15 वीं लोकसभा में ना सिर्फ कामकाज कम हुआ, बल्कि मैने जितना देखा और पढा है, उसके आधार पर मैं पूरी जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि मौजूदा केंद्र की सरकार अब तक की सबसे घटिया, भ्रष्ट और निकम्मी सरकार रही है। कांग्रेस में आज एक बड़ा तबका ना सिर्फ भ्रष्टाचार में शामिल रहा है, बल्कि उसका आचरण भी नारायण दत्त तिवारी जैसा रहा है। हालत ये हो गई कि एक तरफ भ्रष्टाचार की खबरों से अखबार और न्यूज चैनल रंगे रहे, वही दूसरी ओर कांग्रेस नेताओं और मंत्रियों की अय्याशी की भी खबरें रहतीं थीं। इन दोनों गंदगी का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं था, वो सिर्फ प्रधानमंत्री की ईमानदारी छवि को आगे करने की कोशिश करते रहे। हालत ये हुई प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तस्वीर से लोगों को बदबू आने लगी। मेरा अनुभव यही कहता है कि मनमोहन सिंह की हैसियत 7 आरसीआर के स्पाँट ब्वाय से बढ़कर नहीं रही, मुझे तो नहीं लगता कि 10 साल में एक दिन भी वो देश के प्रधानमंत्री रहे, असल में तो वो 10 जनपथ के पिट्ठू बन कर रहे। इस 10 साल का शासन मेरी नजर में इतना गंदा है कि बस चले तो मैं इस पूरे कार्यकाल को भारत के इतिहास से निकाल बाहर कर दूं।
खैर कहते हैं ना कि "बोया पेड़ बबूल का तो फल काहे को होय " अब कांग्रेस ने जो गंदगी बोई है, उसे काटना भी उसी को होगा, और इसके लिए कांग्रेस को पूरी तरह तैयार भी रहना चाहिए। वैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पता चल गया है कि जनता का कांग्रेस के प्रति कितना गुस्सा है । इतना ही नहीं कांग्रेस की जगह लेने के लिेए कौन आगे आ रहा है, ये भी उसे अब पता चल गया है। अगर मैं कहूं कि कांग्रेस की इसी गंदगी की पैदावार है अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तो ये कहना कहीं से गलत नहीं होगा। अब जिस पार्टी की पैदावार के पीछे कांग्रेस हो, वो पार्टी आगे कैसा प्रदर्शन करेगी, इसे भी समझा जा सकता है। जब बुनियाद बेईमानी की होगी, जब बीज बेईमानी का बोया जाएगा, तो भला वो पार्टी कैसे साफ सुथरी रह सकती है ? अब देखिए पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा का चुनाव जीतते ही बच्चे की कसम खाई और कहाकि कांग्रेस और बीजेपी से ना समर्थन लेगें और ना ही समर्थन देंगे। बच्चे की कसम से पलट गए और कांग्रेस के सहयोग से कुर्सी पर जम गए। एक दिन पहले फिर दोहराया कि भ्रष्टाचार से कहीं ज्यादा खतरनाक साम्प्रदायिकता है। मतलब केजरीवाल कांग्रेस को इशारों में ये संकेत दे रहे हैं कि घबराएं नहीं, अगर चुनाव के बाद चुनना हुआ तो वो भ्रष्टाचारियों के गोद में बैठ जाएंगे।
वैसे भी कुर्सी मिलते ही केजरीवाल में कुर्सी की लालच की भी शुरुआत हो गई। वो तो भगवान का शुक्र है दो चार न्यूज चैनलो में ईमानदारी अभी बची है, वरना तो केजरीवाल ऐसी सोने की लंका में पहुंच चुके होते जहां से वापस आना उनके लिए संभव नहीं होता। आप सबने सुना होगा कि चुनाव के दौरान वो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भ्रष्ट बताते रहे, उन पर तमाम गंभीर आरोप लगाते रहे। केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए विपक्ष ने दबाव बनाया तो कहने लगे कि नेता विपक्ष यानि हर्षवर्धन उन्हें सुबूत दे दें तो वो रिपोर्ट दर्ज करा देंगे। मैं केजरीवाल से पूछता हूं कि अगर आपके पास सुबूत नहीं था तो ये अनर्गल आरोप क्यों लगा रहे थे ? खैर अंदर की बात ये है कि शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित और केजरीवाल दोनों अभिन्न मित्र और एनजीओबाज हैं, दोनो को एक दूसरे की करतूतें पता है, लिहाजा संदीप की मम्मी के खिलाफ भला कैसे एफआईआर कराते।
