Tuesday, 12 July 2011

..तो मनमोहन क्यों हैं पीएम

आपको ये सवाल अजीब लग सकता है या आप इसे छोटी मुंह बड़ी बात भी कह सकते हैं, लेकिन केंद्र सरकार के नए मंत्रिमंडल पर गौर फरमाना जरूरी है। महीनों से कहा जा रहा था कि एक ऐसा फेरबदल किया जाएगा, जिससे जनता में संदेश जाएगा कि सरकार वाकई भ्रष्टाचार और बढती मंहगाई से चिंतित है और कुछ ठोस पहल करना चाहती है। लेकिन जो कुछ किया गया है, वो हास्यास्पद है। सच तो ये है कि ये बदलाव करने के लिए मंत्रिमंडल का विस्तार बिल्कुल नहीं किया गया है।
चलिए एक सवाल आप से ही पूछता हूं। आज नए मंत्रिमंडल में पुराने सात मंत्रियों की छुट्टी कर दी गई। कहा गया कि इनका परफार्मेंस ठीक नहीं है। यही बात मैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछना चाहता हूं कि फिर आप  कैसे कुर्सी पर जमें हुए हैं। आपकी छुट्टी क्यों नहीं की गई। मुझे नहीं देश भर को लगता है कि प्रधानमंत्री का परफार्मेंस सबसे ज्यादा खराब रहा है। उनकी देखरेख में भ्रष्टाचार पनपता रहा और जानते हुए भी ए राजा पर नियंत्रण नहीं कर पाए और उनके मंत्री को जेल जाना पड़ा। उनकी अगुवाई वाले सरकार के एक और मंत्री किसी भी समय जेल जा सकते हैं। कामनवेल्थ गेम में भ्रष्टाचार की सभी हदें पार हो गईं, ये अलग बात है कि कांग्रेस सांसद सुरेश कलमाड़ी को जेल भेज दिया गया। मनमोहन जी मंहगाई पर अंकुश लगाने में आप पूरी तरह फेल रहे।
भ्रष्टाचार में अभी तक सहयोगी दलों के नेताओं और मंत्रियों का नाम  सामने आ रहे थे। लेकिन मनमोहन जी अब तो टू जी स्पेक्ट्रम के मामले में पी चिंदम्बर में का नाम भी जुड गया है, क्योंकि जो कुछ भी ए राजा ने किया, वो उनकी सहमति से किया है। लेकिन चिंदबरम के मामले में आप खामोश हैं। अंबानी बंधुओं को फायदा पहुंचाने के आरोप कपिल सिब्बल पर भी लग रहे हैं। वैसे सच तो ये है कि  आप  राजा और मारन को अभी तक अपने सिर पर बैठाए रखते, वो तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का, जिसने सरकार पर थोड़ा लगाम लगाया और जिसकी वजह से ये मंत्री जेल पहुंचे।
प्रधानमंत्री जी आपको लोग भले ही ईमानदार कहते फिरें, मैं नहीं कह सकता,  जिस तरह से आपने नेता विपक्ष की आपत्ति के बावजूद पी वी थामस को सीवीसी बनाया और सुप्रीम कोर्ट ने जब पीएमओ को  कटघरे में खड़ा किया तो थामस को जाना पड़ा। भले ही आप चिदंबरम के कहने में थामस के नाम पर अड़े रहे, लेकिन थामस के मामले में कोर्ट के सख्त रुख से किरकिरी चिदंबरम की नहीं प्रधानमंत्री जी आपकी हुई। आपके कार्यकाल के सैकडों ऐसे मामले गिना सकता हूं जहां आपको सख्त निर्णय लेना चाहिए था, लेकिन आप नहीं ले पाए।
चलिए सारी बातों दरकिनार कर दीजिए.. देखते हैं कि कितने मजबूर हैं हमारे ये प्रधानमंत्री। सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों में रेल मंत्रालय का नाम आता है। आए दिन दुर्घटनाओं से महकमा पूरी तरह पटरी से उतर चुका है, लेकिन कमजोर प्रधानमंत्री ये मंत्रालय बहुत ही कम अनुभवी टीएमसी के सांसद दिनेश त्रिवेदी को देने को मजबूर हो गए।
मंत्रिमंडल से अमेरिका नाखुश
एक बार फिर आपको अटपटा लग रहा होगा कि भारत के मंत्रिमंडल से अमेरिका नाखुश क्यों। जी लेकिन सच है अमेरिका नाराज है। सरकार कभी मानने को तैयार नहीं होगी कि मंत्रिमंडल के गठन में दूसरे देशों का कोई हस्तक्षेप होता है, लेकिन ये बात सही नहीं है। दरअसल जो बाहरी लोगों को मंत्री बनाने की बात थी, उसमें सबसे ऊपर नाम था मांटेक सिंह अहलूवालिया का और अमेरिका उन्हें वित्त मंत्रालय दिलवाना चाहता था। बताते हैं कि इसकी तैयारी पूरी हो गई थी। वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी को उप प्रधानमंत्री बनाकर गृहमंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी जानी थी। इसके अलावा चूंकि चिदंबरम पर भी टू जी की आंच आ रही है, लिहाजा उन्हें विदेश विभाग देकर किनारे लगाने की तैयारी थी। यही वजह है कि सोनिया और मनमोहन की कई दौर की बातचीत आखिरी समय तक होती रही। सरकार को लग रहा था कि संसद का मानसून सत्र हंगामेदार होने वाला है, ऐसे में प्रणव दा की जिम्मेदारी बढा दी जाए और वो ही विपक्ष का मुकाबला करें। इसके अलावा लालू यादव को मंत्री बनाने के लिए तो सरकार तैयार थी, लेकिन मंत्रालय के नाम पर बात नहीं बनी। लालू को भी इसी लिए सरकार में लेने की बात की जा रही थी, जिससे वो विपक्ष को करारा जवाब दे सकें। खैर मुझे लगता है कि सरकार अमेरिका की नाराजगी ज्यादा दिनों तक नहीं झेल पाएगी और मानसून सत्र के बाद मंत्रिमंडल में एक बार फिर फेरबदल तय है।
बेईमानों की कुर्सी सुरक्षित
जी हां... बेईमानी का रिकार्ड तोड़ने वाली पार्टी द्रमुक के लिए अच्छी खबर है। उनके दोनों मंत्री ए राजा और दयानिधि मारन के महकमें सुरक्षित हैं। कपिल सिब्बल पहले की तरह टेलीकाम विभाग की अतिरिक्त जिम्मेदारी संभालते रहेंगे। इसी तरह कपड़ा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार आनंद शर्मा को दिया गया है। मतलब साफ है कि द्रमुक जब चाहे अपने दो लोगों को मंत्री बना सकती है उनका महकमा सुरक्षित है। खैर जो कुछ बदलाब हुआ है, उसमें मजबूती कम मजबूरी ज्यादा दिखाई दे रही है।

