ये कैसी टीम है भाई जो अपने कप्तान की ही ऐसी तैसी करती रहती है। अन्ना ने तो खुद बीते शुक्रवार यानि दो दिन पहले बाबा रामदेव से गुड़गांव में मुलाकात की और मुलाकात के बाद बकायदा प्रेस कान्फ्रेंस में ऐलान किया कि लोकपाल और कालेधन के मसले पर हम दोनों में कोई मतभेद नहीं है। दोनों लडाई साथ लड़ी जाएगी और हम दोनों कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन को आगे बढाएंगे। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में 1 मई से आंदोलन चलाने की भी घोषणा की गई। अब 48 घंटे नहीं बीते और टीम अन्ना ने बैठक कर साफ कर दिया कि बाबा रामदेव के साथ साझा आंदोलन नहीं चलाया जा सकता। हां जब रामदेव को हमारी जरूरत होगी तो हम उनका साथ देंगे, वैसे ही जब हमें उनकी जरूरत होगी तो हम उनकी मदद लेंगे।
अब मैं ये नहीं समझ पा रहा हूं कि जब अन्ना की राय कोई मायने ही नहीं रखती तो ये टीम अन्ना कैसे है ? इस टीम का नाम तो वो होना चाहिए जिसकी राय को लोग आदेश मानते हों। या फिर ये मान लिया जाए कि अन्ना इस टीम के सिर्फ मुखौटा भर हैं, चूंकि अन्ना का चेहरा बिकता है, इसलिए टीम के बाकी सदस्य मजबूरी में उनकी अगुवाई को स्वीकार कर रहे हैं। वैसे आपको याद दिलाऊं, जब अन्ना और रामदेव शुक्रवार को मीडिया के सामने आए तो टीम अऩ्ना का कोई सदस्य वहां नहीं था। उसी समय मीडिया को लग गया था कि अन्ना यहां जो कुछ भी कह लें, ये बात मानी नहीं जाएगी। इसीलिए एक पत्रकार साथी ने सवाल भी दागा कि यहां टीम अन्ना का कोई सदस्य क्यों नहीं मौजूद है ? जवाब अन्ना के बजाए बाबा रामदेव ने दिया, बोले अरविंद केजरीवाल को यहां होना चाहिए था, पर वो मंत्रियों का काला चिट्ठा तैयार कर रहे हैं, इसलिए यहां नहीं आए। जबकि सच ये था कि रामदेव के साथ टीम अन्ना कोई संपर्क रखना ही नहीं चाहती। अब इस बात का खुलासा भी हो गया।
अब बडा सवाल ये है कि आखिर टीम अन्ना को बाबा रामदेव से परहेज क्यों है? क्या बाबा रामदेव कुछ ऐसा वैसा कर रहे हैं, जो देशहित में नहीं है? क्या बाबा रामदेव की मांग जायज नहीं है? क्या बाबा रामदेव निष्पक्ष नहीं है? क्या बाबा रामदेव दागी हैं? क्या बाबा रामदेव का मुद्दा राष्ट्रविरोधी है ? मैं व्यक्तिगत रूप से बाबा रामदेव को कभी भी राष्ट्रविरोधी नहीं कह सकता, लेकिन उनकी ईमानदारी पर मुझे हमेशा से शक रहा है और आज भी है। बाबा रामदेव अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर गरीबों और मजलूमों का शोषण करते हैं। बेचारे गरीब किसानों की जमीन को कब्जा लेते हैं। ऐसी तमाम शिकायतें उत्तराखंड सरकार के अफसरों से की गई हैं, पर वहां बीजेपी सरकार रहने की वजह से मामले की सही तरह ना जांच हुई और ना ही किसानों को न्याय मिला। बाबा रामदेव का बीजेपी से गहरा संबंध है, ये बात किसी से छिपी नहीं है, क्योंकि बाबा रामदेव बीजेपी को चंदे के रूप में मोटी रकम देते रहे हैं। मुझे लगता है कि अब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार है और जल्दी ही बाबा का असली चेहरा सामने आ जाएगा, क्योंकि अब कम से कम उनके खिलाफ मिली शिकायतों की जांच तो निष्पक्ष तरीके से हो सकेगी। मुझे लगता है कि टीम अन्ना नहीं चाहती कि बाबा रामदेव के व्यक्तिगत मामलों में वो उनके साथ खड़ी हो। वैसे सबसे बड़ा डर टीम अन्ना को ये भी है कि कहीं बाबा रामदेव उनके आंदोलन को हाईजैक ना कर लें, क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं कि ना सिर्फ देश में बल्कि दुनिया भर मे बाबा रामदेव के समर्थक हैं। रामदेव के मुकाबले अन्ना का समर्थन बहुत कम है।
