काफी दिनों से देख रहा हूं कि देश में कुछ ऐसे मुद्दों पर बहस छिड़ि हुई है, जिसके चलते अहम मुद्दे पर लोग की नजर नहीं जा रही है। मित्रों जिस तरह पड़ोसी देशों से हमारे रिश्ते लगातार खराब हो रहे हैं, उससे सेना की भूमिका को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता। हमारी सेना की ताकत पाकिस्तान के मुकाबले कई गुनी ज्यादा है, फिर भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है, जिससे सीमा पर तनाव बना ही रहता है। साल दो साल से चीन की नजर भी टेढी है। हालत ये है कि चीनी सीमा से लगे भारतीय इलाकों में हम विकास का काम भी नहीं कर पा रहे हैं, चाहे अरुणाचल, उत्तराखंड से लगी सीमा हो या फिर गंगटोक से। चीनी सेना हमें सड़क और पुल बनाने से भी रोक देती है। नत्थी बीजा का मामला अभी तक नहीं सुलटा है। ये बातें मैं महज आपको इसलिए बता रहा हूं कि आज देश की सीमाएं भले ही सुरक्षित हों, पर यहां तनाव तो बना ही हुआ है। ऐसे में सेना से जुडे़ अहम मसलों पर जिस तरह संजीदा होकर फैसले लेने चाहिए, वो नहीं लिए जा रहे हैं।
ताजा विवाद सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह को लेकर है। इस मामले में लिखने का मकसद ही यही है कि मैं आपको सच्चाई की जानकारी दे सकूं। मित्रों दरअसल सेना का मसला ऐसा गुप्त रखा जाता है कि आसानी से यहां चल रहे गोरखधंधे को जनता के सामने लाना आसान नहीं होता है। मैं एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि जितना भ्रष्टाचार सेना में है, शायद और कहीं नहीं होगा। दूसरे मंत्रालय साल भर में जितना घोटाला करते होंगे, सेना के एक सौदे में उससे बड़े रकम की हेराफेरी हो जाती है। बहरहाल इन खराब हालातों के बावजूद जनरल वी के सिंह की छवि एक सख्त और ईमानदार जनरल की है। सेना प्रमुख होने की पहली शर्त ही ये है कि आपकी पहले की सेवा पूरी तरह बेदाग होनी चाहिए। इस पर खरा उतरने के बाद ही जनरल को सेनाप्रमुख बनाया गया।
अब आप देखें कि सेना में आखिर हो क्या रहा है। ईमानदार जनरल के चलते आर्म्स लाबी ( हथियारों के सौदागर) नाराज हैं। वो चाहते हैं कि सेना के लिए हथियारों की खरीददारी पहले की तरह होती रहे। यानि सेना के अफसरों, नेताओं, कांट्रेक्टर्स सबकी चांदी कटती रहे। लेकिन जनरल बीके सिंह के सेना प्रमुख रहते ये सब संभव नहीं है। इसलिए एक साजिश के तहत सभी रक्षा सौदों में देरी की जा रही है। इतना ही नहीं ये लांबी इतनी ताकतवर है कि इसने अब सेना प्रमुख को रास्ते से हटाने का रास्ता साफ कर दिया। जनरल के जन्मतिथि विवाद को लेकर उन्हें अब साल भर पहले ही रिटायर करने की तैयारी हो गई है और सरकार ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी। ऐसे में अहम सवाल ये क्या इस गोरखधंधे में सरकार के भी कुछ नुमाइंदे शामिल हैं। ये सब मैं आप पर छोड़ता हूं, लेकिन पूरी तस्वीर आपके सामने मैं हुबहू रखने की कोशिश करता हूं।