हालाकि मेरे साथ आप भी अरविंद केजरीवाल में तेजी से बदलाव महसूस कर रहे होंगे। केजरीवाल जब राजनीतिक पार्टी बना रहे थे तो बड़ी बड़ी बातें करते रहे। दावा कर रहे थे कि उनके यहां कोई हाईकमान नहीं होगा, सारे फैसले जनता से पूछ कर किए जाएंगे। यहां तक की पार्टी का उम्मीदवार कौन होगा, ये फैसला भी इलाके की जनता करेगी। केजरीवाल साहब क्या मैं जान सकता हूं कि लोकसभा के लिए कौन सा टिकट आपने जनता से पूछ कर दिया है ? जिस आम आदमी की आप बार-बार बात करते हैं वो आम आदमी को अपनी बात कहने के लिए आपके घर के सामने नारेबाजी क्यों करनी पड़ती है ? फिर भी आप उनकी बात नहीं सुनते। दिल्ली की जनता जानना चाहती है कि अगर आपने सभी की राय से टिकट दिया है तो रोज आपके घर के बाहर प्रदर्शन करने वाले लोग कौन हैं ? चलिए आप तो ईमानदार हैं ना, बस ईमानदारी से एक बात बता दीजिए.. क्या वाकई आपके यहां कोई हाईकमान नहीं है ? सभी फैसले आम आदमी की राय मशविरे से होते हैं। मैं जानता हूं कि इन सवालों का आपके पास कोई जवाब नहीं है। सच यही है कि केजरीवाल की हां में हां ना मिलाने वाला पार्टी बाहर हो जाता है, और उससे आम आदमी होने का हक भी छीन लिया जाता है।
अब देखिए..राजनीतिक पार्टी का ऐलान करने के दौरान और भी कई बड़ी-बड़ी बातें की। कहाकि हमारे मंत्री विधायक सरकारी बंगले नहीं लेगें। देश को लगा कि ये ईमानदारी आदमी है, देखो सरकारी बंगला लेने से भी मना कर रहा है। वरना तो लोगों ने राजनीति छोड़ दी, मकान नहीं छोड़ा। लेकिन चुनाव जीतने के बाद हुआ क्या.. केजरीवाल का असली चेहरा सामने आ गया, सरकारी आवास के लिए सिर्फ केजरीवाल ही नहीं उनके माता पिता सब किस तरह बेचैन थे, वो पूरे देश ने देखा। मुख्यमंत्री को आवंटित होने वाले आवास को देखने के लिए सबसे पहले माता - पिता ही घर से निकल लेते थे। बहरहाल खुद केजरीवाल ने पहले 10 कमरों के दो बंगला लेने के लिए हां कर दिया, टीवी चैनलों पर शोर शराबा मचा तो दो फ्लैट यानि आठ कमरे में आ गए। अगर ईमानदार होते और नैतिकता बची होती तो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते ही सरकारी मकान से निकल लिए होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ.. उनके जूनियर मंत्री मनीष सिसोदिया भी सरकारी मकान दबाकर बैठ गए, इन्होंने भी मकान नहीं छोड़ा। सवाल उठा तो कहने लगे कि उनके पास कोई मकान नहीं है। मजेदार बात तो ये कि जब पत्रकारों ने केजरीवाल से पूछा कि क्या साहब आप सरकारी मकान क्यों नहीं छोड़ रहे हैं ? इस पर जो जवाब केजरीवाल ने दिया, इससे तो दिल्ली की जनता की निगाह से ही गिर गए। मकान के मुद्दे पर केजरीवाल ने कहाकि पहले जाकर शीला दीक्षित का बंगला देखो, फिर बात करो कि उनसे छोटा है मेरा घर या बड़ा है। लेकिन केजरीवाल को कौन समझाए, यहां बात छोटे बड़े मकान की नहीं ये तो आपकी ईमानदारी की बात है। रही बात शीला दीक्षित की तो मैं जानना चाहता हूं कि क्या मैडम शीला दीक्षित ही अरविंद केजरीवाल की रोल माँडल हैं ? अंदर की खबर ये है कि आपके ही पार्टी के बाकी मंत्री अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।