एक सवाल और हम सबके दिमाग में उठता रहता है। ये कि आखिर अन्ना रामदेव को साथ क्यों रखना चाहते हैं। दरअसल सच्चाई ये है अन्ना की कोई बात मानीं नहीं जाती। अन्ना इन बिगडैलों से कब का अलग हो चुके होते। क्योंकि टीम अन्ना के सभी अग्रिम पंक्ति के नेताओं का चेहरा दागदार है, ये बात अन्ना भी अच्छी तरह से जानते हैं। पर अन्ना इस समय उत्साह से भरे हुए हैं, उन्हें लगता है कि भूखे रहकर वो देश में दूसरे गांधी का दर्जा हासिल कर लेगें। इसके लिए जरूरी है कि इस टीम को साथ रखा जाए। क्योंकि किसी भी आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए संसाधनों यानी पैसे की जरूरत होगी। अन्ना फक्कड़ हैं, पर इस टीम ने उन्हें आगे रखकर देश विदेश से खूब चंदा जमा कर लिया है। सही बात तो ये है कि टीम में मतभेद का एक बड़ा कारण चंदे की ये रकम भी है। हम सब देख रहे हैं कि आजकल टीम के सदस्यों का पैर जमीन पर है ही नहीं। हर रोज हवाई यात्राएं हो रही हैं। अरे भाई जनता ने आप पर बहुत भरोसा कर आपको चंदा दिया है, कम से कम जरूरी होने पर ही हवाई यात्रा करें। देश भर में ट्रेन की अच्छी सुविधा है, कभी कभी ट्रेन का सफर भी कर लीजिए। लेकिन नहीं, दिखाने को कुछ सदस्य महीनों एक ही पैंट शर्ट और हवाई चप्पल पहने दिखाई देंगे, पर इनका असली चेहरा बहुत ही बदबूदार है।
सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि अन्ना अपनी टीम से उकता गए हैं। इसीलिए कई बार वो टीम का विस्तार करने की बात करते है। फिर ऐसी कौन सी वजह है कि आज तक टीम का विस्तार नहीं किया जा सका। दरअसल जो चार पांच लोग अग्रिम पंक्ति में शामिल हैं, वो अपना वर्चस्व कम नहीं होने देना चाहते। फिर आंदोलन के नाम पर जमा हो रहे करोडों की रकम पर अपना ही अधिकार बनाए रखना चाहते हैं। टीम में नए सदस्यों को शामिल करने में इन्हें ऐतराज नहीं है, पर वो उन्हें दूरदराज के इलाकों में जनजागरण करने से ज्यादा कोई जिम्मेदारी नहीं देना चाहते। जबकि खुद अन्ना चाहते हैं कि इस आंदोलन में सेना के रिटायर अफसरों और देश के ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल कर उन्हें टीम अन्ना में समान दर्जा और अधिकार दिया जाना चाहिए। यही सब कुछ ऐसी वजहें हैं, जिससे अन्ना कई बार परेशान रहते हैं। जानकारों का कहना है कि अन्ना इसीलिए बाबा रामदेव को साथ रखना चाहते हैं कि अगर उनकी टीम ने अपने में सुधार नहीं किया तो वो यहां से पूरी तरह अलग होकर बाबा रामदेव के साथ जनलोकपाल बिल और कालेधन के आंदोलन की अगुवाई करेंगे।
एक महत्वपूर्ण करेक्टर है सुरेश पढारे। अगर मैं ये कहूं कि सुरेश सबसे ज्यादा ताकतवर है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। पहले आप जान लें कि ये सुरेश है कौन? दरअसल सुरेश कहने को तो अन्ना का पीए है। वैसे पहले ये अन्ना के गांव रालेगनसिद्धी में ही ठेकेदारी करता था। बेईमानी के आरोप में गांव पंचायत की खुली बैठक जिसमें खुद अन्ना मौजूद थे। कहा गया है कि ये ईमानदार नहीं है। गंभीर आरोपों के चलते इसका ठेका रद्द कर दिया गया और तय हुआ कि ये अब कोई काम नहीं करेगा। इससे गांव का काम तो छीन लिया गया, लेकिन अगले ही दिन अन्ना इसकी गाड़ी पर सवार होकर जहां कहीं भी आना जाना हो सफर करने लगे। गांव के कुछ वरिष्ठ लोगों ने इस पर ऐतराज भी किया, पर अन्ना ने इसका साथ नहीं छोड़ा। बताया जाता है कि टीम अन्ना को पता है कि सुरेश पढारे की बात अन्ना नहीं टालते हैं, लिहाजा वो भी सुरेश को हर तरीके से खुश रखने की कोशिश करते रहते हैं। कई बार जब अन्ना नाराज होते हैं कि तो उन्हें मनाने की जिम्मेदारी सुरेश को ही सौंपी जाती है और पढारे अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाते हैं। अगर मैं ये कहूं कि अन्ना के इस टीम के साथ अभी तक बने रहने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सुरेश की है, तो बिल्कुल गलत नहीं होगा।