मित्रों सेना प्रमुख के हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज है। इस हिसाब से उन्हें जून 2013 में रिटायर होना चाहिए, लेकिन यूपीएसई में कमीशन के दौरान सेना मुख्यालय में जो रिकार्ड है, उसमें उनकी जन्मतिथि 10 मई 1950 लिखा है। इस हिसाब से उन्हें अगले ही साल जून में रिटायर होना होगा। देश में यही परंपरा रही है कि अगर कोई अभ्यर्थी हाईस्कूल पास है तो उस सर्टिफिकेट में जो जन्मतिथि दर्ज है, वही मान्य होगी। अगर कोई हाईस्कूल पास नहीं है तो जन्म के दौरान नगर पालिका के स्वास्थ्य विभाग या फिर ग्राम पंचायत में दर्ज जन्म की तारीख को ही मान्यता दी जाएगी। लेकिन सेनाप्रमुख के मामले में ऐसा नहीं किया गया, उनके हाईस्कूल के सर्टिफिकेट में दर्ज जन्मतिथि को खारिज करते हुए सेना के रिकार्ड में दर्ज जन्मतिथि को स्वीकार कर लिया गया। हालांकि जनरल वी के सिंह अगर इस मामले में कोर्ट का सहारा लें तो उन्हें निश्चित रूप से राहत मिल जाएगी, लेकिन वो सेना प्रमुख जैसे पद को विवाद में लाने के खिलाफ हैं।
अब आसानी से समझा जा सकता है कि सेना में किसकी चलती है। मुझे पक्का भरोसा है कि सेना में ऐसा नहीं होता होगा, लेकिन खबरें तो यहां तक आती रहती हैं कि सेना में " पंजाबी वर्सेज अदर्स " के बीच छत्तीस का आंकडा है और जो जहां भारी पड़ता है वो एक दूसरे पटखनी देने से नहीं चूकता। पिछले दिनों जनरल वी के सिंह ने सियाचिन, लेह और लद्दाख के दौरा करने के दौरान पाया कि यहां सीमा पर तैनात जवानों को घटिया किस्म का खाना दिया जा रहा है। इस पर उन्होंने सख्त एतराज जताया था। सीमा पर तैनात जवाबों के लिए रोजाना चंडीगढ से सब्जी और मांस की खरीददारी की जाती है। बताते हैं कि इसमें भी काफी घपलेबाजी की जा रही थी, जो सड़ी गली सब्जी आढ़त पर बची रह जाती थी, जिसका कोई खरीददार नहीं होता था, वही घटिया सब्जी सेना के जवानों के लिए भेज दी जाती थी। इसके अलावा घटिया किस्म के अंडे की भी सप्लाई होती थी। मांस निर्धारित मात्रा से कम दिया जाता था। वी के सिंह को ये सब नागवार लगा और उन्होंने मांस की मात्रा भी बढवा दी और ये भी सुनिश्चित की किया कि ताजी सब्जियां ही खरीदी जाएं। इन सब में काफी धांधली हुआ करती थी, इन सबको एक एक कर सेना प्रमुख ने चेक कर लिया।
हैरत की बात तो ये सेना के जवाब जिस ठंड में 24 घंटे तैनात रहते हैं, उन्हें जूते भी घटिया किस्म के दिए जाते थे। इससे उनके पैरों की उंगलियां सड़ने लगी थीं। इस मामले को भी जनरल ने बडे ही गंभीरता से लिया था। इसे लेकर भी कुछ बडे अधिकारी जनरल से नाराज चल रहे थे। खैर सैन्य अफसर एक दूसरे से नाराज हों और खुश हों, ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब सियासी लोग भी इसमें पार्टी बन जाते हैं तो कहीं ना कहीं दाल में कुछ काला जरूर नजर आता है।
सेना प्रमुख के जन्मतिथि विवाद को जिस तरह से आनन फानन में निपटाया गया और हाईस्कूल की सर्टिफिकेट को ही रद्द कर दिया गया, इससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। बताया जा रहा है कि जिसको अगले साल सेना प्रमुख की कुर्सी मिलने वाली है, उनकी प्रधानमंत्री से बहुत अच्छी मुलाकात है, तो क्या इस पूरे मामले में पीएमओ तो शामिल नहीं है। बहरहाल मैं तो नेताओं से यही कहूंगा कि सेना को अनुशासन की पटरी पर रहने दें, कहीं सेना पटरी से उतरी तो ये सियासियों पर बहुत भारी पड़ेगा। पडोसी देश पाकिस्तान से ही सबक ले लो। इसीलिए मैं कहता हूं कि भगवान के लिए सेना को बख्श दो। मुझे लगता है कि जनरल वी के सिंह के मामले में खुद प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना चाहिए, जिससे सेना की साख पर कोई धब्बा ना लगे। दरअसल दोस्तों हम गैरजरूर मामलों में ही इतना घिरे रहत हैं कि गंभीर मसले हमारी नजरों में आते ही नहीं। सेना को लेकर जिस तरह आज सियासत चल रही है, निश्चित ही ये दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
