होगा तो दूसरे नेताओं को ये छूट क्यों नहीं दी गई ? मसलन तेल के बदले अनाज घोटाले में नटवर सिंह, टू जी घोटाले में मंत्री रहे ए राजा, टूजी मामले में ही दयानिधि मारन, आदर्श घोटाले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चौव्हाण, भाई को गलत ढंग से कोल आवंटन में सुबोध कांत सहाय, कामनवेल्थ में सुरेश कलमाणी और आईपीएल घोटाले में शशि थरूर। ये कुछ ऐसे नाम हैं जिन पर आरोप लगते ही सरकार ने इस्तीफा ले लिया। अब तो प्रधानमंत्री कार्यालय और कानून मंत्री पर गंभीर आरोप है, उन्होंने कोल ब्लाक आवंटन की जांच रिपोर्ट को प्रभावित करने की साजिश की, आखिर क्यों चुप हैं प्रधानमंत्री और खासकर सोनिया गांधी ? सच बताऊं बेशर्म हो गई है सरकार !
चेहरा छिपाने से भला क्या होगा मंत्री जी ?
यहां रेलमंत्री पवन कुमार बंसल घूसखोरी के मामले में जितने भोले बन रहे हैं, उतने हैं नहीं। सच तो ये है कि अच्छी तरह से जांच हो तो बंसल के परिवार के लगभग सभी सदस्यों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। खैर जो हालात है वो किसी से छिपे तो हैं नहीं। सच्चाई ये है कि अगर सरकार पर लग रहे आरोपों की जांच भी ईमानदारी से हो जाए तो मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री समेत सरकार के 80 फीसदी मंत्रियों को तिहाड़ जेल जाना होगा। बहरहाल आज बात रेल मंत्रालय की करता हूं। मंत्रालय में मलाईदार पद पर तैनाती के लिए " मोटा माल " चलता है, ये बात सब जानते हैं। वैसे तो यहां पैसे का चलन कोई नया नहीं है, लेकिन लालू यादव के रेलमंत्री रहने के दौरान पैसे की ताकत काफी बढ़ गई, मसलन मोटा माल देकर मलाईदार पोस्ट पर तैनाती बहुत आसान हो गई। मंत्रालय में पैसे का ही करिश्मा है कि वरिष्ठता की अनदेखी कर रेलवे बोर्ड में चेयरमैन और मेंबर की तैनाती होने लगी। एक दो नहीं कई ऐसे उदाहरण हैं जहां अच्छे अफसरों को चेयरमैन नहीं बनाया गया और वो रिटायर हो गए। देखा जा रहा है कि जब भी बोर्ड में मेंबर और चेयरमैन की तैनाती का वक्त आता है, यहां ऐसे ही पैसे लुटाए जाते हैं। आगे विस्तार से बात करूंगा, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सिक्के का दूसरा पहलू भी है, जानते हैं क्या ? इस अपराधिक साजिश में सीबीआई भी एक मजबूत पार्टी है और वो रेल मंत्रालय के एक खास गुट के इशारे पर काम कर रही है, अगर कोई ऐसी संस्था हो जो साथ-साथ सीबीआई अफसरों के यहां भी छापेमारी करे तो बड़ी रकम तो इनके यहां भी बरामद हो सकती है।
आइये अब पूरे मामले में अंदर की खबर बताता हूं। पवन बंसल ने जब से रेल मंत्रालय का कार्यभार संभाला है, मंत्रालय के कामकाज में उनके परिवार का अच्छा खासा दखल है। सिर्फ भांजा, भतीजे और बेटा ही नहीं बल्कि उनकी बहू का भी बहुत ज्यादा हस्तक्षेप है। हालाकि उनके परिवार के लोगों का रेल मंत्रालय में आना जाना नहीं के बराबर है, लेकिन मैं कहूं कि तमाम बड़े मामले चंडीगढ़ से तय होते हैं तो ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा। भांजे के पकड़े जाने के बाद अब रेलवे बोर्ड में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई है, कहा जा रहा है कि जब मंत्री जी परिवार पर लगाम नहीं लगाएंगे तो ऐसे दिन तो देखने ही पड़ेगे। हालांकि जो अफसर आज दबी जुबान में रेलमंत्री के परिवार पर उंगली उठा रहे हैं, वो कल खुद भी चंडीगढ़ दरबार में हाजिरी लगाने जाया करते थे। सच तो ये है