पांच दिन से ब्लाग से पूरी तरह कटा रहा हूं, वजह कुछ खास नहीं , बस आफिस टूर पर था, कुछ स्पेशल स्टोरी शूट करने के लिए उत्तराखंड में चंपावत और खटीमा इलाके में टहल रहा था । वैसे तो मेरा इस इलाके में कई बार जाना हुआ है, पर इस बार ये दौरा मेरे लिए कुछ खास रहा । कुछ दिन पहले ही पता चला कि ब्लाग परिवार के मुखिया आद. रुपचंद्र शास्त्री जी खटीमा ( रुद्रपुर) में ही रहते हैं। मेरे रुट चार्ट में खटीमा भी शामिल था, मुझे वहां एक पूरे दिन रुकना था, क्योंकि एक स्टोरी मुझे इसी क्षेत्र में शूट करनी थी । मैने तय किया कि मुझे शास्त्री जी से मिलना चाहिए, यहां आकर भी अगर उनसे मुलाकात ना करुं तो फिर ये बात ठीक नहीं होगी ।
लेकिन सच बताऊं तो मेरे मन में कई सवाल थे, क्योंकि मुझे जुमा जुमां सात महीने हुए हैं ब्लाग पर कुछ लिखते हुए । ब्लाग लिखने वालों में दो एक लोग ही हैं, जिनसे मेरी फोन पर बात हो जाती है, वरना तो सामान्य शिष्टाचार ही निभाया जा रहा है । मेरा अभी तक एक भी ब्लागर साथी ऐसा नहीं है, जिनसे मेरी आमने सामने बात हुई हो । ऐसे में शास्त्री जी के पास जाने में कुछ दुविधा भी थी, पता नहीं शास्त्री जी मुझसे मिलना चाहेंगे या नहीं, कहीं ऐसा ना हो कि मैं फोन कर उनसे मिलने का समय मांगू और वो ये कह कर कि आज मैं व्यस्त हूं, फिर कभी मुलाकात होगी । इस तरह के सैकडों सवाल जेहन में घर बनाते जा रहे थे ।
खैर मेरा मानना है कि जब आप किसी मुश्किल में हों और उससे उबरना चाहते हों तो परिवार से कहीं ज्यादा दोस्त पर भरोसा करना चाहिए। मैने भी अपने दोस्त का सहारा लिया, उन्होंने कहा क्या बात करते हैं, आप पहले उनके पास जाएं तो, देखिए उन्हें बहुत अच्छा लगेगा। अच्छा मैं इस मत का हूं कि आप किसी भी मामले में मित्रों या परिवार के सदस्यों से राय तभी लें, जब उसे आपको मानना हो। सिर्फ रायसुमारी के लिए राय नहीं ली जानी चाहिए। इसलिए जब मेरे दोस्त ने कहा कि आपको मिलना चाहिए, तो उसके बाद मेरे मन में कोई दूसरा सवाल नहीं रहा। मैने तुरंत शास्त्री जो को फोन लगाया और बताया कि मैं दिल्ली में रहता हूं और एक टीवी चैनल में काम करता हूं। मेरा एक ब्लाग है आधा सच इसमें भी कुछ लिखता रहता हूं। इस समय आपके शहर में हूं, यहां एक स्टोरी शूट करने के सिलसिले में आना हुआ है । बस दो मिनट मुलाकात करने का मन है। शास्त्री जी ने कहा कि जब चाहें यहां आएं और हम बैठकर आराम से बातें करेंगे। शास्त्री जी ने जिस तरह से पहले वाक्य को पूरा किया, लगा ही नहीं कि हम किसी ऐसे शख्स से बात कर रहे हैं, जिनसे मेरी पहली बार बात हो रही है।
मित्रों मैं तो थोड़ा उदंड हूं ना, मुझे लगा कि कहीं शास्त्री जी भूल ना जाएं कि किससे बात हुई थी, मुझे सारी बातें फिर से ना दुहरानी पड़े, लिहाजा मैने कहा चलो तुरंत सभी काम बंद करते हैं और पहले आद. शास्त्री जी से ही मुलाकात करते हैं । वैसे भी खटीमा एक छोटा सा कस्बा है। यहां लगभग सभी लोग सब को जानते हैं । उन्होंने एक नर्सिंग होम का नाम बताया और कहा कि यहां आकर किसी से पूछ लें सभी लोग मेरे बारे में बता देगें , आपको यहां पहुंचने में असुविधा नहीं होगी। फोन काटने के बाद मै अपने ड्राईवर को नर्सिंग होम के बारे में बता ही रहा था कि हमारे वहां के स्थानीय मित्र ने कहा किसी से पूछने की जरूरत नहीं, चलिए मैं घर पहुंचाता हूं, और अगले पांच मिनट के बाद ही हम शास्त्री जी के घर के बाहर खड़े थे।