ताजा विवाद सेना प्रमुख जनरल वी के सिंह को लेकर है। इस मामले में लिखने का मकसद ही यही है कि मैं आपको सच्चाई की जानकारी दे सकूं। मित्रों दरअसल सेना का मसला ऐसा गुप्त रखा जाता है कि आसानी से यहां चल रहे गोरखधंधे को जनता के सामने लाना आसान नहीं होता है। मैं एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि जितना भ्रष्टाचार सेना में है, शायद और कहीं नहीं होगा। दूसरे मंत्रालय साल भर में जितना घोटाला करते होंगे, सेना के एक सौदे में उससे बड़े रकम की हेराफेरी हो जाती है। बहरहाल इन खराब हालातों के बावजूद जनरल वी के सिंह की छवि एक सख्त और ईमानदार जनरल की है। सेना प्रमुख होने की पहली शर्त ही ये है कि आपकी पहले की सेवा पूरी तरह बेदाग होनी चाहिए। इस पर खरा उतरने के बाद ही जनरल को सेनाप्रमुख बनाया गया।
अब आप देखें कि सेना में आखिर हो क्या रहा है। ईमानदार जनरल के चलते आर्म्स लाबी ( हथियारों के सौदागर) नाराज हैं। वो चाहते हैं कि सेना के लिए हथियारों की खरीददारी पहले की तरह होती रहे। यानि सेना के अफसरों, नेताओं, कांट्रेक्टर्स सबकी चांदी कटती रहे। लेकिन जनरल बीके सिंह के सेना प्रमुख रहते ये सब संभव नहीं है। इसलिए एक साजिश के तहत सभी रक्षा सौदों में देरी की जा रही है। इतना ही नहीं ये लांबी इतनी ताकतवर है कि इसने अब सेना प्रमुख को रास्ते से हटाने का रास्ता साफ कर दिया। जनरल के जन्मतिथि विवाद को लेकर उन्हें अब साल भर पहले ही रिटायर करने की तैयारी हो गई है और सरकार ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी। ऐसे में अहम सवाल ये क्या इस गोरखधंधे में सरकार के भी कुछ नुमाइंदे शामिल हैं। ये सब मैं आप पर छोड़ता हूं, लेकिन पूरी तस्वीर आपके सामने मैं हुबहू रखने की कोशिश करता हूं।
मित्रों सेना प्रमुख के हाईस्कूल के प्रमाण पत्र में उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 दर्ज है। इस हिसाब से उन्हें जून 2013 में रिटायर होना चाहिए, लेकिन यूपीएसई में कमीशन के दौरान सेना मुख्यालय में जो रिकार्ड है, उसमें उनकी जन्मतिथि 10 मई 1950 लिखा है। इस हिसाब से उन्हें अगले ही साल जून में रिटायर होना होगा। देश में यही परंपरा रही है कि अगर कोई अभ्यर्थी हाईस्कूल पास है तो उस सर्टिफिकेट में जो जन्मतिथि दर्ज है, वही मान्य होगी। अगर कोई हाईस्कूल पास नहीं है तो जन्म के दौरान नगर पालिका के स्वास्थ्य विभाग या फिर ग्राम पंचायत में दर्ज जन्म की तारीख को ही मान्यता दी जाएगी। लेकिन सेनाप्रमुख के मामले में ऐसा नहीं किया गया, उनके हाईस्कूल के सर्टिफिकेट में दर्ज जन्मतिथि को खारिज करते हुए सेना के रिकार्ड में दर्ज जन्मतिथि को स्वीकार कर लिया गया। हालांकि जनरल वी के सिंह अगर इस मामले में कोर्ट का सहारा लें तो उन्हें निश्चित रूप से राहत मिल जाएगी, लेकिन वो सेना प्रमुख जैसे पद को विवाद में लाने के खिलाफ हैं।
