श्री शक्ति एक्सप्रेस के पहले ही सफर में उधरपुर - कटरा रेल लाइन ने संकेत दे दिया है कि वो अभी रेल यात्रा के लिए पूरी तरह फिट नहीं है। श्री शक्ति एक्सप्रेस बीती रात जैसे ही टनल के भीतर घुसी, पटरी पर फिसलन की वजह से ट्रेन आगे नहीं बढ़ सकी और टनल के भीतर ही फंस गई। ट्रेन को टनल से निकालने के लिए इंजन के ड्राईवर ने काफी मशक्कत की, लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाया। आधी रात को इसकी जानकारी जैसे ही उत्तर रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को हुई, सब के होश उड़ गए। बहरहाल कोशिश शुरू हो गई कि कैसे ट्रेन को टनल से बाहर निकाला जाए। आनन फानन में फैसला किया गया कि एक और इंजन वहां भेजकर ट्रेन में पीछे से धक्का लगाया जाए, हो सकता है कि दो इंजन के जरिए इस ट्रेन को आगे बढ़ाया जा सके। बहरहाल रेलवे की कोशिश कामयाब रही और ट्रेन को किसी तरह टनल से बाहर कर लिया गया। लेकिन इससे एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या इस ट्रैक पर आगे ट्रेन का संचालन जारी रखा जाए, या फिर इसे रोका जाए ! बहरहाल रेलवे की किरकिरी न हो, इसलिए मीडिया को जानकारी दी गई कि इंजन में खराबी की वजह से ट्रेन टनल मे लगभग दो घंटे फंसी रही, जबकि सच ये नहीं है, रेल अफसर अपनी नाकामी छिपा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने सहयोगी मंत्रियों को कहते रहते हैं कि वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें और महत्वपूर्ण फैसलों में सोशल मीडिया के सकारात्मक राय को उसमें शामिल करें। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी खुद इसे लेकर लापरवाह हैं। वो अभी से अफसरों के हाथ की कठपुतली बनते जा रहे हैं, खासतौर पर अगर रेलमंत्रालय की बात करूं, तो ये बात सौ फीसदी सच साबित होती है। आपको पता होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब ऊधमपुर से कटरा रेल लाइन की शुरुआत करने वाले थे, उसके पहले ही मैने आगाह कर दिया था कि ये रेल लाइन खतरनाक है, इस पर जल्दबाजी में ट्रेन का संचालन नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इस रेल पटरी के शुरू हो जाने से रोजाना ट्रेनों की आवाजाही भी शुरू हो जाएगी, इसमें हजारों यात्री सफर करेंगे, इसलिए उनकी जान को जोखिम में नहीं डाला जाना चाहिए। लेकिन मुझे हैरानी हुई कि मोदी ने इन बातों पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया और वाहवाही लूटने के लिए रेल अफसरों के इशारे पर कटरा रेलवे स्टेशन पहुंच गए और ट्रेनों की आवाजाही शुरू करने के लिए हरी झंड़ी दिखा दी।
मैं प्रधानमंत्री को एक बार फिर बताना चाहता हूं कि इस रेल पटरी पर जल्दबाजी में ट्रेनों की आवाजाही शुरू करना खतरे से खाली नहीं है, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं, बल्कि रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट इसे खतरनाक बता रही है। इसी साल जनवरी में रेल अफसर ने रेल पटरी का सर्वे किया और अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि कम से कम दो तीन मानसून तक इस पटरी पर ट्रेनों का संचालन बिल्कुल नहीं होना चाहिए। मानसून में इस ट्रैक का पूरी तरह परीक्षण होना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि टनल में अचानक बड़ी मात्रा में पानी भर जाए, जिससे बीच में ट्रेनों की आवाजाही रोकनी पड़े। इतना ही नहीं टनल नंबर 20 में तकनीकि खामियों की वजह से सेफ्टी कमिश्नर ने 27 से 29 जनवरी तक निरीक्षण किया, लेकिन एनओसी नहीं दिया।अंदर की खबर है कि काफी दबाव के बाद रफ्तार नियंत्रण कर ट्रेन चलाने की अनुमति दी है। टनल नंबर 18 में काफी दिक्कतहै। बताया गया है कि इस टनल में 100 लीटर पानी प्रति सेकेंड भर जाता है। ये वही टनल है, जिसकी वजह से अभी तक यहां ट्रेनों का संचालन नहीं हो पा रहा था। पानी का रास्ता बदलने के लिए फिलहाल कुछ समय पहले 22 करोड का टेंडर दे दिया गया, काम हुआ या नहीं, कोई बताने को तैयार नहीं। एक विदेशी कंपनी को कंसल्टैंसी के लिए 50 करोड रूपये दिए गए। उसने जो सुझाव दिया वो नहीं माना गया। इस कंसल्टैंसी कंपनी से कहा गया कि वो सेफ्टी सर्टिफिकेट दे, जिसे देने से उसने इनकार कर दिया।
