देवी
के भक्तों ने कल यानि 10 अप्रैल की रात को जमकर उड़ाया नानवेज ! वैसे तो
मैं नवरात्र में पूरे नौ दिन व्रत ना करके पहले और आखिरी दिन ही व्रत करता
हूं, लेकिन कोशिश ये रहती है कि इस दौरान नानवेज से दूरी बनाएं रखें। दूरी
बनाएं रखें का मतलब नवरात्र तक परहेज किया जाए। वैसे मैडम नौ दिन व्रत रहती
हैं, इसलिए घर पर बनाना भी मुश्किल है। अब हुआ ये कि कल शाम बच्चों ने कहा कि 11 अप्रैल यानि कल से नवरात्र शुरू हो रहा है तो नानवेज बंद हो जाएगा, तो क्यों ना आज रात में कुछ नानवेज बाहर से ही मंगा लें। बच्चों की राय मुझे अच्छी लगनी ही थी, क्योंकि मैं तो नानवेज खाने के लिए 40-50 किलोमीटर सफर भी करना पड़े तो पीछे हटने वाला नहीं हूं।
बस फिर क्या होम डिलीवरी के लिए रात नौ साढे नौ बजे के करीब रेस्टोरेंट पर फोन करना शुरू किया। घर से पांच किलोमीटर के दायरे में लगभग 20- 22 रेस्टोरेंट है, कुछ के यहां नानवेज रात नौ बजे के करीब खत्म हो चुका था, कुछ ने कहा कि आज रेस्टोरेंट में बहुत ज्यादा भीड़ है, हम होम डिलीवरी नहीं कर पाएंगे। मैं हैरान रह गया कि देवी भक्तों को आज नानवेज का ये कैसा बुखार चढ़ा है। खैर मैने गाड़ी निकाली और बच्चों को कहा चलो बाहर ही चलते हैं। भाई आप विश्वास कीजिए सात आठ दुकानों पर पहुंचा, जहां दुकानदारों ने कहाकि आज हम आपको नानवेज नहीं खिला पाएंगे। वो खुद भी हैरान थे कि आखिर आज ऐसा क्या हो गया है कि इतने ज्यादा लोग नानवेज मांग रहे हैं। खैर मुझे लगा कि शहरों में कई बार खास मौकों पर ऐसा हो जाता है। बहरहाल मैने अपनी कार का रुख ढाबे की ओर कर दिया, लेकिन यहां भी मुझे निराश होना पड़ा।
आमतौर पर जिन ढ़ाबों पर ट्रकों की लंबी कतारें दिखाई देंती हैं और यहां का नजारा बिल्कुल अलग दिखाई दे रहा था। लंबी-लंबी कारें खड़ी हैं। कुछ उत्साही युवक कारोबार में लगे हुए थे। मैं जानता हूं कि " कारोबार " आपकी समझ में नहीं आएगा, दरअसल ये शब्द मीडिया का है। वैसे आपको इसका अर्थ जानना जरूरी है। कारोबार का मतलब "कार में बार" यानि लोग कार में ही शराब वगैरह पी रहे थे। ये लोग निश्चिंत इसलिए दिखाई दे रहे थे, क्योंकि इनका खाने का आर्डर हो चुका था। खैर मुझे लगा कि यहां इतनी भीड़ जमी हुई है तो नानवेज मिल ही जाएगा। वरना तो यहां सन्नाटा रहता। मैं हैरान हो गया ये जानकार कि ढाबे वाले का नानवेज दो बार खत्म हो चुका था अब वो आखिरी बार बना रहा था और उसका आर्डर बुक हो चुका था और यहां लोग नानवेज बनने का इंतजार कर रहे थे। नया आर्डर ढाबे पर भी नहीं लिया जा रहा था।
आपको पता होगा कि शहरों में कुछ ठेले बहुत फेमस होते हैं, वहां भी नानवेज लोग बड़े ही स्वाद लेकर खाते हैं। ऐसा ही एक ठेला हमारे यहां भी है। मैने कहाकि अब आखिरी विकल्प यही है, ठेले पर चलते हैं और कार में बैठे बैठे ही खाना मंगा लिया जाएगा। रात 11 बजे के करीब ठेले के पास पहुंचा तो वहां का हाल देखकर हैरान रह गया । शामी कबाब का जो तवा रात 12 बजे तक गरम रहता है वो मेरे पहुंचने के पहले साफ हो चुका था और सीक कबाब की अंगीठी भी बुझाई जा चुकी थी। मतलब यहां भी नानवेज की कोई गुंजाइश बाकी नहीं थी। लेकिन अब तो मैं वाकई परेशान हो गया, सोचने लगा आखिर ये क्या बात है? इतने बड़े-बड़े होटल रेस्टोरेंट होने के बाद भी मैं एक दिन अपनी पसंद का खाना नहीं खा सकता ?