आपने बहुत राग अलापा कि कोई सरकारी कार इस्तेमाल नहीं करेगा। मीडिया में खबर बनने के लिए आपने 8 किलोमीटर की यात्रा भी रिजर्व मेट्रो ट्रेन से की। कार्यकर्ताओं ने मेट्रो स्टेशनों पर हंगामा बरपा दिया। पांच दिन तक केजरीवाल ने अपनी बैगनआर गाड़ी पर खूब तस्वीरें खिंचवाई। लेकिन थोड़े ही दिन बाद पूरा मंत्रिमंडल चमचमाती आलीशान सरकारी वाहनों पर आ गया। केजरीवाल साहब अगर आप सबको सरकारी वाहन इस्तेमाल ही करना था तो क्या आपकी मारुति कंपनी वालों से कोई साँठ गांठ थी कि टीवी चैनल पर उनकी कार वैगनआर का विज्ञापन कर रहे थे। अरविंद जी सच ये है कि आपको अवसर नहीं मिला, जब अवसर मिला तो आपने भी दूसरे नेताओं की तरह ओछी हरकत करने में आपको भी कोई परहेज नहीं रहा।
अब देखिए, केजरीवाल ने देश में आम आदमी की परिभाषा ही बदल दी। सबको पता है कि दिल्ली में इस बार " आप " पार्टी बेहतर कर सकती है। ऐसे में आप अगर सच में आम आदमी की हितों की बात करते तो किसी आँटो वाले को लोकसभा का चुनाव लड़ा देते। जो झुग्गी झोपड़ी वाले केजरीवाल के लिए लड़ते पिटते रहे हैं, वो किसी झुग्गी वाले को उम्मीदवार बनाते। लेकिन केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया, वो हर क्षेत्र के शिखर पहुंचे लोगों को हायर कर रहे हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि जिसे वो ले रहे हैं, या जिसे उम्मीदवार बना रहे हैं, वो अपने क्षेत्र में कितना विवादित रहा है। केजरीवाल को लगता है कि आज देश में ये हालत है कि अगर केजरीवाल किसी जानवर को भी टिकट दे दें तो वो ना सिर्फ आदमी हो जाएगा, बल्कि टोपी पहनते ही आम आदमी हो जाएगा। यही वजह है कि उन्हें सामान्य आदमी दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। आप पार्टी ने एक अभियान चला रखा है कि बड़े आदमी को टोपी पहना कर आम बनाओ, लेकिन केजरीवाल साहब इस बड़े आदमी की काली और मोटी खाल को कैसे बदलोगे।
आखिरी बात !
केजरीवाल दुनिया भर से सवाल पूछ रहे हैं, मेरा मानना है कि कुछ जिम्मेदारी भी केजरीवाल साहब की है, इतना ही नहीं वो भी जनता के प्रति आप जवाबदेह हैं। लेकिन हो क्या रहा है, कोर्ट और गृहमंत्रालय केजरीवाल से लगातार पूछ रहा है कि उन्हें किस-किस विदेशी संस्था से धन मिल रहा है और वो उसका क्या इस्तेमाल कर रहे हैं। अमेरिकी संस्था फोर्ड फाउंडेशन और खुफिया एजेंसी सीआईए से केजरीवाल का क्या संबंध है ? अब केजरीवाल की हालत ये है कि वो दुनिया भर से सवाल पूछेंगे, जवाब ना आए तो गाली देगें, लेकिन वो खुद देश की संवैधानिक संस्थाओं को जवाब देना ठीक नहीं समझते। लेकिन उम्मीद कर रहे हैं कि राष्ट्रीय पार्टिया उनके इशारे पर नाचें और उनके हर सवाल का जवाब दें। एक बात सिर्फ केजरीवाल से... आपने राजनीति से हटकर कभी ईमानदारी से सोचा कि 49 दिन की सरकार में सच में आपने जनता के लिए कितना काम किया। आप बिजली पानी में भी ईमानदार नहीं रहे। नियमों को ताख पर रखकर सिर्फ घोषणाएं करते रहे, यानि गरीब का बिजली पानी आपके लिए लोकसभा चुनाव की जमीन तैयार करने भर से ज्यादा कुछ नहीं रहा। आए थे झुग्गी को पक्का करने, लेकिन खुद और अपने खास चेले मनीष के साथ मिलकर दोनों ने करोडो का मकान अपने नाम आवंटित करा लिया, जबकि दिल्ली की जनता को मिला बाबा जी का ठुल्लू.. मैने गलत तो नहीं कहा ना। वैसे मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अगर टीम केजरीवाल को भी आठ दस साल मिल गया होता तो ये टीम भ्रष्टाचार के सारे कीर्तिमान तोड़ देती।
