मुझे ये कहते हुए शर्म आ रही है कि "मैं दिल्ली हूं"। मैं इतनी कमजोर कभी नहीं थी कि मैं अपनी बेटियों की रक्षा ना कर पाऊं। पिछले साल दिसंबर में मेरी ही छाती पर बस दौड़ाते हुए कुछ दरिदों ने बेटी दामिनी को अपनी हवस का शिकार बनाया, उस समय अंधेरा था, लेकिन मैं चीख रही थी कि दामिनी को बचाओ, पर नशे में डूबे मेरे बेटों को मेरी आवाज नहीं सुनाई दी। मैं चीखती रही, रोती रही, मेरी आंखो के आंसू सूख गए, लेकिन मेरे बेटों की ना ही नींद खुली और ना दिल पसीजा। अब बेटे मेरी बातें नहीं सुनते, इन्हें लगता है कि मेरी उम्र ज्यादा हो गई है और मैं यूं ही चीखती रहती हूं। मैने पहले ही आगाह किया था कि सुधर जाओ, दामिनी के बलिदान को बेकार मत जाने दो, राक्षसों के संहार के लिए कमर कस लो, समय निकल गया तो फिर बहुत पछताओगे, लेकिन मेरी किसी ने नहीं सुनीं। अब मासूम गुड़िया के साथ हैवानियत देख मेरी तो जान ही निकल गई। लेकिन जब मैं अपनी ही बेटियों की "लाज" नहीं बचा पाई तो अब इससे ज्यादा मेरे लिए बुरा दिन भला क्या हो सकता है। अब मैं खुद सड़क पर उतरूंगी, मेरे बच्चों ने मेरी दूघ का अगर एक घूंट भी पीया है, उसे उसी दूध का वास्ता दूंगी और कहूंगी कि मुझे फिर से ऐसी दिल्ली बना दो जिससे मैं कम से कम मुंबई, कोलकता, भोपाल, जयपुर और लखनऊ से आंख मिलाकर बात तो कर सकूं। मुझे पक्का भरोसा है कि एक ना एक दिन मेरे करन अर्जुन आएंगे और मुझे साफ सुथरी बेदाग दिल्ली बनाएंगे।
दिल्ली के बाहर था, आज वापस आया तो "दिल्ली" उदास मिली। पूछा हुआ क्या ? पर कोई जवाब नहीं। परेशान होकर टीवी खोला कि शायद कुछ पता चले, लेकिन नहीं, यहां तो सचिन तेंदुलकर के जन्मदिन दिन का केक काटकर खुशियां मनाई जा रहीं थी। देश भर से सचिन को बधाई देने की अपील की जा रही थी। ये देखकर मन खिन्न हो गया, लगा कि दो दिन पहले जिस गुडिया को टीवी चैनल वाले "देश की बेटी" बता रहे थे और रोना सा मुंह बनाकर सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर रहे थे, आखिर आज उन्हें क्या हो गया ? क्या देश की बेटी स्वस्थ होकर घर आ गई कि उसी टीवी स्क्रिन पर खुशियां मनाई जा रही हैं। सचिन के प्रशंसक नाराज हो सकते हैं, लेकिन मैं पूछना चाहता हूं कि क्या सचिन अपना एक जन्मदिन सादगी से नहीं मना सकते ? देश की बेटियां सड़कों पर हैं, मासूम बेटियों के साथ देश के कई हिस्सों में घिनौनी वारदात से देश सकते मे है। क्या सचिन आज के दिन एक ऐसी प्रतिक्रिया नहीं दे सकते थे कि जिससे पीड़ित मासूम बच्चियां के चेहरों पर दो सेकेंड के लिए ही सही, खुशी तो दिखाई देती। सचिन को आज क्या एक ठोस संदेश नहीं देना चाहिए था, दिल्ली का ये सवाल मेरे दिल को छलनी कर गया।
आइये ! लगे हाथ आईपीएल की बात भी हो जाए। हमें पता है कि नए फार्मेट मे गेम हो रहा है, लाखों लोग इस खेल के प्रेमी हैं और इससे जुड़े हैं, समय मिलता है तो मैं भी मैच देखता हूं। लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि जब देश में एक ऐसी घटना हो गई हो, जिसे लेकर पूरा देश दुखी है। ऐसे में क्या दो चार मैच सादगी से नहीं हो सकते, इन मैचों में लड़कियों को नहीं नचाया जाएगा तो क्या खेल खराब हो जाएगा ? क्या इस खेल की जान अब