मैं फिर जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि रेलवे के अधिकारी रेलमंत्री और प्रधानमंत्री को पूरी तरह गुमराह कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि रेलमंत्री रेलवे को जानने समझने वालों की एक एक्सपर्ट टीम बनाएं और हर बड़े फैसले को लागू करने के पहले एक्सपर्ट की राय जरूर ले। रेल अफसरों के बड़बोलेपन की वजह से ही रेलमंत्री सदानंद गौड़ा की रेल हादसे के मामले में सार्वजनिक रूप से किरकिरी हो चुकी है, जब गौड़ा ने रेल अधिकारियों के कहने पर मीडिया में बयान दिया कि ट्रेन हादसे की वजह नक्सली हैं, उन्होंने बंद का आह्वान किया था और रेल पटरी के साथ छेड़छाड़ की, इसी वजह से हादसा हुआ। इसके थोड़ी ही देर बाद गृह मंत्रालय ने रेलमंत्री की बात को खारिज कर दिया। बाद में रेलमंत्री ने अपनी बात बदली और कहाकि पूरे मामले की जांच हो रही है, उसके बाद ही दुर्घटना की असल वजह पता चलेगी। लेकिन ये बात पूरी तरह सच है कि अगर रेलमंत्री थोड़ा भी ढीले पड़े तो ये अफसर मनमानी करने से पीछे हटने वाले नहीं है।
यही वजह है कि जिस अधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट में रेल पटरी को खतरनाक बताया, उसे तत्काल उत्तर रेलवे से स्थानांतरित कर दिया गया। वजह साफ है कि रेल अधिकारियों का मानना है कि वैष्णों देवी मां के धाम कटरा से अगर मोदी को ट्रेन को हरी झंडी दिखाने का अवसर मिला तो वो मंत्रालय पर नरम रहेंगे और अफसरों पर उनका भरोसा बढ़ेगा, लेकिन प्रधानमंत्री और रेलमंत्री से सच्चाई को छिपाकर इन अफसरों ने एक ऐसे रेलमार्ग पर आनन फानन में ट्रेनों का संचालन शुरू करा दिया, जो यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक है। ये अफसर नई सरकार को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री को धोखा दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी, ट्रेनों के संचालन की शुरुआत आप कर चुके हैं, अभी भी समय है इस रेल मार्ग की नए सिरे से पूरी जांच पड़ताल आप स्वयं कराएं। ब्राजील से वापस आएं तो 7 आरसीआर जाने के पहले सीधे रेल मंत्रालय पहुंचे और उन सभी अफसरों को सामने बैठाएं, जिन्हें इस रेल मार्ग को जल्दबाजी में शुरू करने की हडबड़ी थी। ये जानना जरूरी है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि रेल अधिकारियों ने अपने ही महकमें के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट को खारिज कर ट्रेनों का संचालन शुरू कराया और पहले ही दिन श्री शक्ति एक्सप्रेस टनल मे फंस गई। जांच जरूरी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने सहयोगी मंत्रियों को कहते रहते हैं कि वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें और महत्वपूर्ण फैसलों में सोशल मीडिया के सकारात्मक राय को उसमें शामिल करें। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी खुद इसे लेकर लापरवाह हैं। वो अभी से अफसरों के हाथ की कठपुतली बनते जा रहे हैं, खासतौर पर अगर रेलमंत्रालय की बात करूं, तो ये बात सौ फीसदी सच साबित होती है। आपको पता होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब ऊधमपुर से कटरा रेल लाइन की शुरुआत करने वाले थे, उसके पहले ही मैने आगाह कर दिया था कि ये रेल लाइन खतरनाक है, इस पर जल्दबाजी में ट्रेन का संचालन नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि इस रेल पटरी के शुरू हो जाने से रोजाना ट्रेनों की आवाजाही भी शुरू हो जाएगी, इसमें हजारों यात्री सफर करेंगे, इसलिए उनकी जान को जोखिम में नहीं डाला जाना चाहिए। लेकिन मुझे हैरानी हुई कि मोदी ने इन बातों पर किसी तरह का ध्यान नहीं दिया और वाहवाही लूटने के लिए रेल अफसरों के इशारे पर कटरा रेलवे स्टेशन पहुंच गए और ट्रेनों की आवाजाही शुरू करने के लिए हरी झंड़ी दिखा दी।