हमारी गाड़ी रुकते ही शास्त्री जी खुद बाहर आ गए, बड़े ही आदर के साथ हम लोगों से मिले और हम सब उनके निवास परिसर में ही बने उनके आफिस में चले गए। दो मिनट के सामान्य परिचय के बाद लगा ही नहीं कि हम शास्त्री जी से पहली बार मिल रहे हैं। यहां मैं शास्त्री जी से माफी मांगते हुए मैं एक बात का जिक्र करना चाहता हूं कि मेरे मन मे शास्त्री जी की जो तस्वीर थी, ये उसके बिल्कुल उलट थे। मुझे लगता था कि बुजुर्ग शास्त्री जी आराम कुर्सी पर बैठे होंगे, उनका कम्प्यूटर आपरेटर उनकी बातों को कंपोज करने के बाद ब्लाग पर डालता होगा..। लेकिन ऐसा कुछ नहीं, शास्त्री जी खुद कम्प्यूटर की बारीकियों को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। मैं उनके साथ बैठा, उन्होंने तुरंत मेरा ब्लाग खोला, ब्लाग खोलने में कुछ दिक्कत आई।
शास्त्री जी ने खुद ही देखा कि आखिर ऐसी क्या दिक्कत हो सकती है। उन्होंने तीन मिनट में ब्लाग की दिक्कतों को समझ लियाऔर अगले ही पल उसे दुरुस्त भी कर दिया। ब्लाग का डिजाइन बहुत ही साधारण देख उन्होंने खुद ही कहा कि चलिए इसे कुछ आकर्षक बनाते हैं। ब्लाग के बारे में दो एक बातें करने के बाद उन्होंने देखते ही देखते मेरे ब्लाग को बिल्कुल अपडेट कर दिया। मैं उनके कम्प्यूटर के प्रति प्रेम और जानकारी को देखकर हैरान था, सच बताऊं तो उन्होंने इसकी तकनीक से जुड़ी दो एक बातों के बारे में मुझसे पूछा तो मैं बगलें झांकने लगा।
बहरहाल एक घंटे की मुलाकात में मैं समझ चुका था कि शास्त्री ने जो अपना जो परिचय ब्लाग के पृष्ठ पर डाला है, वो उनका पूरा परिचय नहीं है, सच कहूं तो आधा भी नहीं । शास्त्री जी वो व्यक्तित्व हैं, जिन्हें लगता है कि लोग उनसे जितना कुछ हासिल कर सकते हैं कर लें. वो अपना पूरा ज्ञान और अनुभव युवाओं पर लुटाने को तैयार बैठे हैं, लेकिन हम उनसे सीखना ही नहीं चाहते। मेरी छोटी सी मुलाकात के दौरान मैने महसूस किया कि वो चाहते हैं कि हमे कितना कुछ हमें दे दें, लेकिन जब हम लेने को ही तैयार नहीं होंगे तो भला वो क्या कर सकते हैं।
सच बात तो ये है कि उनके पास से उठने का मन बिल्कुल नहीं हो रहा था, पर समय और ज्यादा देर तक बैठने की इजाजत भी नहीं दे रहा था, क्योंकि पहाड़ों में शाम जल्दी हो जाती है, और शाम होते ही हमारा काम बंद हो जाता है, यानि कैमरे भी आंखें मूंद लेते हैं। इसलिए मुझे बहुत ही बेमन से कहना पडा कि शास्त्री जी अब मुझे जाना होगा। मैने महसूस किया कि शास्त्री जी का भी मन नहीं भरा था बात चीत से, वो भी चाहते थे कि हम थोड़ी देर और बातें करें, लेकिन मैने यह कह कर कि वापसी में मैं एक बार फिर आपसे मिलकर ही जाऊंगा, लिहाजा हम दोनों लोग कुछ सामान्य हुए।
हम तो चलने के लिए उठ खड़े हुए, लेकिन शास्त्री जी ये सोचते रहे कि कुछ देना अभी बाकी रह गया है, उन्होंने मुझे रोका और अपनी लिखी दो पुस्तकें मुझे भेंट कीं। सच तो ये है कि शास्त्री जी से मुलाकात की कुछ निशानी मैं भी चाहता था, लेकिन मांगने की हिम्मत भला कैसे कर सकता था, पर शस्त्री जी इसीलिए आदरणीय हैं कि वो लोगों के मन की बात को भी पढना जानते हैं। बहरहाल इस यादगार मुलाकात के हर क्षण को मैं खूबसूरती से जीना चाहता हूं।
इतनी आत्मीयता भरी भेंट देखकर बहुत ही अच्छा लगा।
ReplyDeleteयादगार मुलाकात रही।
ReplyDeleteglad to know about your meeting with Shastriji. It seems he is a great person and a good blogger. Kindly share his blog link too.
ReplyDeletewww.rajnishonline.blogspot.com
जय हो....आखिर मुलाकात हो ही गई आपकी ....और यादगार भी रही ....पढ़ कर अच्छा लगा
ReplyDeleteमैं भी हासिल कर चूका हूँ यह अवसर ......अब यादें तजा हो गयी फिर से ....शास्त्री जी के साथ पुरे 2 दिन रहने का अवसर मिला है उनके ही घर में ...!