मैने भी तय कर लिया कि कुछ भी हो जाए, आज नानवेज तो खाना ही है। बच्चे भी कार में हंस रहे थे कि पापा नानवेज नहीं मिल रहा है तो वेज ही खा लेते हैं, वरना थोड़ी देर बाद वेज खाना भी नहीं मिलेगा और घर चलकर मम्मी को ही कुछ बनाना होगा। बच्चों की ये सामान्य बात भी जैसे मुझे चुभ रही थी । अब तो अंदर से मेरा "जर्नलिस्ट" भी जाग चुका था, जो मुझे धिक्कारने लगा। बताओ श्रीवास्तव जी दूसरे पत्रकार भाई होते तो अब तक नानवेज उनके घर पहुंच चुका होता और वो भी बिना पैसे के। एक आप हो कि दो सौ रुपये के नानवेज के चक्कर में कई लीटर पेट्रोल फूंक चुके हो और पचासों फोन काल अलग। इसके बाद भी नानवेज मिलेगा या नहीं भरोसे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
सच कहूं तो मैं भी किसी को फोन करके नानवेज मंगा सकता था, लेकिन मै संकोच में था। संकोच के अपने इसी स्वभाव के लिए चलते मैं पत्रकारों की मुख्य धारा में आज तक शामिल नहीं हो पाया। हालाकि मैं बहुत दूर तक सोच रहा था कि ऐसा क्या कर सकता हूं, जिससे इस बड़ी समस्या का समाधान हो सके। दिमाग पर काफी जोर देने के बाद भी कुछ सूझ नहीं रहा था। बहरहाल अब तो मैं हार मान गया और घर की ओर वापस चल दिया। अब कहते हैं ना जिसका कोई नहीं उसके साथ भगवान होता है। मैं गेट पर पहुचा तो देख रहा हूं कि एक होम डिलीवरी व्वाय गेट पर शोर मचा रहा था। वो कह रहा था कि खाने का आर्डर कर देते हैं और लेकर आओ तो कहते हैं मैने आर्डर नहीं किया। उसका शोर सुनकर मैने कार गेट पर ही कार रोक दी और नीचे उतरा, पूछा क्या हो गया ? बताया गया कि फ्लैट B 703 से खाने आर्डर किया गया और अब कह रहे हैं कि उन्होंने खाना नहीं मंगाया। मैने पूछा क्या लाए हो ? बोला कढ़ाई चिकन, मटर पनीर, रुमाली रोटी, एक नान और एक मिस्सी रोटी है।
मैने कहाकि अपने रेस्टोरेट में बात करो और कहो कि जिनके यहां खाने की डिलीवरी के लिए आया था, वो तो मना कर रहे हैं कि खाना उन्होंने नहीं मंगाया। लेकिन अपार्टमेंट के दूसरे सज्जन ये डिलीवरी लेने को तैयार हैं, क्या उन्हें दे दूं ? उसके मालिक ने कहा होगा दे दो, उसे मैने 480 रुपये दिए और खाने की डिलीवरी ले लिया। खाने का थैला हाथ में था हम कार में वापस आए तो बच्चों ने भी यही कहा कि आखिर भगवान ने हम लोगों की सुन ली। खैर हम घर पहुंचे, खाना तुरंत खाने की जल्दबाजी इसलिए थी कि सुबह नवरात्र का व्रत करना है इसलिए तारीख बदलने के पहले खाना खा लिया जाए। वैसे भी मैं चाहता था कि नानवेज खाना है तो रात के 12 बजने के पहले ही खा लिया जाए। खैर खाना पीना हो चुका था, मैं टीवी के सामने बैठा हैड लाइन सुन रहा था, इसी बीच इंटरकांम की घंटी बजी।
गेट से सिक्योरिटी वाले ने बताया कि सर वो डिलीवरी वाला लड़का आया है और खाना वापस मांग रहा है। मैने बताया कि अरे भाई हम तो खाना खा चुके हैं। दरअसल गड़बड़ी ये थी कि मेरे अपार्टमेंट का नाम जनसत्ता अपार्टमेंट है और मेरे बगल में सहयोग अपार्टमेंट है। डिलीवरी व्वाय को बताया गया कि जनसत्ता अपार्टमेंट के बगल वाले अपार्टमेंट में ये खाना देना है। अब वो कई आर्डर एक साथ लेकर निकला था, लिहाजा सहयोग अपार्टमेंट जाने के बजाए वो जनसत्ता