बल्लेबाजों के चौकों छक्कों में नहीं महज 10 ग्राम कपड़े पहने चीयर गर्ल्स की कमर में सिमट कर रह गया है। हैवानियत की शिकार मासूम बच्चियां देश की विभिन्न अस्पतालों में मौत से जूझ रही हैं और यहां खेल के मैदान पर क्रिकेट के नाम पर नंगा नाच जरूरी है। सब देख रहे हैं कि टीवी के कैमरे सचिन के बेट पर उतना फोकस नहीं रहते जितना चीयर गर्ल्स की टांगों पर फोकस करते हैं। आईपीएल का अगर यही मतलब है तो राजीव शुक्ला साहब तो बेशक आप इसे किसी दूसरे देश में ले जा सकते हैं। वैसे भी आप लोगों के लिए आईपीएल इतना जरूरी है कि देश में चुनाव के दौरान सरकार ने सुरक्षा देने में असमर्थता जताई तो आपने मैच साउथ अफ्रीका में करा लिया, मैच आगे नहीं बढा पाए। इससे साफ है कि आपकी नजर में देशवासियों की क्या हैसियत है।
मैं दिल्ली से बात करता हुआ थोड़ा भटक गया। खैर बात-चीत के दौरान मैने पूछा आखिर आपकी ये हालत किसने बना दी ? किसने आपको इतना लाचार कर दिया कि अपनी आंखो के सामने बेटियों की इज्जत लुटती देखती रहीं ? कैसे एक पुलिस वाला बेटी पर हाथ उठा देता है और आपके बेटे देखते रहते हैं। राक्षसों के चलते बेटियों को फांसी का फंदा लगाने को मजबूर होना पड़ता है। अब अपनी दिल्ली भावुक हो गई, उसकी आंखें भर आईं। दीवार की ओर इशारा किया कि इन लोगों की वजह से न सिर्फ मैं कमजोर हुई, बल्कि अपंग भी हो गई हूं। दीवार पर मैने नजर दौड़ाई तो वहां मनमोहन सिंह और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की तस्वीर लगी हुई थी। मैने कहा मनमोहन सिंह ! इनकी वजह से भला क्यों ? दिल्ली बोली अगर आज इनकी जगह कोई और प्रधानमंत्री होता तो मैं इतना कमजोर कभी नहीं होती। मेरी इस हालत के लिए यही जिम्मेदार हैं, इनकी वजह से ही मेरी ये हालत हुई है। आज कोई सख्त आदमी पीएम होता तो क्या मुझे अहमदाबाद इतनी बातें सुनाकर यहां से चला जाता। लखनऊ, कोलकाता और भोपाल की हैसियत होती कि मेरी ओर आंख उठाकर देखे। आपको याद है ना कि मैने पटना की क्या हैसियत बनाकर रखी थी, लालू पूरे दिन मैडम दिल्ली, मैडम दिल्ली की रट लगाए रखता था, आज पटना की ये हैसियत हो गई कि वो मुझे आंखे तरेरता है। आखिर इसकी वजह तो यही मनमोहन सिंह ही है ना। मुझे भी लगा कि बात तो कुछ हद तक सही ही है। मैने पूछा खैर मनमोहन तो चलिए मान लेते हैं, पर सोनिया क्यों ? दिल्ली बोली मनमोहन की क्या हैसियत है, उसके पीछे ताकत तो उन्हीं की है।
हां ये बात तो बिल्कुल सही है। सिसकियां लेते हुए दिल्ली बोली कि ये दिन मै पहली बार देख रही हूं कि सिर्फ दो आदमी की वजह से एक आदमी कितने दिनों से मेरे सिर पर बैठा हुआ है और मैं लाचार हूं, कुछ नहीं कर पा रही हूं। दो आदमी की बात मैं समझ नहीं पाया, दिल्ली बोली सोनिया और सीबीआई। इनमें से एक भी मनमोहन का साथ छोड़ दे तो इनकी सरकार उसी दिन गिर जाएगी। दिल्ली की ये खरी-खरी बातें सुनकर मैं हैरान था। मैने सोचा कि विपक्ष अगर सरकार की आलोचना करता है तो बात समझ में आती है, लेकिन यहां तो खुद दिल्ली खून के आंसू रो रही है, आखिर दिल्ली को सरकार से इतनी शिकायत क्यों है ? कुछ इधर उधर की बातें करने के बाद मैने दिल्ली से पूछ ही लिया कि आखिर आपको सरकार से इतनी शिकायत क्यों है ? वो बोली आप शिकायत की बात कर रहे हैं, मेरा बस चले तो मैं इन सभी को दिल्ली से बेदखल कर दूं। इस सरकार में कई तो ऐसे हैं जिन्हें अगर सूली पर भी चढ़ा दिया जाए तो कम से कम मुझे तो कोई तकलीफ नहीं होने वाली है। दिल्ली की बातें सुनकर मैं फक्क पड़ गया। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आखिर एक शहर अपने ही रहनुमाओं को सूली पर लटकाने तक की बात क्यों कह रहा है।