कि रेलवे बोर्ड चंडीगढ़ के खौफ से हमेशा डरा सहमा रहता था, क्योंकि वहां से आने वाले हर फरमान को रेलमंत्री का फरमान समझा जाता था। भांजे के रंगेहाथ पकड़े जाने के बाद ये समझ लिया जाना चाहिए कि चंडीगढ़ से कितने बड़े बड़े फैसले पर मुहर लगती थी। क्योंकि चेयरमैन या रेलवे बोर्ड के मेंबर की तैनाती रेलमंत्री के भी हाथ में भी नहीं है, इस पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री कार्यालय को करना होता है। इसके बाद भी अगर भांजा ऐसी सौदेबाजी में शामिल है तो समझा जा सकता है कि भांजा कितना मजबूत होगा और उसको अपने मामा पर कितना भरोसा होगा। इतना ही नहीं रेल अफसर भी जब उसे इतनी बड़ी रकम दे रहे हैं, तो वो भी जानते होंगे की भांजा ये काम कराने में सक्षम है, तभी लेन देन कर रहे थे।
जरा दो लाइन में बोर्ड के चेयरमैन और मेंबर की तैनाती की प्रक्रिया बता दूं। नियम तो ये है कि वरिष्ठता क्रम के अनुसार चेयरमैन, बोर्ड मेंबर या फिर जोन के महाप्रबंधक के लिए तीन-तीन नाम के पैनल तैयार किए जाते हैं। ये पैनल बोर्ड के अफसर तैयार करने के बाद रेलमंत्री को भेजते हैं। पैनल में जो नाम शामिल होता है उनकी वजह भी बताई जाती है। इससे संतुष्ट होने के बाद इस पैनल को प्रधानमंत्री के कार्यालय भेजा जाता है। प्रधानमंत्री तीन नामों में से जिसे चाहें किसी एक की तैनाती को हरी झंड़ी देते हैं। लेकिन देखा ये जा रहा है कि रेलमंत्री जिसे चाहते हैं उसे ही चेयरमैन, मेंबर या फिर महाप्रबंधक बनवा लेते हैं। मतलब ये कि रेलमंत्री जिस अफसर का नाम देते हैं, आमतौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय उस पर विरोध नहीं करता है। इसी का फायदा उठाया पूर्व रेलमंत्री लालू यादव ने और उनके कार्यकाल में रेलवे बोर्ड में खूब मनमानी हुई, जिसे चाहा उसे ऊंचे और मलाईदार पद पर तैनात कर दिया। अफसर का जूनियर या सीनियर होना तो गया तेल लेने। मैं भरोसे के साथ कह सकता हूं कि यही गंदगी अब और ज्यादा बढ़ती जा रही है। जब भी बोर्ड मे मेंबर या चेयरमैन के रिटायर होने का समय आता है जोन के महाप्रबंधक यहां लाबिंग शुरू कर देते हैं, और उन्हें इस रास्ते से कामयाबी भी मिलती है।
आप ये भी जान लें कि रेल के बड़े अफसरों को सरकारी काम के लिए "आर ए" यानि रिजर्ब एकोमोडेशन मिलता है। वातानुकूलित ये ऐसी बोगी होती है, जिसमें बेडरूम, ड्राइंग और डाइनिंग स्पेश सबकुछ होता है। अफसर इस बोगी से को किसी ट्रेन में लगाकर दिल्ली लाते हैं और दिल्ली में इस बोगी का इस्तेमाल गोरखधंधे को अंजाम देने के लिए किया जाता है। मैं अगर बिना लाग लपेट के कहूं तो इस बोगी का इस्तेमाल यहां रेल के अधिकारी अय्याशी के लिए करते हैं, क्योंकि इस बोगी में किसी तरह का रिस्क भी नहीं होता है। नियम तो यही है कि इस खास बोगी का इस्तेमाल अफसर तभी कर सकते हैं, जब वो सरकारी यात्रा पर दिल्ली आ रहे हों। लेकिन होता ये है कि जीएम वगैरह रेलवे बोर्ड में किसी अफसर से बात कर मीटिंग फिक्स कर लेते हैं और अपनी यात्रा को सरकारी बना लेते है। बस फिर क्या है, बाकी का सामान तो इस बोगी में पहले ही उपलब्ध है। बहरहाल मैं बताना चाहता हूं कि अफसर कैसे-कैसे साजिश करते हैं। कई बार तो इसी बोगी में पत्रकारों को भी आमंत्रित किया जाता है, जो दिल्ली में उनके लिए माहौल बनाने में उनकी मदद करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि इतने बड़े पद पर तैनाती