के गेट पर ही झगड़ा कर रहा था। खैर मुझे वाकई सहयोग अपार्टमेंट के उन सज्जन प्रति सहानिभूति है, जो खाने का आर्डर करके देर रात तक खाने का इंतजार कर रहे थे और उनका खाना मेरे पास आ गया था। खैर सुबह जो बात पता चली, उससे मैं निश्चिंत हो गया कि कोई बात नहीं, क्योंकि वो खाना एक पुलिस अफसर जो उस अपार्टमेंट में रहते हैं, उनके यहां जाना था। ऐसा नहीं हो सकता कि पुलिस अफसर बिना खाना खाए सो जाए। रेस्टोरेंट का मालिक उल्टे पांव भागा-भागा आया होगा दूसरा आर्डर लेकर। खैर मेरा तो मस्त रहा भोजन.. हाहाहहा ।
बस फिर क्या होम डिलीवरी के लिए रात नौ साढे नौ बजे के करीब रेस्टोरेंट पर फोन करना शुरू किया। घर से पांच किलोमीटर के दायरे में लगभग 20- 22 रेस्टोरेंट है, कुछ के यहां नानवेज रात नौ बजे के करीब खत्म हो चुका था, कुछ ने कहा कि आज रेस्टोरेंट में बहुत ज्यादा भीड़ है, हम होम डिलीवरी नहीं कर पाएंगे। मैं हैरान रह गया कि देवी भक्तों को आज नानवेज का ये कैसा बुखार चढ़ा है। खैर मैने गाड़ी निकाली और बच्चों को कहा चलो बाहर ही चलते हैं। भाई आप विश्वास कीजिए सात आठ दुकानों पर पहुंचा, जहां दुकानदारों ने कहाकि आज हम आपको नानवेज नहीं खिला पाएंगे। वो खुद भी हैरान थे कि आखिर आज ऐसा क्या हो गया है कि इतने ज्यादा लोग नानवेज मांग रहे हैं। खैर मुझे लगा कि शहरों में कई बार खास मौकों पर ऐसा हो जाता है। बहरहाल मैने अपनी कार का रुख ढाबे की ओर कर दिया, लेकिन यहां भी मुझे निराश होना पड़ा।
आमतौर पर जिन ढ़ाबों पर ट्रकों की लंबी कतारें दिखाई देंती हैं और यहां का नजारा बिल्कुल अलग दिखाई दे रहा था। लंबी-लंबी कारें खड़ी हैं। कुछ उत्साही युवक कारोबार में लगे हुए थे। मैं जानता हूं कि " कारोबार " आपकी समझ में नहीं आएगा, दरअसल ये शब्द मीडिया का है। वैसे आपको इसका अर्थ जानना जरूरी है। कारोबार का मतलब "कार में बार" यानि लोग कार में ही शराब वगैरह पी रहे थे। ये लोग निश्चिंत इसलिए दिखाई दे रहे थे, क्योंकि इनका खाने का आर्डर हो चुका था। खैर मुझे लगा कि यहां इतनी भीड़ जमी हुई है तो नानवेज मिल ही जाएगा। वरना तो यहां सन्नाटा रहता। मैं हैरान हो गया ये जानकार कि ढाबे वाले का नानवेज दो बार खत्म हो चुका था अब वो आखिरी बार बना रहा था और उसका आर्डर बुक हो चुका था और यहां लोग नानवेज बनने का इंतजार कर रहे थे। नया आर्डर ढाबे पर भी नहीं लिया जा रहा था।
आपको पता होगा कि शहरों में कुछ ठेले बहुत फेमस होते हैं, वहां भी नानवेज लोग बड़े ही स्वाद लेकर खाते हैं। ऐसा ही एक ठेला हमारे यहां भी है। मैने कहाकि अब आखिरी विकल्प यही है, ठेले पर चलते हैं और कार में बैठे बैठे ही खाना मंगा लिया जाएगा। रात 11 बजे के करीब ठेले के पास पहुंचा तो वहां का हाल देखकर हैरान रह गया । शामी कबाब का जो तवा रात 12 बजे तक गरम रहता है वो मेरे पहुंचने के पहले साफ हो चुका था और सीक कबाब की अंगीठी भी बुझाई जा चुकी थी। मतलब यहां भी नानवेज की कोई गुंजाइश बाकी नहीं थी। लेकिन अब तो मैं वाकई परेशान हो गया, सोचने लगा आखिर ये क्या बात है? इतने बड़े-बड़े होटल रेस्टोरेंट होने के बाद भी मैं एक दिन अपनी पसंद का खाना नहीं खा सकता ?
मैने भी तय कर लिया कि कुछ भी हो जाए, आज नानवेज तो खाना ही है। बच्चे भी कार में हंस रहे थे कि पापा नानवेज नहीं मिल रहा है तो वेज ही खा लेते हैं, वरना थोड़ी देर बाद वेज खाना भी नहीं मिलेगा और घर चलकर मम्मी को ही कुछ बनाना होगा। बच्चों की ये सामान्य बात भी जैसे मुझे चुभ रही थी । अब तो अंदर से मेरा "जर्नलिस्ट" भी जाग चुका था, जो मुझे धिक्कारने लगा। बताओ श्रीवास्तव जी दूसरे पत्रकार भाई होते तो अब तक नानवेज उनके घर पहुंच चुका होता और वो भी बिना पैसे के। एक आप हो कि दो सौ रुपये के नानवेज के चक्कर में कई लीटर पेट्रोल फूंक चुके हो और पचासों फोन काल अलग। इसके बाद भी नानवेज मिलेगा या नहीं भरोसे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
सच कहूं तो मैं भी किसी को फोन करके नानवेज मंगा सकता था, लेकिन मै संकोच में था। संकोच के अपने इसी स्वभाव के लिए चलते मैं पत्रकारों की मुख्य धारा में आज तक शामिल नहीं हो पाया। हालाकि मैं बहुत दूर तक सोच रहा था कि ऐसा क्या कर सकता हूं, जिससे इस बड़ी समस्या का समाधान हो सके। दिमाग पर काफी जोर देने के बाद भी कुछ सूझ नहीं रहा था। बहरहाल अब तो मैं हार मान गया और घर की ओर वापस चल दिया। अब कहते हैं ना जिसका कोई नहीं उसके साथ भगवान होता है। मैं गेट पर पहुचा तो देख रहा हूं कि एक होम डिलीवरी व्वाय गेट पर शोर मचा रहा था। वो कह रहा था कि खाने का आर्डर कर देते हैं और लेकर आओ तो कहते हैं मैने आर्डर नहीं किया। उसका शोर सुनकर मैने कार गेट पर ही कार रोक दी और नीचे उतरा, पूछा क्या हो गया ? बताया गया कि फ्लैट B 703 से खाने आर्डर किया गया और अब कह रहे हैं कि उन्होंने खाना नहीं मंगाया। मैने पूछा क्या लाए हो ? बोला कढ़ाई चिकन, मटर पनीर, रुमाली रोटी, एक नान और एक मिस्सी रोटी है।
मैने कहाकि अपने रेस्टोरेट में बात करो और कहो कि जिनके यहां खाने की डिलीवरी के लिए आया था, वो तो मना कर रहे हैं कि खाना उन्होंने नहीं मंगाया। लेकिन अपार्टमेंट के दूसरे सज्जन ये डिलीवरी लेने को तैयार हैं, क्या उन्हें दे दूं ? उसके मालिक ने कहा होगा दे दो, उसे मैने 480 रुपये दिए और खाने की डिलीवरी ले लिया। खाने का थैला हाथ में था हम कार में वापस आए तो बच्चों ने भी यही कहा कि आखिर भगवान ने हम लोगों की सुन ली। खैर हम घर पहुंचे, खाना तुरंत खाने की जल्दबाजी इसलिए थी कि सुबह नवरात्र का व्रत करना है इसलिए तारीख बदलने के पहले खाना खा लिया जाए। वैसे भी मैं चाहता था कि नानवेज खाना है तो रात के 12 बजने के पहले ही खा लिया जाए। खैर खाना पीना हो चुका था, मैं टीवी के सामने बैठा हैड लाइन सुन रहा था, इसी बीच इंटरकांम की घंटी बजी।