बातों का सिलसिला आगे बढ़ा तो मुझे भी लगा कि इन्हें कितनी भी सजा दे दो, वो कम है। कामनवेल्थ गेम में चोरी इन नेताओं ने की, बदनामीं दिल्ली की हुई, टूजी आवंटन में बदमाशी नेताओं ने की, बदमानी दिल्ली की हुई, कोल ब्लाक आवंटन में सबको पता है कि कौन-कौन शामिल है, लेकिन बदनामी दिल्ली के हिस्से आई। आदर्श सोसाइटी में घपलेबाजी में आरोप लगा कि दिल्ली ने लापरवाही बरती, कमजोर बिल्डिंग गिर गई, तमाम लोगों की मौत हुई, जिम्मेदार यहां के नेता और अफसर थे, लेकिन बदनामी दिल्ली के हिस्से में आई। इस सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे हैं, सरकार बुरी तरह फंसी हुई है, पर चर्चा दिल्ली की हो रही है। काफी देर बातचीत के बाद दिल्ली ने एक सवाल मुझसे पूछा, कहा कि आप तो जर्नलिस्ट हैं, आपको पता है कि किस नेता कि कितनी हैसियत है, फिर भी सोनिया गांधी मनमोहन सिंह को आखिर प्रधानमंत्री क्यों बनाए हुए हैं। दिल्ली ने कहाकि मनमोहन ऐसे नेता हैं कि किसी को चुनाव जिता नहीं सकते, खुद चुनाव जीत नहीं सकते, उनकी आर्थिक नीतियां भी ऐसी नहीं है कि देश तरक्की कर रहा हो, फिर सोनिया की आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि अपनी और पार्टी की साख को उन्होंने दांव पर लगा रखा है ? सच में दिल्ली ने मुझसे महत्वपूर्ण सवाल पूछा, इसका जवाब मुझे पता था, लेकिन मैं टालता रहा। मैने दिल्ली से ही जानना चाहा कि उसे क्या लगता है, क्यों सोनिया गांधी ऐसा कर रही हैं। दिल्ली बोली सब अपने बेटे के लिए।
मैं समझ तो गया था, लेकिन मैने ऐसा नाटक किया जैसे मेरी समझ में नहीं आया कि दिल्ली क्या इशारा कर रही है। फिर दिल्ली ने मुझे और करीब आने को कहा। करीब गया तो उसने बताया कि अगर कांग्रेस के किसी मजबूत नेता को प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी दी जाती तो आगे चलकर पता नहीं वो राहुल के लिए कुर्सी छोड़ता या नहीं, लिहाजा बिना रीढ़ के ऐसे आदमी को ये कुर्सी सौंपी गई है, जिससे उनके बेटे को मुश्किल ना हो। मैं दिल्ली की हां में हां मिला रहा था तो उसे मुझ पर और भरोसा हो गया। उसने दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और उनके बेटे संदीप दीक्षित की ऐसी बातें बताईं कि मेरे कान खड़े हो गए। बहरहाल बात लंबी हो जाएगी, इसलिए मैं सारी बातों की चर्चा नहीं कर रहा हूं, लेकिन दिल्ली की बात सुनकर साफ हो गया कि ये दोनों भी ईमानदार नहीं है। संदीप को क्या कहा जाए, गुडिया के साथ हुए अमानवीय कृत्य पर वो दिल्ली के पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार का इस्तीफा तो मांग रहे हैं, लेकिन अपनी मुख्यमंत्री मां शीला दीक्षित के मामले में उनकी जुबान नहीं खुल रही है। दिल्ली बोली कि इसका ये