संडे ! यानि साप्ताहिक अवकाश बोले तो आराम का दिन। लेकिन क्या करें, मैने अपना कीमती समय देश के दो कौड़़ी के राजनेताओं और उनकी दो कौड़ी की राजनीति पर खराब कर दिया। काफी देर तक कुर्सी के लालचखोरों यानि जनता दल यू के नेताओं का भाषण सुनता रहा। वैसे जनता दल यू और बीजेपी की बात तो आगे करूंगा ही लेकिन आज जेडी यू के राष्ट्रीय अधिवेशन में पूरे दिन जो कुछ भी चलता रहा, उससे एक बात और साफ हो गई कि पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव की उतनी ही हैसियत है जितनी इस पार्टी की औकात मिजोरम में है। मतलब साफ है मिजोरम में जद यू की ना कोई हैसियत है, ना कोई पकड़ है और ना ही कोई इस पार्टी को भाव देता है। शरद यादव की भी अब इस पार्टी में इतनी ही हैसियत रह गई है। देखिए ना राष्ट्रीय अधिवेशन को अध्यक्ष की हैसियत से संबोधित करने के दौरान शरद यादव ने पार्टी के नेताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाया और कहाकि बीजेपी के साथ हमारा गठबंधन मुद्दों पर आधारित है और अभी ऐसा कुछ नहीं है कि एक दूसरे के खिलाफ सख्त टिप्पणी की जाए। लेकिन कुछ देर बाद जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बारी आई तो उन्होंने तो ना सिर्फ गठबंधन धर्म की बल्कि नैतिकता की भी सारी सीमाएं तोड़ दीं। शरद जी से मैं कई मुद्दों पर बात करने जाता रहा हूं, वो बड़ी बड़ी बातें करते हैं, लेकिन आज पार्टी में उनकी हैसियत देखकर वाकई हैरानी हुई। फिर मन में एक सवाल उठा कि जिस शरद को उनकी पार्टी में ही लोग नहीं पूछते तो इतने कमजोर नेता को एनडीए का संयोजक कैसे बनाया जा सकता है?
खैर ये तो रही शरद यादव की बात। हम आज बात करेंगे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की। नीतीश कुमार का जो राजनीतिक चरित्र सामने आ रहा है, वो देखकर मैं वाकई हैरान हूं। सच कहूं तो नीतीश एक ऐसे शाकाहारी राजनीतिक हैं, जिन्हें मांस तो पसंद है, लेकिन उन्हें इस मीट की तरी से सख्त ऐतराज है। अब आप ही देखिए नीतीश कितने समय से नानवेज का मजा लेते आ रहे हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी आज उनकी आंख की किरकिरी बन गए हैं। सिर्फ एक समुदाय के वोट के लिए नीतीश इस स्तर पर आकर राजनीति करेंगे, मैने तो कभी कल्पना नहीं की थी। एक सवाल पूछता हूं, गुजरात दंगे के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नीतीश कुमार रेलमंत्री थे। गुजरात में जो कुछ भी हुआ आपने सब देखा था, गोधरा में ट्रेन में आग लगाए जाने के बाद इसकी शुरुआत हुई और इसके बाद पूरे गुजरात में आग धधक गई। उस समय प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने कम से कम इतनी हिम्मत जुटाई कि गुजरात में जाकर नरेन्द्र मोदी को राजधर्म का पाठ पढाया, लेकिन नीतीश तो चुप थे ना। आखिर क्या वजह थी उनकी चुप्पी की ?