गेट से सिक्योरिटी वाले ने बताया कि सर वो डिलीवरी वाला लड़का आया है और खाना वापस मांग रहा है। मैने बताया कि अरे भाई हम तो खाना खा चुके हैं। दरअसल गड़बड़ी ये थी कि मेरे अपार्टमेंट का नाम जनसत्ता अपार्टमेंट है और मेरे बगल में सहयोग अपार्टमेंट है। डिलीवरी व्वाय को बताया गया कि जनसत्ता अपार्टमेंट के बगल वाले अपार्टमेंट में ये खाना देना है। अब वो कई आर्डर एक साथ लेकर निकला था, लिहाजा सहयोग अपार्टमेंट जाने के बजाए वो जनसत्ता के गेट पर ही झगड़ा कर रहा था। खैर मुझे वाकई सहयोग अपार्टमेंट के उन सज्जन प्रति सहानिभूति है, जो खाने का आर्डर करके देर रात तक खाने का इंतजार कर रहे थे और उनका खाना मेरे पास आ गया था। खैर सुबह जो बात पता चली, उससे मैं निश्चिंत हो गया कि कोई बात नहीं, क्योंकि वो खाना एक पुलिस अफसर जो उस अपार्टमेंट में रहते हैं, उनके यहां जाना था। ऐसा नहीं हो सकता कि पुलिस अफसर बिना खाना खाए सो जाए। रेस्टोरेंट का मालिक उल्टे पांव भागा-भागा आया होगा दूसरा आर्डर लेकर। खैर मेरा तो मस्त रहा भोजन.. हाहाहहा ।
dane dane par likha hai khane vale ka nam......
ReplyDeleteaapka khana ghar par intajar kar raha tha aur aap poore shahr me bhatk rahe the.
bahut majedar vakaya
nav varsh ki shubhkamnaye....
जी ये तो है, दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, बिल्कुल सही।
Deleteनए वर्ष की आपको भी शुभकामनाएं
शुक्र है आखिर भगवान ने आपकी सुन ही ली :)
ReplyDeleteनव वर्ष, विक्रमी सम्वत 2070 की हार्दिक शुभकामनायें.
हाहाहहाहा, जी ये तो है। सुन तो लिया भगवान ने..
Deleteनए वर्ष की आपको भी शुभकामनाएं
आपके व्यवहारिक अनुभव बतलाते हैं कि मांस के लिए आकर्षण और देवियों के लिए श्रद्धा में संतुलन बनाकर चलने में भारतीय लोगों का कोई मुकाबला नहीं है.
ReplyDelete♥ आपकी पोस्ट चमक रही है 'ब्लॉग की ख़बरें' पर-
http://blogkikhabren.blogspot.in/2013/04/nonveg.html
आमतौर पर हम लोग कोशिश करते हैं कि नवरात्रों में नानवेज से परहेज करें।
Deleteशुक्रिया
खाने-पीने वालों को कौन रोक सकता है,.चलिए ९ दिन देवी भक्तों के पेट को कुछ आराम हो जाएगा ..
ReplyDeleteआपकी साफगोई से भरी प्रस्तुति अच्छी लगी।।
..नवरात्र की शुभकामनाएं
आपका बहुत बहुत आभार
Deleteनए वर्ष की आपको भी शुभकामनाएं
your blog has been posted by Mr Anvar Jamal on navbharattimes, I hope he might have got your permission for that. I like original items that's why posting copy of my message here too and one may fine me there as "sharad on nbt" enjoy !!
ReplyDeleteबाई जी धंधा छोड़ सकती है पर रात को जागना नही छोड़ सकती ?? डाक्टर जमाल साहब देवी-भक्त आपके मजहब मे नही होते फिर उनकी इतनी चिंता क्यो ?? आखिर क्यो दूसरो मे मजहबो मे घुसे रहते हो ?? और ब्लॉग भी अपना ना लिख कर दूसरे का :)) क्या खुद अपनी तारीफ के कसीदे पढने वाले जनाब जमाल साहब के ब्लॉगिंग के नाम पर इतनी मुफ़लिसी के दिन आ गये है कि औरो के ब्लॉग की भिक्षा से गुजरा करना पड रहा है :)) .....आपकी हकीकत वही है जो हम काफी पहले साबित कर चुके है!! दो चार ब्लॉग भाईचारे, इस मर्ज़ की दवा...लिख कर फिर अपनी असलियत पर आ जाओगे ?? अब ब्लॉग की बात....