में भला पत्रकार क्या कर सकते हैं ? लेकिन ऐसा नहीं है। जो अफसर चेयरमैन, मेंबर या फिर जीएम बनने वाला होता है, कुछ अफसर तो उसके खिलाफ भी होते है नां। उनका काम होता है कि उन अफसरों ने अगर अपने कार्यकाल के दौरान कहीं भी जो कुछ गड़बड़ किया है, दिल्ली में इसी रिजर्ब बोगी में पत्रकारों के जमा होने पर उन्हें दारू मुर्गा के साथ अफसर के खिलाफ खबरें छापने के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराए जाते हैं। जाहिर है जब खबर छपती हैं तो वो अफसर मुश्किल में पड़ता है और उसकी नए पद पर तैनाती खटाई में पड़ जाती है, कई बार तैनाती रुक भी जाती है।
अब आखं खोलने वाला सच सुन लीजिए। कहा जा रहा है कि जो काम अब तक पत्रकार करते रहे हैं वो काम इस बार सीबीआई ने किया है। सीबीआई के मौजूदा डायरेक्टर रंजीत सिन्हा इसके पहले यहीं रेलवे बोर्ड में तैनात थे। चूंकि वो यहां रह चुके हैं, लिहाजा उन्हें सब पता है कि तैनाती की प्रक्रिया क्या होती है ? अफसर बड़े और मलाईदार पोस्ट के लिए कैसे लाबिंग करते हैं और कैसे पानी की तरह पैसे बहाते हैं। जानकार बता रहे हैं कि मुंबई में महाप्रबंधक के रूप में तैनात महेश कुमार की इधर दिल्ली की यात्रा काफी बढ़ गई थी और वो पैसे के बूते मंत्रालय में अपनी धाक जमाने की साजिश कर रहे हैं, ये बात रेलवे के ही कुछ ठेकेदारों के जरिए विरोधी खेमें के अफसरों तक पहुंच गई। दूसरे खेमे के अफसरों को जब महेश कुमार की कारगुजारियों का पता चला तो उन्होंने इन्हें सबक सिखाने की तैयारी शुरू कर दी। बड़ौदा हाउस में तैनात एक बड़े अफसर ने महेश के खिलाफ झंड़ा उठा लिया और ये बात सीबीआई तक पहुंचाई गई। मैं आपको बता चुका हूं कि सीबीआई के डायरेक्टर रंजीत सिन्हा बोर्ड में तैनात रह चुके है, लिहाजा उन्हें सारा खेल पता है। हालाकि बोर्ड में तैनात रहने के दौरान रंजीत सिन्हा की छवि भी बहुत साफ सुथरी नहीं रही है, उन पर भी बहुत घटिया किस्म के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में रेलवे बोर्ड में चर्चा है कि सीबीआई ने जो धर पकड़ की है, वो तो बिल्कुल सही है, क्योंकि यहां रेलवे बोर्ड में पदों की खरीद फरोख्त होती ही है। लेकिन महेश का नुकसान होने के बाद अब फायदा किसका होने वाला है, उसके और सीबीआई के रिश्तों को भी खंगालना जरूरी है। कहा तो ये भी जा रहा है कि अगर कोई ऐसी संस्था हो जो इसी वक्त सीबीआई के यहां भी छापेमारी कर सके तो यहां भी बड़ी रकम मिल जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।
खैर रेलमंत्री का बचाव करने उतरे पूर्व रेलमंत्री लालू यादव पर तो मुझे बिल्कुल हैरानी नहीं हुई। मुझे पता था कि इस मामले में लालू यादव रेलमंत्री बंसल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहेंगे। वैसे तो रेलवे बोर्ड में बड़े पदों के लिए काफी समय से पैसा चलता रहा है, मैं कहू कि ये सारे पद बिकाऊ हैं तो गलत नहीं होगा। लेकिन पहले अफसरों में थोड़ी शर्म थी, वो पैसे की बात करने में संकोच करते थे, लेकिन लालू यादव के बाद अब अफसर बेशर्म हो गए हैं, बकायदा सौदेबाजी होती है। मेंबर बनने की बात हो तो 25 करोड़ से इस पद की शुरुआत होती है, अब अफसर अपनी मजबूरी बताकर इस रकम में कितना कम करा सकता है, ये उसकी क्षमता पर है। आज के दौर में अगर कोई अफसर कहे कि वो वरिष्ठ है, ऐसे में उसे ही चेयरमैन या बोर्ड मेंबर बनाना चाहिए तो ऐसा अफसर मूर्ख कहा जाता है। आमतौर पर रेलवे के सभी पदों पर तैनाती की एक रकम तय है, जो इसकी भरपाई करते हैं, वो तैनात किए जाते हैं और मस्त रहते हैं, वरना वो कहां खो जाएंगे कोई पता नहीं। खैर बंसल साहब को एक सलाह है कि वो इस्तीफा देकर खुद भाग लें, वरना कहीं ऐसा ना हो कि जांच आगे बढ़े तो परिवार के और सदस्यों पर भी आंच आए।