मैं पूछता हूं कि अगर आप अपनी रेलमंत्री की कुर्सी की लालच छोड़ देते और उसी समय प्रधानमंत्री पर दबाव बनाते की नरेन्द्र मोदी की सरकार को बर्खास्त किया जाना चाहिए, वरना केंद्र की सरकार में बने रहना उनके लिए मुश्किल होगा, तो शायद ये नौबत ना आती। हो सकता है कि उसी दौरान भारी दबाव में मोदी के पर कतर दिए जाते। लेकिन नीतीश जी आप पूरे पांच साल केंद्र सरकार में मंत्री बने रहे और बीजेपी के साथ रामधुन गाते रहे। इस समय कोई नीति नहीं, कोई अल्पसंख्यक प्रेम नहीं, अब 10 साल बाद अचानक आप एक खास समुदाय के हितैषी नजर आने लगे। सही मजा ले रहे है नीतीश जी ! भाई बिहार का अल्पसंख्यक इतना बेवकूफ है क्या कि वो आपके चाल में आ जाएगा। अगर आप सच में अल्पसंख्यकों के प्रति ईमानदार हैं और आपको इनसे हमदर्दी है तो पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी का त्याग कीजिए, क्योंकि ये बीजेपी की बैशाखी पर टिकी हुई है। लेकिन आप ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि आप राजनीति ही कुर्सी और वोटों के लिए करते रहे है। मुझे तो लगता है कि आप जब तक बीजेपी की कृपा पर मुख्यमंत्री हैं तब तक आपके लिए धर्मनिरपेक्षता की बात करना बेमानी है। अच्छा देश ने आपका असली चेहरा भी देखा है। शनिवार की रात तो आप बीजेपी नेताओं की चौखट पर मत्था टेकते नजर आए, पहले आपने बंद कमरे में बीजेपी नेता अरुण जेटली से मुलाकात की और फिर देर रात चुपचाप बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ के घर चले गए। वो तो अच्छा रहा कि मीडिया के कैमरे हर बीजेपी नेता के दरवाजे पर लगे रहे, वरना आप तो ये भी छिपा जाते कि रात के अंधेरे में बीजेपी के नेताओं से मुलाकात की। अगर देश खासतौर पर बिहार के अल्पसंख्यकों से कुछ छिपाया नहीं जा रहा है तो आपको साफ साफ बताना चाहिए कि इन मुलाकातों के दौरान क्या बात हुई ?
रही बात बीजेपी नेताओं की तो चाहे अरुण जेटली हों या फिर पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह दोनों ने साफ साफ कह दिया है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पार्टी के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। नेताओं के ये भी कहना है कि मोदी एक ऐसे नेता हैं जिनके विचारों को देश की जनता बहुत ध्यान से सुनती है। फिर देश को पता है कि भारतीय जनता पार्टी जिस प्रकार की राजनैतिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है वह हिंदुत्व, रामजन्म भूमि, धारा 370, समान नागरिक संहिता आदि अनेक संवेदनशील विषयों में एक अलग प्रकार का वैचारिक आरक्षण रखती है और मात्र इन विषयों के साथ ही भाजपा के राष्ट्रवाद के विचार का पोषण होता है। ये तथ्य भारतीय राजनीति में जदयू सहित किसी से छिपा नहीं है। नीतीश इन सब बातों को जानकर भी अगर लंबे समय से बीजेपी के साथ जुड़े हुए हैं तो आखिर अब 2013 में क्या हो गया जो 2002 गुजरात दंगे से ज्यादा गंभीर मसला बन गया है। खैर मैं इन बातों में नहीं जाना चाहता, लेकिन सच यही है कि अगर साबरमती ट्रेन से अयोध्या से कार सेवा कर लौट रहे 56 यात्रियों को ज़िंदा जलाकर उनकी नृशंस ह्त्या न की गई होती तो शायद गुजरात में ऐसा दंगा न भड़कता। मगर ये पूरा मामला आज भी अदालतों में है, लिहाजा इस पर बात करना बेमानी होगी।
सबसे हास्यास्पद क्या है ? अल्पसंख्यकों के सबसे बड़े हितैषी समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों को बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी से कोई तकलीफ नहीं हैं। मुलायम सिंह यादव भी इन दिनों खुलेआम आडवाणी की तारीफ कर रहे हैं और नीतीश भी कह रहे हैं कि आडवाणी को अगर प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता है तो उन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी। अब क्या कहूं, मुझे लगता है कि अगर अल्पसंख्यकों को किसी नेता से सबसे ज्यादा तकलीफ होगी तो वो आडवाणी ही हो सकते हैं, क्योंकि रामरथ पर सवार होने के दौरान देश में जो हालात थे, वो किसी से छिपे नहीं हैं। फिर बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने के दौरान भी अयोध्या में आडवाणी मौजूद थे। ऐसे में आखिर ऐसा क्या है कि आडवाणी से दोनो नेताओं को तकलीफ नहीं है, लेकिन मोदी से है। आपको बता दूं इसमें कोई राकेट साइंस नहीं है, सबको लगता है कि आडवाणी फेल हो चुके हैं, अगर उन्हें उम्मीदवार बनाया जाता है तो सहयोगी दलों की भूमिका एनडीए में मजबूत बनी रहेगी। लेकिन मोदी के आने के बाद पासा पलट सकता है, हो सकता है कि यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार से परेशान जनता मोदी में विश्वास जताए और उन्हें पूर्ण बहुमत के करीब पहुंचा दे। मोदी के खिलाफ म्यान से तलवार निकालने की एक ये भी साजिश हो सकती है।
पिछले महीने नीतीश दिल्ली आए और यहां अधिकार रेली की। कहा तो गया कि वो बिहार के हजारों लोगों के साथ यहां अपना अधिकार मांगने आएं हैं, लेकिन वो जिस तरह से अपनी बात रख रहे थे, एक बार भी नहीं लगा कि वो अधिकार मांग रहे हैं, बल्कि मैसेज यही गया कि वो केंद्र से भीख मांग रहे हैं, लेकिन आज जिस राजनीतिक दल यानि बीजेपी की बदौलत वो बिहार में कुर्सी पर जमें हुए हैं, उनसे भीख मांगने के बजाए अधिकार की बात कर रहे थे। एक बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही है कि एक क्षेत्रीय पार्टी का नेता दिल्ली में राष्ट्रीय पार्टी के कद्दावर नेता को खरी खरी सुनाकर चला गया और बीजेपी गूंगी बहरी क्यों बनी रही ? पार्टी का कोई बड़ा नेता तुरंत नीतीश को भी खरी खरी सुनाने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा सका ? बीजेपी के लगातार कमजोर होने की एक ये भी बड़ी बजह है। अगर आज बीजेपी ने हिम्मत जुटाई होती तो शाम होते होते तस्वीर बदल गई होती। मुझे लगता है कि नीतीश आज रात चैन की नींद नहीं सो पाते और रात भर बीजेपी नेताओं के दरवाजे पर मत्था टेकते नजर आते। लेकिन बीजेपी की कमजोर नेतृत्व और अंदरुनी उठा-पटक के चलते ये मौका बीजेपी ने गवां दिया।
अब देखिए सिख दंगों के लिए जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी को देश की जनता और नेताओं ने माफ कर दिया, जबकि इस दंगे में देश भर में हजारों सिखों की मौत हुई। उसके बावजूद स्व. राजीव गांधी का बयान आया कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो.. मतलब साफ कि धरती हिलती ही है। यानि उन्हें इसके लिए कोई अफसोस नहीं था। दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने बेहमई में 21 ठाकुरों को लाइन से खड़ा कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया, उस फूलन देवी को मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में शामिल किया और मिर्जापुर से चुनाव लड़ाकर संसद भेजा। उत्तराखंड की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में महिलाओं के साथ जो क्रूरता (बलात्कार) यूपी पुलिस ने की, मुलायम को इसके लिए भी लोगों ने माफ कर दिया। लेकिन मोदी को कोई माफ करने को तैयार क्यों नहीं है ? एक मिटन, इसका ये मतलब नहीं कि गुजरात में जो कुछ हुआ मैं उसका समर्थक हूं। बिल्कुल नहीं, उसकी मैं कडे शब्दों में निंदा करता हूं और मानता हूं कि मोदी प्रशासन अगर चुस्त रहता तो ऐसी घटनाओं को टाला जा सकता था। इस दंगे में तमाम बेगुनाहों की मौत हुई, पीड़ित परिवारों के साथ मेरी पूरी सहानभूति है, लेकिन मैं कहता हूं कि देश में तमाम बड़ी बड़ी घटनाएं हुई हैं और हम उसे भूल कर आगे बढ़े हैं, फिर गुजरात के मुद्दे पर क्यों इतना कठोर हो जाते हैं ? मेरा तो मानना है कि आज बहस भ्रष्टाचार को लेकर होनी चाहिए थी, लेकिन बहस उल्टी चल रही है। जो हालात हैं उसे देखकर तो मैं यही कहूंगा कि नायक नहीं खलनायक हैं नीतीश । एक पुरानी बात याद आ रही है, आप भी सुनिए...