खैर कहते हैं ना कि "बोया पेड़ बबूल का तो फल काहे को होय " अब कांग्रेस ने जो गंदगी बोई है, उसे काटना भी उसी को होगा, और इसके लिए कांग्रेस को पूरी तरह तैयार भी रहना चाहिए। वैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पता चल गया है कि जनता का कांग्रेस के प्रति कितना गुस्सा है । इतना ही नहीं कांग्रेस की जगह लेने के लिेए कौन आगे आ रहा है, ये भी उसे अब पता चल गया है। अगर मैं कहूं कि कांग्रेस की इसी गंदगी की पैदावार है अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तो ये कहना कहीं से गलत नहीं होगा। अब जिस पार्टी की पैदावार के पीछे कांग्रेस हो, वो पार्टी आगे कैसा प्रदर्शन करेगी, इसे भी समझा जा सकता है। जब बुनियाद बेईमानी की होगी, जब बीज बेईमानी का बोया जाएगा, तो भला वो पार्टी कैसे साफ सुथरी रह सकती है ? अब देखिए पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा का चुनाव जीतते ही बच्चे की कसम खाई और कहाकि कांग्रेस और बीजेपी से ना समर्थन लेगें और ना ही समर्थन देंगे। बच्चे की कसम से पलट गए और कांग्रेस के सहयोग से कुर्सी पर जम गए। एक दिन पहले फिर दोहराया कि भ्रष्टाचार से कहीं ज्यादा खतरनाक साम्प्रदायिकता है। मतलब केजरीवाल कांग्रेस को इशारों में ये संकेत दे रहे हैं कि घबराएं नहीं, अगर चुनाव के बाद चुनना हुआ तो वो भ्रष्टाचारियों के गोद में बैठ जाएंगे।
वैसे भी कुर्सी मिलते ही केजरीवाल में कुर्सी की लालच की भी शुरुआत हो गई। वो तो भगवान का शुक्र है दो चार न्यूज चैनलो में ईमानदारी अभी बची है, वरना तो केजरीवाल ऐसी सोने की लंका में पहुंच चुके होते जहां से वापस आना उनके लिए संभव नहीं होता। आप सबने सुना होगा कि चुनाव के दौरान वो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भ्रष्ट बताते रहे, उन पर तमाम गंभीर आरोप लगाते रहे। केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर दर्ज कराने के लिए विपक्ष ने दबाव बनाया तो कहने लगे कि नेता विपक्ष यानि हर्षवर्धन उन्हें सुबूत दे दें तो वो रिपोर्ट दर्ज करा देंगे। मैं केजरीवाल से पूछता हूं कि अगर आपके पास सुबूत नहीं था तो ये अनर्गल आरोप क्यों लगा रहे थे ? खैर अंदर की बात ये है कि शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित और केजरीवाल दोनों अभिन्न मित्र और एनजीओबाज हैं, दोनो को एक दूसरे की करतूतें पता है, लिहाजा संदीप की मम्मी के खिलाफ भला कैसे एफआईआर कराते।
हालाकि मेरे साथ आप भी अरविंद केजरीवाल में तेजी से बदलाव महसूस कर रहे होंगे। केजरीवाल जब राजनीतिक पार्टी बना रहे थे तो बड़ी बड़ी बातें करते रहे। दावा कर रहे थे कि उनके यहां कोई हाईकमान नहीं होगा, सारे फैसले जनता से पूछ कर किए जाएंगे। यहां तक की पार्टी का उम्मीदवार कौन होगा, ये फैसला भी इलाके की जनता करेगी। केजरीवाल साहब क्या मैं जान सकता हूं कि लोकसभा के लिए कौन सा टिकट आपने जनता से पूछ कर दिया है ? जिस आम आदमी की आप बार-बार बात करते हैं वो आम आदमी को अपनी बात कहने के लिए आपके घर के सामने नारेबाजी क्यों करनी पड़ती है ? फिर