वैसे सच तो ये है कि टीम अन्ना ने जिस तरह से अन्ना हजारे का अपमान किया है, इसे लेकर वो बेहद तकलीफ में हैं। अन्ना को लगने लगा है कि टीम में उनकी कोई अहमियत नहीं रह गई है. बल्कि टीम महज उनके नाम का इस्तेमाल भर कर रही है। बताते हैं कि मुंबई में अन्ना का जो आंदोलन फ्लाप हुआ, टीम इसके लिए अन्ना को जिम्मेदार मानती है। बात खुलकर कहने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है, पर कहा जा रहा है कि टीम को लगता था कि अन्ना महाराष्ट्र के रहने वाले हैं और यहां उनके नाम पर लाखों लोग जमा होंगे, पर ऐसा नहीं हुआ और अनशन को बीच में ही खत्म करना पड़ गया। दिल्ली में ज्यादा भीड़ होती है तो अन्ना को समझाया जाता है कि ये भीड़ हम दिल्ली वालों की वजहसे होती है। अब इन्हें कौन समझाए कि दिल्ली की भीड़ बंदर का नाच देखने जमा होती है। यहां फ्री का भोजन और ठेले के चाट, आइसक्रीम खाने के लिए होती है। हां हजार पांच सौ पूर्णकालिक कार्यकर्ता है, वो जरूर अपनी पूरी प्रतिभा दिखाने और टीम की नजर में अव्वल आने के लिए जरूर चिंघाडे मारते दिखाई देते हैं। बहरहाल अन्ना और रामदेव का मसला आसानी से शांत होने वाला नहीं है। टीम के बीच में अन्ना भले खामोश रह गए हों,लेकिन उन्हें ये पता ही है कि टीम समय समय पर उनके कम पढ़े लिखे होने की वजह से अपमानित करती है। अन्ना को लगता है कि अगर वो कोई बात सार्वजनिक मंच से कहते हैं तो उसे तुरंत नहीं बदला जाना चाहिए, क्योंकि इससे जनता में खराब संदेश जाता है। मगर टीम को लगता है कि अगर तुरंत उनकी बात का खंडन ना किया जाता तो उन्हें नुकसान होता।
आप पूछ सकते हैं कि अगर ये आंदोलन एक साथ किया जाएगा तो नुकसान क्या होगा। मैं बताता हूं सबसे बडा नुकसान पैसे का होगा। क्योंकि दुनिया को लगने लगेगा कि अब ये आंदोलन एक ही है और सभी लोग एक ही जगह चंदा देंगे। जाहिर है बाबा रामदेव के ट्रस्ट का नाम दुनिया में जाना पहचाना है, तो उनके खाते में ज्यादा रकम आएगी और टीम अन्ना के खाते में पैसा की कमी हो सकती है। और जब पूरा मसला पैसे का हो तो भला कौन अपने पैरो पर कुल्हाणी मारने को तैयार होगा। लिहाजा टीम को लगा कि ये बात पहले ही साफ कर दी जानी चाहिए कि हमारा आंदोलन और खाता अलग अलग है।
ये खाने के और ये हैं दिखाने के दांत
टीम अन्ना ने अपने एक संस्थापक सदस्य मुफ्ती शमीम काजमी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। आरोप लगाया गया है कि मुफ्ती साहब मीटिंग की बातों को मोबाइल पर रिकार्ड करते थे और फिर उसे लीक करते थे। मेरा टीम अन्ना से सवाल है कि जब आपकी बात केंद्र सरकार से चल रही थी, वहां आपकी मुख्य मांगो में ये भी शामिल था की सरकार के साथ होने वाली मीटिंग की वीडियोग्राफी कराई जाए और ऐसा इंतजाम हो कि देश की जनता उसे देख सके। टीम अन्ना अगर इस सरकार के साथ होने वाली बैठकों की रिकार्डिंग की मांग कर सकती है तो उनकी अपनी मीटिंग में ऐसा कौन सा राज है जो वो जनता के सामने आने नहीं देना चाहते। यहां बात तो जनलोकपाल बिल के लिए आंदोलन कैसे चलाया जाए, इसी पर होती है ना। इसमे छिपाने जैसी क्या बात है ?