खैर रेलमंत्री का चेहरा बेनकाब हो गया है। लेकिन इस समय प्रधानमंत्री और कानून मंत्री भी बुरी तरह फंसे हुए हैं। कोल ब्लाक आवंटन के मामले में जिस तरह सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसकी जांच रिपोर्ट को पीएमओ और कानून मंत्री ने ना सिर्फ देखा, बल्कि उसमें सुविधानुसार बदलाव भी कराए, ये गंभीर मामला है। इस खुलासे के बाद तो प्रधानमंत्री को खुद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए। लेकिन अब ये सरकार पूरी तरह बेशर्मी पर उतारू है। जिस तरह का माहौल है मुझे लगता है कि कहीं सुप्रीम कोर्ट ही प्रधानमंत्री और कानूनमंत्री को तलब ना कर ले और जरूरी पूछताछ करे। अगर ऐसा कुछ हुआ तो वाकई सरकार के लिए शर्मनाक होगा, लेकिन अब नैतिकता, शर्म वगैरह से ये सरकार आगे निकल चुकी है। अब तो लोग एक दूसरे से सवाल करते नजर आते हैं कि सरकार गिरने के बाद कितने मंत्री घर जाएंगे और कितनों को सीधे जेल जाना होगा ?
चलते-चलते
बीजेपी नेताओं को क्या हो गया है, उन्हें बेईमानों से नैतिकता की उम्मीद है। मुझे लगता है कि अब मांग इस्तीफे की नहीं बल्कि राष्ट्रपति से इस सरकार को बर्खास्त करने की होनी चाहिए। बात बर्खास्तगी तक ही नहीं रुकनी चाहिए बल्कि इन बेईमानों को जेल भेजने तक संघर्ष जारी रहना चाहिए।
चेहरा छिपाने से भला क्या होगा मंत्री जी ?
यहां रेलमंत्री पवन कुमार बंसल घूसखोरी के मामले में जितने भोले बन रहे हैं, उतने हैं नहीं। सच तो ये है कि अच्छी तरह से जांच हो तो बंसल के परिवार के लगभग सभी सदस्यों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है। खैर जो हालात है वो किसी से छिपे तो हैं नहीं। सच्चाई ये है कि अगर सरकार पर लग रहे आरोपों की जांच भी ईमानदारी से हो जाए तो मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री समेत सरकार के 80 फीसदी मंत्रियों को तिहाड़ जेल जाना होगा। बहरहाल आज बात रेल मंत्रालय की करता हूं। मंत्रालय में मलाईदार पद पर तैनाती के लिए " मोटा माल " चलता है, ये बात सब जानते हैं। वैसे तो यहां पैसे का चलन कोई नया नहीं है, लेकिन लालू यादव के रेलमंत्री रहने के दौरान पैसे की ताकत काफी बढ़ गई, मसलन मोटा माल देकर मलाईदार पोस्ट पर तैनाती बहुत आसान हो गई। मंत्रालय में पैसे का ही करिश्मा है कि वरिष्ठता की अनदेखी कर रेलवे बोर्ड में चेयरमैन और मेंबर की तैनाती होने लगी। एक दो नहीं कई ऐसे उदाहरण हैं जहां अच्छे अफसरों को चेयरमैन नहीं बनाया गया और वो रिटायर हो गए। देखा जा रहा है कि जब भी बोर्ड में मेंबर और चेयरमैन की तैनाती का वक्त आता है, यहां ऐसे ही पैसे लुटाए जाते हैं। आगे विस्तार से बात करूंगा, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में सिक्के का दूसरा पहलू भी है, जानते हैं क्या ? इस अपराधिक साजिश में सीबीआई भी एक मजबूत पार्टी है और वो रेल मंत्रालय के एक खास गुट के इशारे पर काम कर रही है, अगर कोई ऐसी संस्था हो जो साथ-साथ सीबीआई अफसरों के यहां भी छापेमारी करे तो बड़ी रकम तो इनके यहां भी बरामद हो सकती है।