( उत्तर प्रदेश में हुए रेल हादसे के बारे में मैं आपको गंभीर जानकारी देना चाहता था, लेकिन आज इन सियासियों ने वक्त जाया कर दिया, लेकिन दो दिन के भीतर मैं बताऊंगा दुर्घटना का पूरा सच )

14 comments:

  1. बेईमानी का रिकार्ड तोड़ने वाली पार्टी द्रमुक के लिए अच्छी खबर है। उनके दोनों मंत्री ए राजा और दयानिधि मारन के महकमें सुरक्षित हैं।


    बहुत ही सुन्दर ||बधाई |

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  2. आपकी प्रस्तुति जानकारीपूर्ण,रोचक एवं धाराप्रवाह है.
    मनमोहनसिंह जी पर जो आपने प्रश्न उठाया,वह बिलकुल ठीक ही है.
    सब कुछ उन्हीं की नाक के नीचे ही तो हुआ.

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  3. विसतृत विवरण से रू ब रू हुआ।

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  4. aapka har lekh kuch sochne par majboor kar deta hai.rajneeti ki achchi khabar lete hain aap.
    bahut achcha aapko badhaai.

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  5. train accident ka sach jaanne ki injaar rahegi.

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  6. बहुत ही बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकारी मिली! आपका हर एक पोस्ट एक से बढ़कर एक होता है और नयी जानकारी प्राप्त होती है!शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  7. यहाँ तो कोई भी दूध का धुला नहीं ......
    आपको कोई दिखता है इस कुर्सी के लायक ......??

    उत्तर प्रदेश में हुए रेल हादसे की जानकारी का इन्तजार है .....

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  8. आपकी बात में दम तो है.

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  9. इन भ्रष्टाचारियों के कान पर जूँ नहीं रेगने वाला, अच्छा है कि हम समाज को शिक्षित और सचेत करें, पहले यह देखना होगा कि हमारी बात समाज में कितने लोग गम्भीरता से ले रहे हैं...आपने अच्छे तरीके से सरकार की पोल खोलने की कोशिश की...धन्यवाद और बधाई

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  10. समझ नहीं आया जब अमेरिका का इतना दबाव हिया तो कौन नहीं माना ... मेडम या अपने मंमोहन ... या दोनों के अकाउंट में अभी पैसा नहीं पहुंचा ...

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  11. बहुत ही बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकारी मिली!विसतृत विवरण के लिए धन्यवाद और बधाई....

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  12. दिंगबर जी, अमेरिका की बात मानेगे जरूर, अभी मानसून सत्र में हंगामे बचने के लिए बस कोरम पूरा कर दिया गया है। मानसून सत्र बीतने दीजिए फिर देखिए सरकार का रंग...

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  13. आपका सवाल बहुत जायज और समीचीन है पर कोई ज़वाब देने वाला हो भी तो...

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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।