मैं प्रधानमंत्री को एक बार फिर बताना चाहता हूं कि इस रेल पटरी पर जल्दबाजी में ट्रेनों की आवाजाही शुरू करना खतरे से खाली नहीं है, ये बात मैं नहीं कह रहा हूं, बल्कि रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट इसे खतरनाक बता रही है। इसी साल जनवरी में रेल अफसर ने रेल पटरी का सर्वे किया और अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि कम से कम दो तीन मानसून तक इस पटरी पर ट्रेनों का संचालन बिल्कुल नहीं होना चाहिए। मानसून में इस ट्रैक का पूरी तरह परीक्षण होना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि टनल में अचानक बड़ी मात्रा में पानी भर जाए, जिससे बीच में ट्रेनों की आवाजाही रोकनी पड़े। इतना ही नहीं टनल नंबर 20 में तकनीकि खामियों की वजह से सेफ्टी कमिश्नर ने 27 से 29 जनवरी तक निरीक्षण किया, लेकिन एनओसी नहीं दिया।अंदर की खबर है कि काफी दबाव के बाद रफ्तार नियंत्रण कर ट्रेन चलाने की अनुमति दी है। टनल नंबर 18 में काफी दिक्कतहै। बताया गया है कि इस टनल में 100 लीटर पानी प्रति सेकेंड भर जाता है। ये वही टनल है, जिसकी वजह से अभी तक यहां ट्रेनों का संचालन नहीं हो पा रहा था। पानी का रास्ता बदलने के लिए फिलहाल कुछ समय पहले 22 करोड का टेंडर दे दिया गया, काम हुआ या नहीं, कोई बताने को तैयार नहीं। एक विदेशी कंपनी को कंसल्टैंसी के लिए 50 करोड रूपये दिए गए। उसने जो सुझाव दिया वो नहीं माना गया। इस कंसल्टैंसी कंपनी से कहा गया कि वो सेफ्टी सर्टिफिकेट दे, जिसे देने से उसने इनकार कर दिया।
मैं फिर जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि रेलवे के अधिकारी रेलमंत्री और प्रधानमंत्री को पूरी तरह गुमराह कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि रेलमंत्री रेलवे को जानने समझने वालों की एक एक्सपर्ट टीम बनाएं और हर बड़े फैसले को लागू करने के पहले एक्सपर्ट की राय जरूर ले। रेल अफसरों के बड़बोलेपन की वजह से ही रेलमंत्री सदानंद गौड़ा की रेल हादसे के मामले में सार्वजनिक रूप से किरकिरी हो चुकी है, जब गौड़ा ने रेल अधिकारियों के कहने पर मीडिया में बयान दिया कि ट्रेन हादसे की वजह नक्सली हैं, उन्होंने बंद का आह्वान किया था और रेल पटरी के साथ छेड़छाड़ की, इसी वजह से हादसा हुआ। इसके थोड़ी ही देर बाद गृह मंत्रालय ने रेलमंत्री की बात को खारिज कर दिया। बाद में रेलमंत्री ने अपनी बात बदली और कहाकि पूरे मामले की जांच हो रही है, उसके बाद ही दुर्घटना की असल वजह पता चलेगी। लेकिन ये बात पूरी तरह सच है कि अगर रेलमंत्री थोड़ा भी ढीले पड़े तो ये अफसर मनमानी करने से पीछे हटने वाले नहीं है।
यही वजह है कि जिस अधिकारी ने अपनी जांच रिपोर्ट में रेल पटरी को खतरनाक बताया, उसे तत्काल उत्तर रेलवे से स्थानांतरित कर दिया गया। वजह साफ है कि रेल अधिकारियों का मानना है कि वैष्णों देवी मां के धाम कटरा से अगर मोदी को ट्रेन को हरी झंडी दिखाने का अवसर मिला तो वो मंत्रालय पर नरम रहेंगे और अफसरों पर उनका भरोसा बढ़ेगा, लेकिन प्रधानमंत्री और रेलमंत्री से सच्चाई को छिपाकर इन अफसरों ने एक ऐसे रेलमार्ग पर आनन फानन में ट्रेनों का संचालन शुरू करा दिया, जो यात्रियों की सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक है। ये अफसर नई सरकार को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री को धोखा दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी, ट्रेनों के संचालन की शुरुआत आप कर चुके हैं, अभी भी समय है इस रेल मार्ग की नए सिरे से पूरी जांच पड़ताल आप स्वयं कराएं। ब्राजील से वापस आएं तो 7 आरसीआर जाने के पहले सीधे रेल मंत्रालय पहुंचे और उन सभी अफसरों को सामने बैठाएं, जिन्हें इस रेल मार्ग को जल्दबाजी में शुरू करने की हडबड़ी थी। ये जानना जरूरी है कि आखिर ऐसी क्या वजह रही कि रेल अधिकारियों ने अपने ही महकमें के एक वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट को खारिज कर ट्रेनों का संचालन शुरू कराया और पहले ही दिन श्री शक्ति एक्सप्रेस टनल मे फंस गई। जांच जरूरी है।
mahendr ji modi ji ko kam se kam apne kahe ka to maan rakhna hi chahiye .nice informative post .thanks
ReplyDeleteमोदी जी क्या बतायेंगे?
ReplyDeleteमनमोहन की राह पर ही तो चलेंगे।
जहाँ दुनिया कहाँ से कहाँ पहुंची हुयी है वहां हम सिर्फ इसलिए ट्रेन नहीं चलाना चाहते क्योंकि कुछ भ्रष्ट अफसरों और निकम्मे लीडरों की वजह से काम ठीक ढंग से नहीं हुआ ... ढूंढ ढूंढ के सजा देनी चाहिए ऐसे अफसरों और नेताओं ओ ...
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