आइये अब पूरे मामले में अंदर की खबर बताता हूं। पवन बंसल ने जब से रेल मंत्रालय का कार्यभार संभाला है, मंत्रालय के कामकाज में उनके परिवार का अच्छा खासा दखल है। सिर्फ भांजा, भतीजे और बेटा ही नहीं बल्कि उनकी बहू का भी बहुत ज्यादा हस्तक्षेप है। हालाकि उनके परिवार के लोगों का रेल मंत्रालय में आना जाना नहीं के बराबर है, लेकिन मैं कहूं कि तमाम बड़े मामले चंडीगढ़ से तय होते हैं तो ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा। भांजे के पकड़े जाने के बाद अब रेलवे बोर्ड में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई है, कहा जा रहा है कि जब मंत्री जी परिवार पर लगाम नहीं लगाएंगे तो ऐसे दिन तो देखने ही पड़ेगे। हालांकि जो अफसर आज दबी जुबान में रेलमंत्री के परिवार पर उंगली उठा रहे हैं, वो कल खुद भी चंडीगढ़ दरबार में हाजिरी लगाने जाया करते थे। सच तो ये है कि रेलवे बोर्ड चंडीगढ़ के खौफ से हमेशा डरा सहमा रहता था, क्योंकि वहां से आने वाले हर फरमान को रेलमंत्री का फरमान समझा जाता था। भांजे के रंगेहाथ पकड़े जाने के बाद ये समझ लिया जाना चाहिए कि चंडीगढ़ से कितने बड़े बड़े फैसले पर मुहर लगती थी। क्योंकि चेयरमैन या रेलवे बोर्ड के मेंबर की तैनाती रेलमंत्री के भी हाथ में भी नहीं है, इस पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री कार्यालय को करना होता है। इसके बाद भी अगर भांजा ऐसी सौदेबाजी में शामिल है तो समझा जा सकता है कि भांजा कितना मजबूत होगा और उसको अपने मामा पर कितना भरोसा होगा। इतना ही नहीं रेल अफसर भी जब उसे इतनी बड़ी रकम दे रहे हैं, तो वो भी जानते होंगे की भांजा ये काम कराने में सक्षम है, तभी लेन देन कर रहे थे।
जरा दो लाइन में बोर्ड के चेयरमैन और मेंबर की तैनाती की प्रक्रिया बता दूं। नियम तो ये है कि वरिष्ठता क्रम के अनुसार चेयरमैन, बोर्ड मेंबर या फिर जोन के महाप्रबंधक के लिए तीन-तीन नाम के पैनल तैयार किए जाते हैं। ये पैनल बोर्ड के अफसर तैयार करने के बाद रेलमंत्री को भेजते हैं। पैनल में जो नाम शामिल होता है उनकी वजह भी बताई जाती है। इससे संतुष्ट होने के बाद इस पैनल को प्रधानमंत्री के कार्यालय भेजा जाता है। प्रधानमंत्री तीन नामों में से जिसे चाहें किसी एक की तैनाती को हरी झंड़ी देते हैं। लेकिन देखा ये जा रहा है कि रेलमंत्री जिसे चाहते हैं उसे ही चेयरमैन, मेंबर या फिर महाप्रबंधक बनवा लेते हैं। मतलब ये कि रेलमंत्री जिस अफसर का नाम देते हैं, आमतौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय उस पर विरोध नहीं करता है। इसी का फायदा उठाया पूर्व रेलमंत्री लालू यादव ने और उनके कार्यकाल में रेलवे बोर्ड में खूब मनमानी हुई, जिसे चाहा उसे ऊंचे और मलाईदार पद पर तैनात कर दिया। अफसर का जूनियर या सीनियर होना तो गया तेल लेने। मैं भरोसे के साथ कह सकता हूं कि यही गंदगी अब और ज्यादा बढ़ती जा रही है। जब भी बोर्ड मे मेंबर या चेयरमैन के रिटायर होने का समय आता है जोन के महाप्रबंधक यहां लाबिंग शुरू कर देते हैं, और उन्हें इस रास्ते से कामयाबी भी मिलती है।
