Wednesday 9 July 2014

रेल बजट में नहीं दिखा 56 इंच का सीना !

भारतीय रेल आत्मनिर्भर होना चाहती है, इसलिए हे विदेशियों आप हमारी मदद करें ! भारतीय रेल अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है, इसलिए हे विदेशियों आप हमें सहारा दें ! आप हमारी मदद करेंगे... तो हम आत्मनिर्भर बनेंगे, आप मदद नहीं करेंगे तो भला हम आत्मनिर्भर कैसे होंगे ? आप  हमें सहारा देंगे तो हम अपने पैरों पर खड़े होंगे... आप सहारा नहीं देंगे तो हम अपने पैरों पर कैसे खड़े होंगे ? सच बताऊ... 56 इंच के सीने का दम भरने वाले नरेन्द्र मोदी से ऐसे रेल बजट की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। ईमानदारी से एक बात बताना चाहता हूं, मुझे इस सरकार के रेल बजट का बेसब्री से इंतजार था, मैं बजट के जरिए मोदी के विजन को जानना और समझना चाहता था, मैं देखना चाहता था कि 56 इंच का सीना रखने वाला नेता कहीं बजट में विदेशियों के आगे गिडगिड़ाता हुआ तो नजर नहीं आ रहा है, पर ऐसा ही हुआ। रेल बजट में देश के स्वाभिमान के साथ समझौता हुआ है, बजट में बातें तो बड़ी - बड़ी की गई हैं, पर इसके लिए पैसा कहां से आएगा, इस पर कोई बात नहीं की गई है। हर मसले का हल पीपीपी मतलब पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप को बताया जा रहा है, आसान भाषा  में बताऊं तो इस बजट में भारतीय रेल पूरी तरह विदेशियों के हाथ की कठपुतली नजर आ रही है।

सिडनी ( आस्ट्रेलिया ) रेडियो ने अपने हिंदी बुलेटिन में रेल बजट पर कार्यक्रम रखा था, जिसमें उन्होंने इस बजट के बारे में मुझसे बातें की। पहला सवाल पूछा गया कि पहले के रेल बजट से ये बजट किस मायने में अलग है ? मैं समझ गया कि विदेशों में भी लोग यही देखना चाहता हैं कि 56 इंच का सीना रखने वाले प्रधानमंत्री का पहला बजट किस दिशा में जा रहा है। सच बता रहा हूं, मैं जब भी विदेशी चैनल या रेडियो या अन्य किसी भी प्रचार माध्यम से जुड़ता हूं तो मेरी पूरी कोशिश होती है कि ऐसी बात ना कहूं जिससे विदेशों में देश की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। लेकिन इस सवाल के बाद मैंने दिमाग पर बहुत जोर डाला कि नया कुछ बता दूं..। कसम से, इस बजट में तो एक बात भी नई नहीं है, अलबत्ता मैं ये कहूं कि पुराने रेल मंत्रियों के बजट में मामूली फेरबदल करके इसे पेश किया गया है तो कहना गलत नहीं होगा। चूंकि जनता पुरानी बातों को बहुत जल्दी भूल जाती है, और उसे मामूली बात भी नई नजर आती है। मैं बताना चाहता हूं कि बजट में जिस " बुलेट ट्रेन " की बात को बहुत अहमियत दी गई है। इसकी असल सच्चाई भी जानना आप के  लिए बहुत जरूरी है।

बात उस समय की है, जब रेलवे की हालत बहुत पुख्ता थी, उस समय रेलमंत्री स्व. माधवराव सिंधिया थे, वो बड़ा सोचते थे। सबसे पहले देश में बुलेट ट्रेन का सपना उन्होंने ही देखा था। लेकिन इस मामले में काम ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाया। इसके बाद देश में एनडीए की सरकार आई, वो पुराने ढर्रे पर चलती रही, लेकिन मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए एक की सरकार में रेलमंत्री रहे लालू यादव ने देश को एक बार फिर बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया। सपना ही नहीं बल्कि उन्होंने ही पहली बार  रेल बजट में बुलेट ट्रेन का ऐलान किया और दिल्ली से पटना के अलावा मुंबई से अहमदाबाद के लिए बुलेट ट्रेन की फिजिविलिटी सर्वै शुरू कराया। बड़ा काम था, इसलिए विदेशी एजेंसियों को सर्वे के लिए हायर किया गया। सर्वे पर करोडों रुपये खर्च किए गए। खैर सच ये है कि रेल मंत्रालय ने बुलेट ट्रेन के लिए कुछ काम जरूर शुरू कर दिया था, पर यूपीए 2 में लालू के पास गिनती के सांसद रह गए, इसलिए रेल महकमा ममता बनर्जी के खाते में चला गया। ममता रेलमंत्री बनीं, पर उनकी निगाह बंगाल की कुर्सी पर थी, इसलिए रेलवे के लिए कुछ बड़ा काम नहीं कर पाईं। बंगाल की मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने दिनेश त्रिवेदी को रेलमंत्री बनाया, पर यात्री किराये में बढोत्तरी करने पर उन्हें मंत्री पद से हटा दिया। सच बताऊं त्रिवेदी, मुकुल राय और पवन बंसल के बारे मे चर्चा करना, सही मायने में समय खराब करना है।

