Sunday, 9 August 2015

UP : कम से कम भ्रष्टाचार में तो ईमानदारी हो




माननीय अखिलेश यादव जी
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार
लखनऊ

विषय : भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू करने के संबंध में

महोदय,

मैं आपसे ऐसी कोई मांग नहीं करना चाहता जो संभव न हो, मै ये भी नहीं चाहता कि आप दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह भ्रष्टाचार पर बड़ी बड़ी बातें करें और फिर भ्रष्टाचारियों को खुद ही संरक्षण दें। अखिलेश जी मेरी मांग बहुत ही व्यवहारिक है और इसे लागू करने से सरकार की आमदनी तो बढेगी ही, प्रदेश के लोगों का सरकार पर भरोसा भी बढेगा। खास बात ये है कि इस योजना को लागू करने से सरकार पर किसी तरह का अतिरिक्त बोझ भी नहीं बढ़ने वाला है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि इससे जनता की शिकायतें भी कम हो जाएंगी। बस सर भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू कर दीजिए।

कैसे करना है ?  चलिए ये भी मैं बताता हूं। केंद्र सरकार की तर्ज पर कीजिए। केंद्र सरकार रेलवे में " तत्काल टिकट " के नाम पर अतिरिक्त पैसे वसूल रही है ना ! एक ही क्लास, एक ही ट्रेन, एक ही डिब्बे में आमने सामने बैठे यात्री अलग - अलग किराया देकर आराम से सफर करते हैं ना ! आज तक किसी ने इसकी शिकायत की ? ये वो सरकारी भ्रष्टाचार है जो लीगल है। अब तो रेलवे ने प्रीमियम ट्रेन के नाम पर और अधिक पैसे वसूलने की तैयारी कर ली ।

केंद्र सरकार के विदेश मंत्रालय का उदाहरण ले लीजिए, पासपोर्ट बनवाने की फीस है १५०० रुपये, लेकिन आपको तत्काल ये सुविधा चाहिए तो दो हजार रुपये अतिरिक्त देने पर ये काम भी आसानी से हो जाता है। आपको तय समय के भीतर पासपोर्ट मिल जाता है। ये भी तो भ्रष्टाचार का काउंटर ही है मुख्यमंत्री जी।

एक और उदाहरण देता हूं ! भारतीय डाक तार विभाग ने क्या किया ? एक ही वजन और दूरी के पत्र को निर्धारित स्थान पर पहुंचाने का अलग अलग कीमत वसूल रहा है। इसे नाम दिया गया है स्पीड पोस्ट ! धडल्ले से सरकार काउंटर खोलकर जनता को बेशर्मी से चूना लगा रही है।

अखिलेश जी, आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप भी सूबे में भ्रष्टाचार का काउंटर खोल दीजिए, अतिरिक्त पैसे वसूलना शुरू कीजिए, लेकिन इसके लिए बकायदा काउंटर खुलवा दीजिए। आज उत्तर प्रदेश में कोई भी काम बिना पैसे के नहीं हो रहा है। हर छोटे छोटे काम के लिए पैसे दिए जा रहे हैं, फिर भी मुख्यमंत्री जी काम नहीं हो रहा है।

उदाहरण के लिए आपको बताऊं...

मै खुद अपनी बेटी के लर्निंग लाइसेंस के लिए जुलाई १५ में लखनऊ के आरटीओ आफिस गया और नियम के तहत लर्निंग लाइसेंस बनवाने के लिए पूरा दिन लगाया। कई कतार में लगा, सारे अभिलेख चेक कराए, आफिस में फोटो खिंच गए, लेकिन जब टेस्ट हुआ तो जो बेटी हाईस्कूल और इंटर में प्रथम श्रेणी में पास है, वो इस परीक्षा में फेल हो गई। आरटीओ आफिस से एक पत्र थमाया गया कि १५ दिन में दोबारा टेस्ट दीजिए।

मुख्यमंत्री जी आपको पता है सुबह ११ बजे से शाम को पांच बजे तक आरटीओ आफिस में जुटे रहने के बाद सिर्फ फेल का रिजल्ट ही मेरे हाथ लगा। वापस लौट रहा था तो एक दलाल ने टोका, भाई साहब अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। पांच सौ रुपये मैने दिए और पांच छह दिन बाद जुलाई में ही मेरे पास लर्निंग लाइसेंस आ गया। मुख्यमंत्री जी मै आपको फेल का लेटर और लाइसेंस दोनों दिखा सकता हूं।

बात यहीं खत्म नहीं हुई। एक बार जब लर्निंग लाइसेंस बन गया तो लगा कि अब छह महीने के भीतर स्थाई लाइसेंस बनवाने में कोई दिक्कत नहीं होगी, लेकिन बेटी दौड़ भाग करती रही और स्थाई लाइसेंस नहीं बन पाया। नजीता ये हुआ कि जनवरी के बाद लर्निंग लाइसेंस के छह महीने पूरे हो गए और स्थाई नहीं बन पाया। अब बताया गया कि फिर से लर्निंग लाइसेंस बनवाना होगा।

मुख्यमंत्री जी अगले लाइसेंस के लिए ७०० रुपये दलाल को दे आया हूं, १० दिन बीत गए, लेकिन अभी तक लाइसेंस नहीं आया है। आप से प्रार्थना है कि इस भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू कर दें, तत्काल लाइसेंस जैसी व्यवस्था कर दें, क्योंकि आपके राज में ९५ फीसदी लाइसेंस दलालों के जरिए ही बनते हैं। लाइन में लगने वालों को साजिश के तहत टेस्ट में फेल कर दिया जाता है।

हम रेलवे में तत्काल टिकट लेते हैं, मुझे कोई दिक्कत नहीं है, जिन्हें जल्दी पासपोर्ट लेना होता है वो अधिक पैसे देकर पासपोर्ट बनवाते हैं उन्हें कोई दिक्कत नहीं है,  अधिक पैसे देकर स्पीड पोस्ट से डाक भेजते हैं, हमें कोई दिक्कत नहीं है। प्लीज आप " सुविधा शुल्क " काउंटर की व्यवस्था कर दें, इससे कम से कम हमें अधिक पैसे देने पर सरकार की ओर से एक रसीद और भरोसा तो मिलेगा ना कि हमारा काम हो जाएगा। दलाल को पैसे भी देते हैं और भरोसा के साथ गारंटी भी नहीं कि काम हो ही जाएगा।

मुझे उम्मीद है कि मेरी बात पर ध्यान देंगे और जल्दी ही ऐसी व्यवस्था जरूर करेंगे, जिससे प्रदेश में ईमानदारी से भ्रष्टाचार को लागू किया जा सके।


आपका

महेन्द्र श्रीवास्तव
९८७१०९६६२६
लखनऊ

3 comments:

  1. बहुत सहीं व व्यवहारिक बात कहीं हैं...... आपने
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जी, अब बारी है अपनी प्रतिक्रिया देने की। वैसे तो आप खुद इस बात को जानते हैं, लेकिन फिर भी निवेदन करना चाहता हूं कि प्रतिक्रिया संयत और मर्यादित भाषा में हो तो मुझे खुशी होगी।