आप ये भी जान लें कि रेल के बड़े अफसरों को सरकारी काम के लिए "आर ए" यानि रिजर्ब एकोमोडेशन मिलता है। वातानुकूलित ये ऐसी बोगी होती है, जिसमें बेडरूम, ड्राइंग और डाइनिंग स्पेश सबकुछ होता है। अफसर इस बोगी से को किसी ट्रेन में लगाकर दिल्ली लाते हैं और दिल्ली में इस बोगी का इस्तेमाल गोरखधंधे को अंजाम देने के लिए किया जाता है। मैं अगर बिना लाग लपेट के कहूं तो इस बोगी का इस्तेमाल यहां रेल के अधिकारी अय्याशी के लिए करते हैं, क्योंकि इस बोगी में किसी तरह का रिस्क भी नहीं होता है। नियम तो यही है कि इस खास बोगी का इस्तेमाल अफसर तभी कर सकते हैं, जब वो सरकारी यात्रा पर दिल्ली आ रहे हों। लेकिन होता ये है कि जीएम वगैरह रेलवे बोर्ड में किसी अफसर से बात कर मीटिंग फिक्स कर लेते हैं और अपनी यात्रा को सरकारी बना लेते है। बस फिर क्या है, बाकी का सामान तो इस बोगी में पहले ही उपलब्ध है। बहरहाल मैं बताना चाहता हूं कि अफसर कैसे-कैसे साजिश करते हैं। कई बार तो इसी बोगी में पत्रकारों को भी आमंत्रित किया जाता है, जो दिल्ली में उनके लिए माहौल बनाने में उनकी मदद करते हैं। आप सोच रहे होंगे कि इतने बड़े पद पर तैनाती में भला पत्रकार क्या कर सकते हैं ? लेकिन ऐसा नहीं है। जो अफसर चेयरमैन, मेंबर या फिर जीएम बनने वाला होता है, कुछ अफसर तो उसके खिलाफ भी होते है नां। उनका काम होता है कि उन अफसरों ने अगर अपने कार्यकाल के दौरान कहीं भी जो कुछ गड़बड़ किया है, दिल्ली में इसी रिजर्ब बोगी में पत्रकारों के जमा होने पर उन्हें दारू मुर्गा के साथ अफसर के खिलाफ खबरें छापने के लिए दस्तावेज उपलब्ध कराए जाते हैं। जाहिर है जब खबर छपती हैं तो वो अफसर मुश्किल में पड़ता है और उसकी नए पद पर तैनाती खटाई में पड़ जाती है, कई बार तैनाती रुक भी जाती है।
अब आखं खोलने वाला सच सुन लीजिए। कहा जा रहा है कि जो काम अब तक पत्रकार करते रहे हैं वो काम इस बार सीबीआई ने किया है। सीबीआई के मौजूदा डायरेक्टर रंजीत सिन्हा इसके पहले यहीं रेलवे बोर्ड में तैनात थे। चूंकि वो यहां रह चुके हैं, लिहाजा उन्हें सब पता है कि तैनाती की प्रक्रिया क्या होती है ? अफसर बड़े और मलाईदार पोस्ट के लिए कैसे लाबिंग करते हैं और कैसे पानी की तरह पैसे बहाते हैं। जानकार बता रहे हैं कि मुंबई में महाप्रबंधक के रूप में तैनात महेश कुमार की इधर दिल्ली की यात्रा काफी बढ़ गई थी और वो पैसे के बूते मंत्रालय में अपनी धाक जमाने की साजिश कर रहे हैं, ये बात रेलवे के ही कुछ ठेकेदारों के जरिए विरोधी खेमें के अफसरों तक पहुंच गई। दूसरे खेमे के अफसरों को जब महेश कुमार की कारगुजारियों का पता चला तो उन्होंने इन्हें सबक सिखाने की तैयारी शुरू कर दी। बड़ौदा हाउस में तैनात एक बड़े अफसर ने महेश के खिलाफ झंड़ा उठा लिया और ये बात सीबीआई तक पहुंचाई गई। मैं आपको बता चुका हूं कि सीबीआई के डायरेक्टर रंजीत सिन्हा बोर्ड में तैनात रह चुके है, लिहाजा उन्हें सारा खेल पता है। हालाकि बोर्ड में तैनात रहने के दौरान रंजीत सिन्हा की छवि भी बहुत साफ सुथरी नहीं रही है, उन पर भी बहुत घटिया किस्म के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में रेलवे बोर्ड में चर्चा है कि सीबीआई ने जो धर पकड़ की है, वो तो बिल्कुल सही है, क्योंकि यहां रेलवे बोर्ड में पदों की खरीद फरोख्त होती ही है। लेकिन महेश का नुकसान होने के बाद अब फायदा किसका होने वाला है, उसके और सीबीआई के रिश्तों को भी खंगालना जरूरी है। कहा तो ये भी जा रहा है कि अगर कोई ऐसी संस्था हो जो इसी वक्त सीबीआई के यहां भी छापेमारी कर सके तो यहां भी बड़ी रकम मिल जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।