भी आप उनकी बात नहीं सुनते। दिल्ली की जनता जानना चाहती है कि अगर आपने सभी की राय से टिकट दिया है तो रोज आपके घर के बाहर प्रदर्शन करने वाले लोग कौन हैं ? चलिए आप तो ईमानदार हैं ना, बस ईमानदारी से एक बात बता दीजिए.. क्या वाकई आपके यहां कोई हाईकमान नहीं है ? सभी फैसले आम आदमी की राय मशविरे से होते हैं। मैं जानता हूं कि इन सवालों का आपके पास कोई जवाब नहीं है। सच यही है कि केजरीवाल की हां में हां ना मिलाने वाला पार्टी बाहर हो जाता है, और उससे आम आदमी होने का हक भी छीन लिया जाता है।
अब देखिए..राजनीतिक पार्टी का ऐलान करने के दौरान और भी कई बड़ी-बड़ी बातें की। कहाकि हमारे मंत्री विधायक सरकारी बंगले नहीं लेगें। देश को लगा कि ये ईमानदारी आदमी है, देखो सरकारी बंगला लेने से भी मना कर रहा है। वरना तो लोगों ने राजनीति छोड़ दी, मकान नहीं छोड़ा। लेकिन चुनाव जीतने के बाद हुआ क्या.. केजरीवाल का असली चेहरा सामने आ गया, सरकारी आवास के लिए सिर्फ केजरीवाल ही नहीं उनके माता पिता सब किस तरह बेचैन थे, वो पूरे देश ने देखा। मुख्यमंत्री को आवंटित होने वाले आवास को देखने के लिए सबसे पहले माता - पिता ही घर से निकल लेते थे। बहरहाल खुद केजरीवाल ने पहले 10 कमरों के दो बंगला लेने के लिए हां कर दिया, टीवी चैनलों पर शोर शराबा मचा तो दो फ्लैट यानि आठ कमरे में आ गए। अगर ईमानदार होते और नैतिकता बची होती तो मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते ही सरकारी मकान से निकल लिए होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ.. उनके जूनियर मंत्री मनीष सिसोदिया भी सरकारी मकान दबाकर बैठ गए, इन्होंने भी मकान नहीं छोड़ा। सवाल उठा तो कहने लगे कि उनके पास कोई मकान नहीं है। मजेदार बात तो ये कि जब पत्रकारों ने केजरीवाल से पूछा कि क्या साहब आप सरकारी मकान क्यों नहीं छोड़ रहे हैं ? इस पर जो जवाब केजरीवाल ने दिया, इससे तो दिल्ली की जनता की निगाह से ही गिर गए। मकान के मुद्दे पर केजरीवाल ने कहाकि पहले जाकर शीला दीक्षित का बंगला देखो, फिर बात करो कि उनसे छोटा है मेरा घर या बड़ा है। लेकिन केजरीवाल को कौन समझाए, यहां बात छोटे बड़े मकान की नहीं ये तो आपकी ईमानदारी की बात है। रही बात शीला दीक्षित की तो मैं जानना चाहता हूं कि क्या मैडम शीला दीक्षित ही अरविंद केजरीवाल की रोल माँडल हैं ? अंदर की खबर ये है कि आपके ही पार्टी के बाकी मंत्री अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।
आपने बहुत राग अलापा कि कोई सरकारी कार इस्तेमाल नहीं करेगा। मीडिया में खबर बनने के लिए आपने 8 किलोमीटर की यात्रा भी रिजर्व मेट्रो ट्रेन से की। कार्यकर्ताओं ने मेट्रो स्टेशनों पर हंगामा बरपा दिया। पांच दिन तक केजरीवाल ने अपनी बैगनआर गाड़ी पर खूब तस्वीरें खिंचवाई। लेकिन थोड़े ही दिन बाद पूरा मंत्रिमंडल चमचमाती आलीशान सरकारी वाहनों पर आ गया। केजरीवाल साहब अगर आप सबको सरकारी वाहन इस्तेमाल ही करना था तो क्या आपकी मारुति कंपनी वालों से कोई साँठ गांठ थी कि टीवी चैनल पर उनकी कार वैगनआर का विज्ञापन कर रहे थे। अरविंद जी सच ये है कि आपको अवसर नहीं मिला, जब अवसर मिला तो आपने भी दूसरे नेताओं की तरह ओछी हरकत करने में आपको भी कोई परहेज नहीं रहा।