मतलब नहीं कि मैं पुलिस कमिश्नर के काम से संतुष्ट हूं, सच तो ये है कि उन पर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी है, पर वो इसके काबिल ही नहीं हैं। उनकी काबिलियत पर क्या कहूं, उनके आका, बोले तो गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को ही दिल्ली में रहने का हक नहीं है। बहरहाल भ्रष्टाचार के मामले में भी दिल्ली की मुख्यमंत्री की भूमिका पर उंगली उठती रही है, लेकिन उनके सात खून माफ हैं, क्योंकि धब्बा तो दिल्ली पर लग रहा है ना, इसलिए उनसे भला क्या लेना देना।
दिल्ली ने आखिर में जो बात कही, वो सुनकर मै हैरान रह गया। दिल्ली ने कहाकि यहां की संसद का सिर्फ देश में ही नहीं दुनिया में सम्मान और गरिमा है। लेकिन दागदार खद्दरधारी जिनके खिलाफ बलात्कार के मामले न्यायालयों में विचाराधीन है। फिर भी वो दिल्ली आ जाते हैं। मैं इनका चेहरा देखती हूं तो कई बार सोचती हूं कि कोई जरूरी है कि देश की राजधानी मेरे यहां यानि दिल्ली में ही रहे और देश भर के लफंगे यहां आते रहें। दिल्ली ने कहाकि ऐसे तो तमाम लोगों पर आरोप हमेशा से ही लगते रहे हैं, लेकिन जब राज्यसभा के उपसभापति पर ऐसा आरोप लगा तो मैं हिल गई, ईश्वर से मनाती रही कि ये बात गलत हो, वरना ये दाग तो मैं कभी धो नहीं पाऊंगी। खैर आगे देखिए क्या सच सामने आता है। लेकिन दिल्ली एक चीज चाहती है, वो कहती है कि रामसिंह, मनोज और प्रदीप जैसे लोग तो बहुत कमजोर कड़ी हैं, मैं तो चाहती हूं कि बलात्कार के बड़े आरोपी यानि नेता, अफसर और बिजिनेस मैन को पहले रामलीला मैदान मे सरेआम सूली पर चढाया जाए। बलात्कारी कोई भी कांडा यानि कीड़ा जिंदा नहीं रहना चाहिए। सच कहूं तो उसी दिन मेरी आत्मा को शांति मिलेगी। तब मैं कहूंगी कि हां दिल्ली दिलवालों की है, आज तो दिल्ली दरिंदों की है।
महेन्द्र जी एक बार फिर आपने हम सबके दिलों का सच कह दिया सच दिल्ली का क्या हाल है हम सब समझते हैं ।
ReplyDeleteकहाँ से लाऊं वो खिलखिलाती चहचहाती मुस्कुराती दिल्ली अब
अब की बार तो अपनों से ही शर्मसार हुई दिल्ली अब
दरिंदगी की इंतेहा देख देख गर्दन उसकी झुक गयी है
कैसे करे नकाबपोशों को तडीपार दिल्ली अब
मत कहना दिलदार दिल्ली अब
कहो शर्मसार दिल्ली दागदार दिल्ली
ना जाने और कितने देखेगी व्यभिचार दिल्ली
ना जाने और कितनी निर्भया गुडिया की
करेगी इज़्ज़त तार तार दिल्ली
चुप्पी की स्लेट पर चुप्पी की स्याही से कोई चुप्पी कैसे लिखे
ये रूह में गढता छलनी करता आन्तरिक रुदन कोई कैसे सहे
सही कहा आपने, सहमत हूं
Deleteआपका बहुत बहुत आभार
sahi kaha aapne lekin ye sab sirph dilli me hi nahi hai sabhi jagah hamari betiyan asurakshit hai aur hame jaagna hoga ek lambi ladai ke liye
ReplyDeleteजी सही कहा आपने,
Deleteछोटे शहरों की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है
बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteदिल्ली ने अपनी दुखी दास्ताँ खुद बयाँ कर दी...अपने को दागदार करनेवालों का नाम तक ले डाला ...अपनी छाती पे लगे जख्मों को नंगा कर के दिखा दिया .....और क्या चाहिए हम लोगों को सबूत ...दागदार लोगों को नंगा कर फांसी पर लटकाने के लिए ...