बहरहाल मैने आज तक पत्रकारिता में किसी स्तर पर कभी भी समझौता नहीं किया, लिहाजा सिडनी रेडियो पर मैने साफ - साफ पूरी बातें ईमानदारी से कहीं। दूसरा सवाल हाईस्पीड़ ट्रेन के बारे में पूछा गया। मैं हैरान रह गया कि क्या देश कि असल तस्वीर विदेशियों को भी पता है। सही मायने में हाई स्पीड ट्रेन के मामले में मोदी सरकार जनता को बेवकूफ बना रही है। हमारे यहां रेल पटरी की ये हालत अब नहीं रह गई है कि इस पर 100 किलो मीटर प्रतिघंटा से अधिक रफ्तार से कोई ट्रेन चलाई जा सके। मोदी के मंत्री वाहवाही लूटने के लिए ऐसे काम कर रहे हैं, जो महत्वाकांक्षी रेलमंत्री लालू यादव ने भी नहीं किया। उदाहरण के तौर पर दिल्ली से लखनऊ के बीच एक एसी स्पेशल ट्रेन चलती थी, जो सप्ताह मे तीन दिन एसी स्पेशल के नाम से जानी  जाती थी और तीन दिन यही ट्रेन दुरांतो के नाम से चल रही थी। जनता को मूर्ख समझने वाले रेलमंत्री सदानंद गौड़ा ने इस ट्रेन का नाम बदल कर राजधानी एक्सप्रेस कर दिया और लगभग 400 रुपये प्रति टिकट किराया बढ़ा दिया। इस ट्रेन का कोई स्टापेज कम नहीं हुआ, रफ्तार नहीं बढ़ी, यहां तक की जो बोगी पुरानी ट्रेन में चल  रही थी वही गंदगी से भरी बोगी भी इस राजधानी में इस्तेमाल हो रही है। अच्छा  ज्यादा पैसा ले रहे हो तो कम से कम इसे साफ सुथरे प्लेटफार्म से गुजारो, जिससे इस ट्रेन पर सफर करने वालों को वीआईपी होने का आभास हो,  पर ये भी नहीं। दिल्ली से ये ट्रेन प्लेटफार्म नंबर 9 से छूटती है, जबकि लखनऊ में इसे प्लेटफार्म नंबर दो या पांच पर लिया जाता है। मुझे लगा था कि लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह इस पर आपत्ति करेंगे, लेकिन वो भी  खामोश हैं। यात्रियों की जेब काटी जा रही है, किसी से कोई मतलब नहीं है।

रेलवे की बातें करूं तो मेरी बात कभी खत्म ही नहीं होगी। पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप  (पीपीपी) पर नई सरकार को भी बहुत भरोसा है। उसे लगता है कि पीपीपी के तहत तमाम बड़े काम वो करा सकती है। मैं मोदी साहब को बताना चाहता हूं कि पूर्व रेलमंत्री लालू यादव ने देश के कुछ चुनिंदा रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास बनाने के लिए पीपीपी के तहत इंटरनेशनल टेंडर निकाला था। आपको हैरानी होगी कि किसी भी विदेशी निवेशक  ने इस काम को करने में अपन रुचि  नहीं दिखाई। जानते हैं क्यों ? क्योंकि रेलवे  ने अपनी विश्वसनीयता ही खो दी है। कोई भी विदेशी निवेशक रेलवे में पैसा लगाने से घबराता है। उसे लगता है कि  जिस देश में मामूली किराया बढ़ाने पर रेलमंत्री की छुट्टी हो जाती है, वहां कोई विदेशी निवेशक पैसा लगाने का रिस्क कैसे ले सकता है ? आपको पता है ना कि देश में रेलवे का किसी से कंपटीशन नहीं है, अकेली इतनी बड़ी संस्था है। आप सोचें कि कोई व्यक्ति अकेले किसी रेस में हिस्सा ले, फिर भी वो फर्स्ट ना आकर सेकेंड रहे तो आसानी से उसकी क्षमता को समझा जा सकता है। भारतीय रेल की हालत भी कुछ ऐसी ही है, अकेले दौड़ रही है, फिर भी दूसरे नंबर पर है।