अब देखिए, केजरीवाल ने देश में आम आदमी की परिभाषा ही बदल दी। सबको पता है कि दिल्ली में इस बार " आप " पार्टी बेहतर कर सकती है। ऐसे में आप अगर सच में आम आदमी की हितों की बात करते तो किसी आँटो वाले को लोकसभा का चुनाव लड़ा देते। जो झुग्गी झोपड़ी वाले केजरीवाल के लिए लड़ते पिटते रहे हैं, वो किसी झुग्गी वाले को उम्मीदवार बनाते। लेकिन केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया, वो हर क्षेत्र के शिखर पहुंचे लोगों को हायर कर रहे हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि जिसे वो ले रहे हैं, या जिसे उम्मीदवार बना रहे हैं, वो अपने क्षेत्र में कितना विवादित रहा है। केजरीवाल को लगता है कि आज देश में ये हालत है कि अगर केजरीवाल किसी जानवर को भी टिकट दे दें तो वो ना सिर्फ आदमी हो जाएगा, बल्कि टोपी पहनते ही आम आदमी हो जाएगा। यही वजह है कि उन्हें सामान्य आदमी दिखाई ही नहीं दे रहे हैं। आप पार्टी ने एक अभियान चला रखा है कि बड़े आदमी को टोपी पहना कर आम बनाओ, लेकिन केजरीवाल साहब इस बड़े आदमी की काली और मोटी खाल को कैसे बदलोगे।
आखिरी बात !
केजरीवाल दुनिया भर से सवाल पूछ रहे हैं, मेरा मानना है कि कुछ जिम्मेदारी भी केजरीवाल साहब की है, इतना ही नहीं वो भी जनता के प्रति आप जवाबदेह हैं। लेकिन हो क्या रहा है, कोर्ट और गृहमंत्रालय केजरीवाल से लगातार पूछ रहा है कि उन्हें किस-किस विदेशी संस्था से धन मिल रहा है और वो उसका क्या इस्तेमाल कर रहे हैं। अमेरिकी संस्था फोर्ड फाउंडेशन और खुफिया एजेंसी सीआईए से केजरीवाल का क्या संबंध है ? अब केजरीवाल की हालत ये है कि वो दुनिया भर से सवाल पूछेंगे, जवाब ना आए तो गाली देगें, लेकिन वो खुद देश की संवैधानिक संस्थाओं को जवाब देना ठीक नहीं समझते। लेकिन उम्मीद कर रहे हैं कि राष्ट्रीय पार्टिया उनके इशारे पर नाचें और उनके हर सवाल का जवाब दें। एक बात सिर्फ केजरीवाल से... आपने राजनीति से हटकर कभी ईमानदारी से सोचा कि 49 दिन की सरकार में सच में आपने जनता के लिए कितना काम किया। आप बिजली पानी में भी ईमानदार नहीं रहे। नियमों को ताख पर रखकर सिर्फ घोषणाएं करते रहे, यानि गरीब का बिजली पानी आपके लिए लोकसभा चुनाव की जमीन तैयार करने भर से ज्यादा कुछ नहीं रहा। आए थे झुग्गी को पक्का करने, लेकिन खुद और अपने खास चेले मनीष के साथ मिलकर दोनों ने करोडो का मकान अपने नाम आवंटित करा लिया, जबकि दिल्ली की जनता को मिला बाबा जी का ठुल्लू.. मैने गलत तो नहीं कहा ना। वैसे मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अगर टीम केजरीवाल को भी आठ दस साल मिल गया होता तो ये टीम भ्रष्टाचार के सारे कीर्तिमान तोड़ देती।
सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं ....
ReplyDeleteबात तो सही है
Deleteसभी दलों के नेताओं सोच एक ही होती है ऐश करना ..!
ReplyDeleteRECENT POST - फागुन की शाम.
सच है
Deleteसादर नमन-
ReplyDeleteनमस्कार भाई जी
Deleteसच ही प्रधानमंत्री १० जनपथ के पिठू है ...सब नेता एक जैसे कोई सेर कोई सबा सेर ..
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार रंजना जी
Deleteबहुत बहुत आभार
ReplyDeletejhooth ke dher me sach ke kuchh kan kuchh samay ke liye chhup jate hain. APP to abhi bachcha hai , hamein samalochana badi dono partiyo ki karena chahiye.....A K Singh
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