खैर रेलमंत्री का बचाव करने उतरे पूर्व रेलमंत्री लालू यादव पर तो मुझे बिल्कुल हैरानी नहीं हुई। मुझे पता था कि इस मामले में लालू यादव रेलमंत्री बंसल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहेंगे। वैसे तो रेलवे बोर्ड में बड़े पदों के लिए काफी समय से पैसा चलता रहा है, मैं कहू कि ये सारे पद बिकाऊ हैं तो गलत नहीं होगा। लेकिन पहले अफसरों में थोड़ी शर्म थी, वो पैसे की बात करने में संकोच करते थे, लेकिन लालू यादव के बाद अब अफसर बेशर्म हो गए हैं, बकायदा सौदेबाजी होती है। मेंबर बनने की बात हो तो 25 करोड़ से इस पद की शुरुआत होती है, अब अफसर अपनी मजबूरी बताकर इस रकम में कितना कम करा सकता है, ये उसकी क्षमता पर है। आज के दौर में अगर कोई अफसर कहे कि वो वरिष्ठ है, ऐसे में उसे ही चेयरमैन या बोर्ड मेंबर बनाना चाहिए तो ऐसा अफसर मूर्ख कहा जाता है। आमतौर पर रेलवे के सभी पदों पर तैनाती की एक रकम तय है, जो इसकी भरपाई करते हैं, वो तैनात किए जाते हैं और मस्त रहते हैं, वरना वो कहां खो जाएंगे कोई पता नहीं। खैर बंसल साहब को एक सलाह है कि वो इस्तीफा देकर खुद भाग लें, वरना कहीं ऐसा ना हो कि जांच आगे बढ़े तो परिवार के और सदस्यों पर भी आंच आए।
खैर रेलमंत्री का चेहरा बेनकाब हो गया है। लेकिन इस समय प्रधानमंत्री और कानून मंत्री भी बुरी तरह फंसे हुए हैं। कोल ब्लाक आवंटन के मामले में जिस तरह सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने अपने हलफनामे में कहा है कि उसकी जांच रिपोर्ट को पीएमओ और कानून मंत्री ने ना सिर्फ देखा, बल्कि उसमें सुविधानुसार बदलाव भी कराए, ये गंभीर मामला है। इस खुलासे के बाद तो प्रधानमंत्री को खुद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए। लेकिन अब ये सरकार पूरी तरह बेशर्मी पर उतारू है। जिस तरह का माहौल है मुझे लगता है कि कहीं सुप्रीम कोर्ट ही प्रधानमंत्री और कानूनमंत्री को तलब ना कर ले और जरूरी पूछताछ करे। अगर ऐसा कुछ हुआ तो वाकई सरकार के लिए शर्मनाक होगा, लेकिन अब नैतिकता, शर्म वगैरह से ये सरकार आगे निकल चुकी है। अब तो लोग एक दूसरे से सवाल करते नजर आते हैं कि सरकार गिरने के बाद कितने मंत्री घर जाएंगे और कितनों को सीधे जेल जाना होगा ?
चलते-चलते
बीजेपी नेताओं को क्या हो गया है, उन्हें बेईमानों से नैतिकता की उम्मीद है। मुझे लगता है कि अब मांग इस्तीफे की नहीं बल्कि राष्ट्रपति से इस सरकार को बर्खास्त करने की होनी चाहिए। बात बर्खास्तगी तक ही नहीं रुकनी चाहिए बल्कि इन बेईमानों को जेल भेजने तक संघर्ष जारी रहना चाहिए।
बहुत ही सटीक ।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबंसल जी को तुरंत स्तीफा दे देना चाहिए,,,
ReplyDeleteRECENT POST: दीदार होता है,
जी सहमत हूं आपकी बात से
Deleteहा हा ... बेचारी बी जी पी ने नेतिकता के नाम पे येदुरप्पा को निकाला तो क्या किया देश की जनता ने उनके साथ ... ख़बरें तो कह रही हैं सता से ही बाहर हो तहे हैं वो कर्नाटका से ...
ReplyDeleteदरअसल चुनाव, मीडिया, जनता, कांग्रेस, विपक्ष की डोर किसके हाथों में बंधी ये कोई नई जानता ... शायद सोनिया जी के ... हा हा हा ...
हाहाहहाहा, जी एक पक्ष तो ये भी है...
Deletehar roz ek naya kaand .ek naya ghotaala .naitikta ke naam par isteefa?????
ReplyDeleteNAITIKTA bachi kaha hai ab is sarkaar ke paas ??
sateek aalekh ..
नैतिकता की उम्मीद भी बेईमानी लगती है.