ReplyDeleteया फिर ख़ुद चुलू भर पानी में डूबने के लिए ...!!!पर वे शर्म ..वो आत्मस्वभिमान कहाँ से लायें ,यह तो दिल्ली ने इनको बताया ही नही ........बड़े बेशर्म हैं ये !
आभार सर,
Deleteबिल्कुल सही कहा आपने
vicharniy aalekh...
ReplyDeleteशुक्रिया मुकेश जी
Deletesach baat hai kya thi dilli aur in paanch salon me kya bana diya dilli ko...vicharneey aalekh...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteसहमत हूँ आपकी बात से ....आज दिल्ली ही नहीं ...हम भी शर्मिंदा है ||
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteदागदार हो गयी है दिल्ली.
ReplyDeleteइस घटनाओं के अंतरराष्ट्रीय खबर हो जाने से अब हम 'दिल्ली ' से हैं, कहने में झिझक होने लगी है.लोग छूटते ही इन घटनाओं के संदर्भ में /राज्य की सुरक्षा के बारे में सवाल/बात करते हैं.
जी सही कहा आपने, ऐसा होता है।
Deleteउम्मीद है धुलेंगे दाग, पर कब, कहना मुश्किल है।
दिल्ली क्या पूरा देश शर्मशार है - ज्वलंत प्रश्न
ReplyDeleteसही कहा आपने,
Deleteआभार
आज दिल्ली ही नहीं .हम भी बहुत शर्मिंदा है |
ReplyDeleteजी, सही कहा आपने
Deleteअफसोस
बहस छिड गई देश मैं
ReplyDeleteदिलदार या दागदार दिल्ली,
उस मासूम से पूछो तुम तो
सिर्फ जिस्म की प्यासी है दिल्ली
वर्दी दागदार हो गई
कहने को अपराधी की गिरफ्तारी हो गई
मगर क्या तड़प कम हो गई
यह दिल्ली नहीं हर जगह का हाल है
आमजनों की आँखों मैं उठता वही सवाल है
सत्ता के मठादीशो, वर्दी के रुतबे वाले
क्या हमें सुरक्षा दे पाओगे
क्या फिर सड़को पर देवी की सुरक्षा के लिए आंदोलन करवाओगे।
बहस छिड गई देश मैं
ReplyDeleteदिलदार या दागदार दिल्ली,
उस मासूम से पूछो तुम तो
सिर्फ जिस्म की प्यासी है दिल्ली
वर्दी दागदार हो गई
कहने को अपराधी की गिरफ्तारी हो गई
मगर क्या तड़प कम हो गई
यह दिल्ली नहीं हर जगह का हाल है
आमजनों की आँखों मैं उठता वही सवाल है
सत्ता के मठादीशो, वर्दी के रुतबे वाले
क्या हमें सुरक्षा दे पाओगे
क्या फिर सड़को पर देवी की सुरक्षा के लिए आंदोलन करवाओगे।
शुक्रिया नासिर
Deleteदिल्ली ने सच से पर्दा हटा दिया वर्ना देश का हर शहर हर गाँव ऐसे दुष्कर्मों का अपराधी होते हुए भी छिपा हुआ करतूतें कर रहा है... शर्म है इसलिए तो शर्मिंदा है...देखिये पाप का घड़ा कब भरकर फूटता है... गंभीर लेखन... आभार
ReplyDeleteसही कहा आपने,
Deleteआभार
बहुत खूब लेखन साहब | बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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