वृक्षारोपड़ का कार्य चल रहा था,
नेता आए, पेड़ लगाए
पानी दिया, खाद दिया,
जाते-जाते भाषण झाड़ गए,
गाड़ना आम का पेड़ था
पर, बबूल गाड़ गए !
पूरा सच -
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति -
शुभकामनायें आदरणीय ||
शुक्रिया भाई जी
Deleteबहुत बहुत आभार सर
ReplyDeleteशासन में कभी भी सुदृढ सोच वाले नेता को पसन्द नहीं किया जाता, जबकि जनता ऐसे ही नेता को पसन्द करती है। आज सत्ता के लिए जितनी धमाचौकड़ी मची है, और न जाने कितने नेता और कितने दल एक दूसरे को ब्लेकमेल करके लाभ ले रहे हैं, ये सब कमजोर शासक की देन है। इसलिए सभी को लगता है कि यदि मोदी आ गया तो यह ब्लेकमेलिंग बन्द होगी या कम अवश्य हो जाएगी। सारी तरफ विरोध इसी बात का है। नीतीश कुमार की औकात तो वैसे ही सामने आने वाली है, जो जितना ज्यादा चिल्ला रहा है मानो वह डर रहा है। राजनीति में ऐसे ही दावपेच चलते रहते हैं, आगे भी चलेंगे।
ReplyDeleteबिल्कुल सहमत हूं..
Deleteबहुत बहुत आभार
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ReplyDeleteहमेशा की तरह बढ़िया आलेख !
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार
Deleteनितीश जी अभी मुस्लिम वोट को भुनाने के चक्कर में पड़े है.देखिये आगे होता है क्या...आपका आलेख हमेशा की तरह रोचक और बढ़िया है.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार राजेन्द्र जी
Deleteराजनीति उस चिड़िया का नाम है जो किसी डाल पर नहीं बैठती----
ReplyDeleteवर्तमान के माहौल का बहुत खूब खाका खींचा है
सार्थक आलेख
उत्कृष्ट प्रस्तुति
शुभकामनायें
बहुत बहुत आभार खरे साहब
Deleteवृक्षारोपड़ का कार्य चल रहा था,
ReplyDeleteनेता आए, पेड़ लगाए
पानी दिया, खाद दिया,
जाते-जाते भाषण झाड़ गए,
गाड़ना आम का पेड़ था
पर, बबूल गाड़ गए !
बहुत सही ....
बहुत बहुत आभार
Deleteये देश कई सालों से खिचड़ी खा के बदहजमी का शिकार हो चुका है.... पुन: शक्ति प्राप्त करने के लिए रिच डाईट कि आवश्यकता है....
ReplyDeleteखालिस खीर... खालिस मोदी.
हां, बात तो काफी हद तक सही है.
Deleteबहुत बहुत आभार
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /४/ १३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteकेवल नितीश ?
ReplyDeleteकौन नहीं है हाज़तमंद
जी ये बात भी सही है.
Deleteराजनीति में सभी चोर उचक्के और कमीने हैं |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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कुछ चाहत ,कुछ मज़बूरी
ReplyDeleteबना दे अपनो से दूरी
बिना ये सब करे -धरे
कुर्सी की दास्ताँ अधूरी ....
वाह! रे नतीश !
रोचक दास्ताँ ....