अब आसानी से समझा जा सकता है कि सेना में किसकी चलती है। मुझे पक्का भरोसा है कि सेना में ऐसा नहीं होता होगा, लेकिन खबरें तो यहां तक आती रहती हैं कि सेना में " पंजाबी वर्सेज अदर्स " के बीच छत्तीस का आंकडा है और जो जहां भारी पड़ता है वो एक दूसरे पटखनी देने से नहीं चूकता। पिछले दिनों जनरल वी के सिंह ने सियाचिन, लेह और लद्दाख के दौरा करने के दौरान पाया कि यहां सीमा पर तैनात जवानों को घटिया किस्म का खाना दिया जा रहा है। इस पर उन्होंने सख्त एतराज जताया था। सीमा पर तैनात जवाबों के लिए रोजाना चंडीगढ से सब्जी और मांस की खरीददारी की जाती है। बताते हैं कि इसमें भी काफी घपलेबाजी की जा रही थी, जो सड़ी गली सब्जी आढ़त पर बची रह जाती थी, जिसका कोई खरीददार नहीं होता था, वही घटिया सब्जी सेना के जवानों के लिए भेज दी जाती थी। इसके अलावा घटिया किस्म के अंडे की भी सप्लाई होती थी। मांस निर्धारित मात्रा से कम दिया जाता था। वी के सिंह को ये सब नागवार लगा और उन्होंने मांस की मात्रा भी बढवा दी और ये भी सुनिश्चित की किया कि ताजी सब्जियां ही खरीदी जाएं। इन सब में काफी धांधली हुआ करती थी, इन सबको एक एक कर सेना प्रमुख ने चेक कर लिया।
हैरत की बात तो ये सेना के जवाब जिस ठंड में 24 घंटे तैनात रहते हैं, उन्हें जूते भी घटिया किस्म के दिए जाते थे। इससे उनके पैरों की उंगलियां सड़ने लगी थीं। इस मामले को भी जनरल ने बडे ही गंभीरता से लिया था। इसे लेकर भी कुछ बडे अधिकारी जनरल से नाराज चल रहे थे। खैर सैन्य अफसर एक दूसरे से नाराज हों और खुश हों, ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब सियासी लोग भी इसमें पार्टी बन जाते हैं तो कहीं ना कहीं दाल में कुछ काला जरूर नजर आता है।
सेना प्रमुख के जन्मतिथि विवाद को जिस तरह से आनन फानन में निपटाया गया और हाईस्कूल की सर्टिफिकेट को ही रद्द कर दिया गया, इससे कई सवाल खड़े हो गए हैं। बताया जा रहा है कि जिसको अगले साल सेना प्रमुख की कुर्सी मिलने वाली है, उनकी प्रधानमंत्री से बहुत अच्छी मुलाकात है, तो क्या इस पूरे मामले में पीएमओ तो शामिल नहीं है। बहरहाल मैं तो नेताओं से यही कहूंगा कि सेना को अनुशासन की पटरी पर रहने दें, कहीं सेना पटरी से उतरी तो ये सियासियों पर बहुत भारी पड़ेगा। पडोसी देश पाकिस्तान से ही सबक ले लो। इसीलिए मैं कहता हूं कि भगवान के लिए सेना को बख्श दो। मुझे लगता है कि जनरल वी के सिंह के मामले में खुद प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना चाहिए, जिससे सेना की साख पर कोई धब्बा ना लगे। दरअसल दोस्तों हम गैरजरूर मामलों में ही इतना घिरे रहत हैं कि गंभीर मसले हमारी नजरों में आते ही नहीं। सेना को लेकर जिस तरह आज सियासत चल रही है, निश्चित ही ये दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
बहुत सुन्दर ||
ReplyDeleteबधाई ||
सेना को लेकर जिस तरह आज सियासत चल रही है, निश्चित ही ये दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।---निश्चित ही आपकी तरह बहुत लोग चिन्तित हैं। अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
ReplyDeleteGen.V.k singh ji ko fight karni chahiye.pahle to date of birth army ke record me galat kuon likha jaanch karvaani chahiye.cort me jaayen.anyaay sahna bhi apraadh hai unse achcha kon samajh sakta hai.aap patrkar log unki help ke liye aage aayen.is lekh ke dwara yeh masla saamne laye aapka shukriya.
ReplyDeleteuntil the official secret act will not be removed you can not expect any transparancy in central govt department.and this type of problems and curruptions will keep continue.