Deleteआभार
अगर ऐसा ही रहा तो एक बार फिर यह देश गुलाम हो जायेगा ......वैसे मानसिक रूप से आज भी हम गुलाम हैं .....लेकिन कहने को ही सही आजाद तो हैं ....!!!
ReplyDeleteये तो है, आजादी सिर्फ कहने भर की है..
Deleteभारत की सबसे भ्रष्ट सरकार .........
ReplyDeleteबिल्कुल सही
Deleteमहेन्द्र जी ,:-))))
ReplyDeleteबस बात इतनी सी .....
अगर मैं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या फिर यूपीए का चेयरपर्सन होता तो ये इंतजार बिल्कुल नहीं करता..........
फिर आप यूपीए में होते ही क्यों ???????:-)))
आपकी सोच को शुभकामनायें!
हाहाहहाहा, जी बात तो आपकी सही है,
Deleteफिर मैं यूपीए में होता ही क्यों ?
आभार
All this hullabaloo over appointments in railways against money makes me laugh. Appointments in all PSU boards are made only when the contractors pay huge sums of money to the minister. I personally know of this happening consistently from the year 2001 onwards. In the case of ONGC the figure of Rs. 50 crores has been a minimum benchmark for the past 5 years.
ReplyDeleteआप अपनी पहचान के साथ आते तो ज्यादा बेहतर होता..
Deleteवैसे आपकी बात सही है..
बहुत सच कहा आपने भाई महेंद्र जी |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सर
Deleteजी बहुत बहुत आभार
ReplyDeletesharm vesharm ki sagee hotee to neeti netiktaa se alg nhee hotee ....ek baat hai saadaa jeevan dhaaree bansal ab sooted booted dikhate hain ....bethak me dekho press me dekho ...pichali sarkaar me grah mantree bhee dress badlakr press kar rhe the..vese hee bansal ji us din ..
ReplyDeleteहां सही कहा आपने, ये बात तो है
Deleteकाम से ज्यादा कपड़ों पर ध्यान तो इनका भी रहता है।
सही कहा है..
ReplyDeleteआभार
Deleteस्वतंत्र भारत में यह सबसे भ्रष्ट सरकार है .४०X२ चोरों में कौन ईमानदार है ?
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
मैं पूरी तरह सहमत हूं।
Deleteइतनी भ्रष्ट और अक्षम सरकार नहीं देखा मैने
aankhe kholne vala sach batane ke liye dhanyavad
ReplyDeleteaankhe khol dene vala sach batane ke liye dhanyavaad
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteइतना सब कुछ देखकर तो यही कहा जा सकता है की देश की बर्बादी का एक ही कारण है - कांग्रेस
ReplyDeleteकमजोर नेतृत्व के चलते सब मोटा माल बनाने में लगे हैं।
Deleteबिल्कुल सही कहा आपने ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteराजनीति और वह भी महान भारत की,मेरे लिये समझना
टेढी खीर है.
खुली छिट्ठी के लिये साधुवाद
राजनीति और वह भी भारत की,समझना मेरे लिये
टेढी खीर है.
डेमोक्रेसी बिचारी क्या करे,अपने आप तो सांस ले नहीं
सकती,उसे सही रखरखाव का वेन्तीलटर चाहिये.
एक खुले पत्र के लिये,साधुवाद
जी बात तो आपकी बिल्कुल सही है..
Deleteआभार
अगर मैं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या फिर यूपीए का चेयरपर्सन होता तो ये इंतजार बिल्कुल नहीं करता ....
ReplyDeleteबस यही अगर ....जाने कितने लोगों के मन में उथल पुथल मचा तो देता है लेकिन इससे पहले की कुछ हो अगला फिर हाज़िर ....
बहुत सही ...
जी, सही कहा आपने।
Deleteआभार
भगवान करें दुबारा कभी ऐसी सरकार से न पाला पड़े, यहाँ तो कूप में भांग पड़ी है |
ReplyDeleteहां, ये बात तो सही है, अब ऐसी सरकार को झेलने की हालत देश की बिल्कुल नहीं है ।
Deleteबिल्कुल सही कहा आपने ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deletejo besharm hai unhe besharmi par utarne me der nahi lagti,sundar aur jhakjhorne vali prastuti
ReplyDeleteआभार
Deleteराजनीति और सरकार का इतना गन्दा और बेशर्म चेहरा आज तक नहीं देखा ...और कितना लुटेंगे ये सरकार के बाशिंदे ?
ReplyDeleteजी ये बात तो बिल्कुल सही है
Deleteआभार