नवरात्र 11 एप्रिल से शुरु हो रहे है तो 10 एप्रिल की तारीख को इतनी हाय-तौबा क्यो ?? 10 तारीख को तो इंसान कुछ भी खा सकता है ?? और आपका ए पिट्ठू मोहरा महेन्द्र साहब देवी-भक्त नही है, देवी भक्त होते तो पूरे नौ दिन के व्रत रखते .... वैसे 40 दिन के रोज़े तो इस्लाम वाले भी रखते है , क्या पहला और आखिरी रोज़ा रखने वाले और पूरे 40 रोज़े रखने वालो को आप एक तराजू मे तौल सकते हो ?? एक इंसान की बकवास को आप सारे हिन्दुओ की धार्मिक आस्था के खिलाफ इस्तेमाल करने को सही मानते हो ?? अपने ब्लॉग लिखिये ब्लॉग्स की दलाली अच्छी बात नही है :)) .... वैसे आपके यहा तो रोजो के दौरान भी हमने लोगो को अपनी आंखो से सुबह-2 ठूंस-2 कर खाते देखा है और शाम को खाने पर भ़ुखहड़ो की तरह टूट पड़ते देखा है , ऐसी एक फोटो दिखा कर हम सारे मुसलमानो का मजाक उडाये तो अच्छा लगेगा ??आपकी इस कोशिश को सर माते रखते हुए अब हम एक मुस्लिम आतंकवादी को आधार मान कर सारे मुसलमानो को आतंकवादी काहे तो आपको तो बेहद खुशी होनी चाहिये :)) ....दूसरो की बजाय अपना मजहब संभाल लीजिये जनाब और रही बात जर्मनी वालो की तो साहब कबाडी हर जगह है जैसे हमारे देश के कुछ कबाडी चेनल्स को पाकिस्तान के कबाड़ कलाकार(?) भी काफी पसंद आते है ....आशा करते है ए कॉमेंट "इसी साइट पर" छप जाना चाहिये ....धन्यवाद
पहले तो मुझे ऐसे लोगों से बात करने में बहुत मुश्किल होती है जो छिपकर चोर रास्ते से बातें करते हैं।
Deleteजो आदमी सामने आकर आंख मिलाकर अपनी बात नहीं रख पाता, इससे साफ है कि कहीं ना कहीं उसके मन में दुविधा है या फिर वो कमजोर आदमी है, सारी आदमी लिख दिया।
वैसे मैं धर्म कर्म की गूढ़ता में जाना ठीक नहीं समझ रहा हूं, क्योंकि यहां मैं किसी की धार्मिक आस्था पर सवाल नहीं उठा रहा हूं। मैने तो अपनी बात की है और जो माहौल रहा है, उसे बताया है।
लेकिन मैं अपने मित्र को बता दूं कि अगर वो देवी देवताओं के बारे में बेसिक जानकारी भी रखते हैं तो उन्हें पता होना चाहिए कि हमारे यहां ज्यादातर देवी देवताओं को बलि चढाने की परंपरा है।
मैं मिर्जापुर का रहने वाला हूं और हम सब माता विंध्यावासिनी देवी की पूरी विधिवत पूजा अर्चना करते हैं। अब भीड़ ज्यादा होने की वजह से चीजें खत्म सी हो गई हैं, वरना कुछ साल पहले नवरात्रों में वहां देवी के सामने बकरे की बलि दी जाती थी और बलि के बाद बकरे का मांस प्रसाद के तौर पर श्रद्धालुओं को दिया भी जाता रहा है। मुझे नहीं पता कि ये महाशय किस धर्म को और कितना जानते हैं।
जरा दिमाग के द्वार खोल कर रखिए और बड़ी सोच जीवन में लाइये। आराम से रहेंगे। हां एक बार फिर अगर आंख मिलाकर बात नहीं कर सकते, तो यहां सार्वजनिक मंच पर बात करने का कोई हक नहीं है। मस्त रहिए।.
हमारे Anonymous साहब का एक और मैसेज है, मुझे लगता है कि वो किसी कट्टर हिंदू समर्थक संस्था के कार्यकर्ता है, क्योंकि ऐसे लोगों की सोच का ना कोई दायरा होता है और ना ही बंधन या फिर मर्यादा। हर बात को हरा बनाम भगवा करते रहते हैं। छोड़िए..