ReplyDeletewakai dukhad hai...
ReplyDeleteबहुत सही kah रहे हैं आप.हाईस्कूल का प्रमाण पात्र सब जगह जन्मतिथि का प्रमाण मन जाता है और यहाँ उसके nakarne की वजह से सरकारी नियमों की भी अनदेखी हो रही है sena के बारे में आपका ये आलेख महत्वपूर्ण है
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण जानकारी ........आभार के साथ धन्यवाद इस जानकारी के लिए
ReplyDeleteसेना को राजनीति की परिधि से परे रखा जाये।
ReplyDeleteबहुत ही चिंताजनक और दुखद घटना है! अच्छी जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
हैरत होती है आपके आधे सच को पढ़ कर .कहीं और से इतना कुछ जानने को नहीं मिलता है.
ReplyDeleteओह ..दुर्बग्य की बात है ..सच्च और ईमानदार लोगों को कोई टिकने नहीं देता ...जानकारीपूर्ण लेख
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आने के लिए ध्न्यवाद...
ReplyDeleteजो कुछ हो रहा है वो वाकई काफ़ी दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है...जानकारी के लिए आभार.
सादर,
डोरोथी.
आपने कहा है पूरा सच । हमारी फौज के सैनिकों को अगर ताजा सब्जियाँ और बढ़िया मांस मिलेगा तो उनमें ताकत ही आएगी । नेता इस महकमे को तो बख़्श ही दें ।
ReplyDeleteघोटाला घोटाला ... हर चीज़ में घोटाला ही मिलता है .. काश किसी स्तर पर तो सरकार ईमानदार हो ...
ReplyDeleteआप का आधा सच मुझे तो पूरा सच दिखता है..अच्छी जान्कारी देने के लिए आभार..मेरे ब्लांग मे आकर मुझे उत्साहित करने के लियेआप का धन्यवाद...
ReplyDeleteहर देश की आर्मी ही उस देश की ताकत है लेकिन राजनीति रूपी दीमक कहाँ नही है?
ReplyDeleteआप की दी हुई जानकारी आँखें खोल देने के लिए काफी है कि किस तरह राजनेताओं ने इस क्षेत्र को भी नहीं छोड़ा .
ReplyDeleteहाईस्कूल के सर्टिफिकेट में लिखी तिथि को ही जन्मतिथि का आधार बनाया जाता है लेकिन यहाँ ऐसा हुआ नहीं..बेहद दुखद है .मेरी व्यक्तिगत जानकारी में जन्मतिथि के कारण ही एक और ऑफिसर का इसी तरह प्रोमोशन रोक दिया गया था ..अब लगता है शायद वह बहुत ही कड़क और ईमानदार अफसर थे इसीलिये उनके साथ भी ऐसा ही कुछ न हुआ हो!
..भ्रष्टाचार की जड़ें कहाँ तक फैली हैं ...क्या कहें..
स्थित दुखद है .
@@ऊपर लिखे कमेन्ट में एक कमेन्ट है --रविकर लिखते हैं- --'बहुत सुन्दर...'
ReplyDeleteमुझे समझ नहीं आता इस पोस्ट में उन्हें सुन्दर क्या नज़र आया??
जनरल साहब की तस्वीर?
--पता नहीं.. लोग पोस्ट पढते नहीं हैं तो कमेन्ट क्यूँ करते हैं .
एक संवेदनशील मुद्दे को समझे बिना कुछ भी कॉपी पेस्ट करना आता है बस..
बिल्कुल सही कहा आपने सेना को राजनीती से सच में दूर ही रखना चाहिए | मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूँ दोस्त पर राजनीती ने किसे छोड़ा है |
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत विषय |
आपने एक बहुत ही गंभीर मुद्दे की तरफ ध्यान आकर्षित किया है व बहुत सी ऐसी जानकारियों से वाकिफ कराया है,जो पहले पता नहीं थी.
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आपकी मेहनत को दर्शा रही है.
सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर मेरी नई पोस्ट पर आईयेगा.
sach me bahut badhiya jankari di hai aapne.....
ReplyDeleteaabhar ......
बहुत सटीक लिखा है आपने । पूर्णतया सहमत । कम से कम सेना में तो अनुशासन शेष रहने दें !
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