ReplyDeleteवाह भाई वाह |
ReplyDeleteमजा आ गया ||
बधाई ||
पढ़ कर अच्छा लगा ||
पूरी आत्मीयता से एक आत्मीय मुलाक़ात को प्रस्तुत किया है आपने!
ReplyDeleteशास्त्री जी बहुत ही विनम्र और स्नेहिल व्यक्तित्व के स्वामी हैं ... मैं मिली थी दिल्ली के कार्यक्रम में ... मैं क्या मिली , उन्होंने ही पीछे मुड़कर कहा था - रश्मि प्रभा जी .... और मेरा मन श्रद्धा से भर गया , थोड़ी ग्लानी हुई कि मैं उन्हें देख नहीं पाई... इसी तरह टूर में सबसे मिलिए
ReplyDeletekhoobsurat yadgar mulakat...
ReplyDeleteशास्त्री जी एक बेहतरीन शख्सियत हैं। मिला तो नहीं हूं, पर उनसे जुड़ा अवश्य हूं।
ReplyDeleteमयंक अंकल और आपकी मुलाकात के बारे में जानकर अच्छा लगा ......
ReplyDeleteसर! यह पूरा सच जानकर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDelete----
कल 29/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
इस यादगार भेंट के बारे में पढकर अच्छा लगा
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट बधाई !
आपकी यात्रा सुखद रही और सबसे बड़ी बात यह कि आदरणीय शास्त्री जी से मुलाक़ात हो गयी, वे मुझे अक्सर ही आमन्त्रित करते रहते हैं पर अभी तक जाना न हो सका। आपके ब्लॉग की परेशानी दूर हो गयी यह एक बड़ा ही अच्छा काम हुआ। चाची जी के क्रियाकर्म से परसों ही फुरसत पाया हूँ और एक अन्तराल के बाद कम्प्यूटर पर बैठा हूँ। जैसे-तैसे कल चर्चामंच लगाया।
ReplyDeletegud to know :-)
ReplyDeleteबधाई हो आपको एक शानदार और जानदार शख्सियत से मुलाकात के लिए।
ReplyDeleteशास्त्री जी की ब्लाग जगत में सक्रियता काबिलेतारीफ है......
शास्त्री जी से मिलने का अवसर मिला ये तो आपके लिए बड़े सौभाग्य की बात है! सुन्दर चित्र !शानदार पोस्ट!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
अच्छा संस्मरण।
ReplyDeleteजी श्रीवास्तव जी - अच्छे ब्लॉग के creator कभी बुरे हो ही नहीं सकते क्यों की लेखनी में ही उनके चरित्र दिखते है ! बधाई सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteश्रीवास्तव जी बेहद ही आत्मीय सफर रहा आपका ...आपको ओर शास्त्री जी को साथ साथ देखना बेहद सुखद अहसास रहा...शुभ कामनायें !!
ReplyDeleteमहेंद्र जी,..
ReplyDeleteखाशियत ही व्यक्ति को बड़ा,महान,या विषेश बनाती है
शास्त्री जी में कोई बात तो है,..जो उन्हें.....
शास्त्री जी से मुलाकात के लिए बधाई....
महेन्द्र जी!
ReplyDeleteमैं पोस्ट लिखने की सोचता ही रह गया और आपने बाजी मार ली!
लेकिन आपने मेरी कुछ ज्यादा ही प्रशंसा तो नहीं कर दी है।
इसकी सजा यही है कि आप सपरिवार मेरे यहाँ आयें।
आभार आपका।
यही तो शास्त्री जी की खासियत है अपने मिलनसार व्यक्तित्व से सबका मन मोह लेते हैं…………
ReplyDeleteशास्त्री जी के लिए सम्मान और भी बढ़ गया.
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर इस भेट के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteअरे वाह! शास्त्री जी से मुलाकात.
ReplyDeleteमैंने तो उन्हें बडा भाई बनाया हुआ है.
भाभी जी से भी तो मुलाकात हुई होगी आपकी.
आपने अपनी दावत के बारें में तो बताया ही नही.
कहीं 'आधा सच' का ही यह असर तो नही.
सुन्दर रोचक संस्मरण के लिए आभार.
अच्छा संस्मरण
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी एक सरल स्वभाव के आदमी हैं। यही बात हमें उनके क़रीब करती है। पक्षपात वह किसी का करते नहीं हैं। हिंदी ब्लॉग जगत के हमारे पसंदीदा लोगों में से एक हैं आदरणीय शास्त्री जी। इसीलिए हमने कहा है कि
ReplyDeleteच्यवन ऋषि‘ के सच्चे वारिस हैं श्री रूपचंद शास्त्री ‘मयंक‘ जी
हमें पता नहीं कब मौका मिलेगा ऐसे दोस्तों से मिलने का .... बहुत अच्छा लगा आपने अपने सुखद पल हमारे साथ साझा किये ...
ReplyDeleteAchchha sansmaran.
ReplyDeleteखेद है मुझे इसे ... पढ़ने में विलंब हुआ ... आपका लेखन बहुत ही अच्छा है उसी तरह यह आत्मीयता भरा परिचय मन को छू गया ...शुभकामनाऍं
ReplyDelete