न बाबा रामदेव कोई गलत काम कर रहे है...न अन्ना कोई गलत काम कर रहे है!...यही होना चाहिए कि बाबा और अन्ना एक जुट हो कर भ्रष्टाचार से लड़े और दोनों की टीमें भी एक ही मार्ग अपनाएं!....बहुत सुन्दर विचार!....आभार!
ReplyDeleteहोना तो यही चाहिए कि भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करें, लेकिन जब आंदोलन की बुनियाद ही बेईमानी पर टिकी हो तो आंदोलन कामयाब हो ही नहीं सकता।
Deleteमेरी तो समझ से बाहर है यह खिचड़ी ... न रंग पक्का , न सही आँच , कभी नमक नदारद ...
ReplyDeleteजी टीम अन्ना और बाबा रामदेव की खिचड़ी पूरा देश नहीं समझ पा रहा है,
Deleteहम सब तो बस तमाशबीन हैं।
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ReplyDeleteवाह!!!!महेंद्र जी,आपकी पूरी पोस्ट पढकर मुझे लगा कि आपने कि अन्ना टीम और बाबा रामदेव् के बारे पूरी तरह से मेरे मन की बात लिख दी ..मै पूरे तौर से आपके विचारों से सहमत हूँ ,......लाजबाब पोस्ट ..बधाई
ReplyDeleteMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
शुक्रिया धीरेन्द्र जी
Deleteमिलकर लड़ेंगें तो ताकत बढ़ेगी ही.... बेहतरीन विवेचन
ReplyDeleteसहमत हूं
Deleteये क्या हो रहा हैं आज कल अन्ना और रामदेव जी के बीच ...कौन जाने आगे आने वाले दिनों में और क्या क्या देखना और सुनना पड़ेगा ....राजनीति के तवे पर हर कोई अपनी अपनी रोटी सेक रहा हैं ...
ReplyDeleteवैसे भी एक दिन के बाद हर खबर पुरानी हो जाती हैं ...भारत की जनता को भूलने की बीमारी जो हैं ......सब मस्त हैं अपने आप में ...किसी को किसी से कोई मतलब नहीं ...हर कोई ये ही सोचत हैं जो हो रहा हैं होने दो ...हमको क्या ?????
जी, पर इससे काम नहीं बनने वाला है...
Deleteबहुत बहुत आभार अतुल जी
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeletekahin na kahin kuchh to galat hai .... isme koi sakk nahi!!
ReplyDeleteसहमत हूं आपकी बात से
Deletekya baat hai
ReplyDeletenice
ReplyDeleteथैक्स
Deleteअन्ना और रामदेव की बातें,राम ही जाने.
ReplyDeleteहर कोई अपने दृष्टिकोण अनुसार ही सोचता
है.आपने बहुत मेहनत की है अपना दृष्टिकोण
प्रस्तुत करने में.अच्छा लगा पढकर.
सर,
Deleteआपने भी मान लिया ना कि इन दोनों को समझना मुश्किल है..
बेहतरीन विवेचन...
ReplyDeleteहमेशा की तरह...बढ़िया
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