Deleteहां उन्हें कविता रावत मेम पर एतराज है कि उनके कमेंट में भी तो उनकी तस्वीर नहीं है। इससे मुझे लगा कि ये शख्स जो भी हैं, इसे माफ कर देना ही उचित है। कविता रावत जी को अगर हिंदी का कोई ब्लागर नहीं जानता है तो मैं समझता हूं कि वो ब्लाग की एबीसीडी नहीं जानता।
मै फिर ऐलान करता हूं कि मैं वाकई सच्चा देवी भक्त हूं, हमारे पुऱखे तो माता विन्ध्यवासिनी देवी को दी जाने वाली बकरे की बलि का प्रसाद नवरात्रों में भी लिया करते थे। अब ये प्रथा वहां बंद है, वरना मुझे भी कोई संकोच नहीं होता ।
मैं अपनी धार्मिक आस्था की चाबी किसी और के हाथ में देने वाला नहीं हूं।
आपका बहुत बहुत आभार
ReplyDeleteनए वर्ष की आपको भी शुभकामनाएं
bahut majedar rahi aapki pareshani par ye to bataiye ki navratri me shakahar apnane vaale kya man se bhi shakahar hote hain ?
ReplyDeleteजी आपका बहुत बहुत आभार
Deleteसच कहूं तो आपका सवाल एक वैचारिक बहस की श्रेणी में आता है। इस पर लंबी बहस हो सकती है। आपको पता होगा कि बहुत सारे लोग कई वजहों से साग सब्जी को भी शाकाहार नहीं मानते है।
खैर, मुझे वाकई नानवेज बहुत पसंद है। मैं लंच डिनर क्या ब्रेकफास्ट में भी नानवेज ले सकता हूं।
|आपकी कहानी दिलचस्प रहीः)
ReplyDeleteनवरात्र की शुभकामनाएँ !!
जी, आपका बहुत बहुत आभार
Deleteआपको भी नवरात्र की ढेर सारी शुभकामनाएं..
सर जी,वैसे तो मैं प्योर वेजीेटेरिअन हूं लेकिन आपका
ReplyDeleteअदभुत अनुभव पढकर आनंद आ गया.
हाहाहाहाह..
Deleteजी आपका बहुत बहुत आभार
किसी के कुछ कह देने से हमारी हिंदू धर्म से श्रधा नही बदल जायेगी.बुरा न माने -आपकी पोस्ट का शीर्षक भी किसी व्यक्ति के धर्मिक भावना को ठेस पहुचने वाला है.वाद विवाद होना सही है पर धर्म के बारे में न हो.
ReplyDeleteभाई राजेन्द्र जी धर्म को लेकर आप संवेदनशील है, मुझे अच्छा लगा। लेकिन आप ये कैसे कह सकते हैं कि धर्म के प्रति मेरी आस्था कुछ कमजोर है।
Deleteमैने तो एक हकीकत बयां किया कि नवरात्र शुरु होने के एक दिन पहले नानवेज पर कैसे टूटे लोग। इसमें मैं भी शामिल था। वजह सिर्फ ये कि अब नौ दिन मैं नानवेज नहीं खाने वाला हूं।
इससे तो ये साफ होता है ना कि धर्म के प्रति मेरे भीतर कितनी आस्था है। रही बात शीर्षक की.. सच कहूं मैं अभी भी इस मत का हूं कि इसमें कोई गलत बात नहीं हैं। अगर देवी भक्त ना होते तो उसी रात नानवेज के लिए इतने उतावले नहीं होते, समझ लेते कि आज भीड़ है, कल मंगा लेगें, लेकिन अगले दिन से नवरात्र शुरू होने वाला था.. । ऐसी श्रद्धा रखने वालों को क्या हम देवी भक्त नहीं कह सकते ?
बढ़िया है..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteचलिए पेटपूजा तो अच्छी हुई ना.
ReplyDeleteनवरात्र की ढेर सारी शुभकामनाएं
हाहाहाह,
Deleteजी वो तो हो गई
आपकी इस पोस्ट के कारण मेरा मन आज ही नानवेज खाने का हो रहा है , चुपचाप खाकर आते हैं ..
ReplyDeleteशुभकामनायें नवरात्रों की !
हाहाहहााह...
Deleteनहीं नहीं, अब तो दो दिन ही नवरात्र के बाकी हैं, रुका जा सकता है।
बहुत बहुत आभार ..