मेरा मानना है कि रेलवे की तरक्की तब तक नहीं हो सकती, जब तक रेलमंत्री इसके  जरिए अपनी और पार्टी की राजनीति का हित देखते रहेंगे! वैसे तो जब दो सप्ताह के बाद संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला हो तो नैतिकता का तकाजा यही था कि रेलयात्री किराए में पिछले रास्ते से बढोत्तरी ना की जाए, रेल बजट में ही इसका प्रावधान किया जाए। पर यहां भी 56 इँच का सीना का दावा करने वाले मोदी जी का सीना 26 इंच का हो गया, क्योंकि उन्हें लगा कि बजट में  किराया बढाया तो देश में बहुत किरकिरी होगी, इसलिए बजट के पहले ही किराया बढ़ा दो.. बजट में फीलगुड लाने के लिए बुलेट ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन की बात कर जनता को बेवकूफ बनाने में आसानी होगी। सच कहूं तो मोदी भी ऐसा करेंगे, मुझे भरोसा नहीं था। अब देखिए ना पुराने रेलमंत्रियों की तरह सदानंद गौडा ने भी पचासों नई ट्रेन का ऐलान कर दिया, ये जाने बगैर कि पुराने रेलमंत्रियों ने जिन ट्रेनों का ऐलान किया है, उसमें से सैकड़ों ट्रेन अभी पटरी पर नहीं आई है। रेलवे  की क्षमता अब ऐसी  नहीं है कि किसी भी रुट पर नई ट्रेन का संचालन हो सके, लेकिन लोगों को खुश करने के लिए तमाम ट्रेनों का ऐलान किया गया, इसमें ज्यादातर ऐसी ट्रेन हैं, जो सप्ताह में एक दिन चलेगी।

पहली बार लगा कि ये रेलमंत्री सेफ्टी और सिक्योरिटी में अंतर नहीं समझते। संसद में ताली बजे, इसलिए महिलाओं की सुरक्षा के लिए चार हजार महिला आरपीएफ कांस्टेबिल की भर्ती की बात तो रेलमंत्री ने की, लेकिन सेफ्टी ( संरक्षा ) से जुडे 1.60 लाख खाली पड़े पदों पर भर्ती कब होगी, इस पर वो खामोश रहे। ढेर सारी नईं ट्रेन, हाई स्पीड ट्रेन की बात भी उन्होंने इस बजट में की, लेकिन ट्रेन में किसी व्यक्ति को कैसे आसानी से टिकट मिल जाएगा, कैसे उसे रिजर्वेशन मिलेगा, इस पर वो खामोश रहे। मोदी और रेलमंत्री लगातार दावा करते हैं रेलवे को राजनीति से अलग रखा  जाएगा  और कोई भी फैसला राजनीति से प्रभावित नहीं होगा। प्रधानमंत्री जी मैं पूछना चाहता हूं कि जब सभी श्रेणी का यात्री किराया 14 प्रतिशत बढ़ाया गया तो इसका विरोध देश भर में हुआ। लेकिन रेलमंत्री ने मुंबई का बढ़ा किराया वापस ले लिया। वजह साफ है कि वहां सात आठ महीने में ही विधानसभा का चुनाव होना है। ऐसे में जब रेलमंत्री कहते हैं  कि रेलवे से राजनीति नहीं होगी तो लगता है कि देशवासियों को मूर्ख और अज्ञानी समझते हैं।

एक सवाल पूछता हूं, बजट में जिस तरह की बातें की जा रही हैं, उससे क्या ये सवाल पैदा नहीं होता कि  संसद में रेल का अलग से बजट रखने का मतलब क्या है ? पहले एक रुपये किराया बढ़ता था तो देश में हाय तौबा मच  जाती थी,  यहां दूसरे रास्ते से सैकडों रुपये किराया बढ़ा दिया जाता है और कोई चूं चां  तक  नहीं करता है। ट्रेन का नाम बदल कर जनता की जेब काट ली जा रही है। अगर यही सब किया जाना है तो मुझे लगता है कि रेल बजट रेलवे के लिए एक सालाना जलसा से ज्यादा कुछ नहीं है।  बहरहाल रेल बजट ने तो लोगों को  निराश किया है, अगर आम बजट में भी लोगों को कोई राहत ना मिली और रेल बजट की तरह  इसमें भी  लफ्फाजी की गई तो मोदी की किरकिरी ही होगी। किरकिरी इस मायने में कि वो संख्या बल के आधार पर संसद में भले ही जीत हासिल कर लें, लेकिन जनता के दिलों से वो पूरी तरह उतर जाएंगे। एक बात कहूं मोदी जी प्लीज मुझे मुंगेरी लाल के हसीन सपने मत दिखाइये, मेरे सपनों पर राजनीति मत कीजिए। तकलीफ होती है। विदेशी चैनल पर मुझे देश की असल तस्वीर रखने में आज बहुत कष्ट हुआ।





1 comment:

  1. विचारणीय बातें...राजनीतिक नेताओं की कथनी और करनी में बहुत अंतर होता है

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।