मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में राहुल गांधी बुरे फंस गए, बेचारे अभी तो राजनीति की एबीसीडी सीख रहे हैं, और पार्टी ने उन्हें यूपी में फंसा दिया। अरे भाई पहले राहुल को किसी छोटे और शांतिप्रिय राज्य में चुनाव के दौरान भेजा जाना चाहिए था, जैसे गोवा, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा जैसे छोटे राज्यों में। यहां उन्हें कोई खास दिक्कत भी नहीं होती। वहां जाते और पार्टी के लिए काम करते, पार्टी को जीत भी मिल जाती और वाहवाही लूटते। लेकिन पता नहीं क्यों लगता है कि कुछ लोग राहुल के खिलाफ ही साजिश कर रहे हैं। उनको स्टार प्रचारक बता कर यूपी चुनाव में टहला रहे हैं।
बहरहाल अब तो यूपी में राहुल की साथ और ताज दोनों दांव पर लगा है। साख मतलब कई महीनों से बेचारे कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने के लिए गांव गांव दौड़ लगा रहे हैं। दलितों के यहां भोजन कर रहे हैं, पार्टी को उन पर भरोसा है कि वो यूपी में कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में कामयाब हो जाएंगे। ताज भी दावं पर लगा है, यानि असली युवराज कौन है, ये मसला भी इस चुनाव में तय हो जाएगा। मित्रों सच तो ये है कि जिस तरह मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव की सभाओं में भीड़ उमड़ रही है, उससे इतना तो साफ है कि इस चुनाव के बाद वो भी किसी युवराज से कम नहीं रहेंगे। यानि हम कह सकते हैं कि चुनाव के नतीजे ये भी साफ करेंगे कि असली युवराज कौन है, राहुल या फिर अखिलेश ।
पिछले दिनों पेड न्यूज की बात चल रही थी, देश भर में बहुत हायतौबा मचा। लोगों ने ऊंगली उठानी शुरू कर दी अखबार मालिकों पर। लेकिन ये पेड सर्वे के नाम पर क्या हो रहा है। कुछ लोगों ने सर्वे को धंधा बना लिया है। यूपी के 25 से ज्यादा जिलों में हो आया हूं, ईमानदारी से कह रहा हूं कि खुद ऐसे कांग्रेसी भी नहीं मिले जो दावे से अपने उम्मीदवार की जीत का दावा कर रहे हों। हालत ये है कि बाराबंकी में बेनी प्रसाद वर्मा, बस्ती में जगदंबिका पाल को अपने बेटों को चुनाव जीताने में पूरी ऐडी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। इतना ही नहीं अमेठी में डा.संजय सिंह अपनी पत्नी को चुनाव जीताने के लिए रात दिन एक किए हुए हैं। इन सबके बाद भी ये तीनों चुनाव जीत पाएंगे या नहीं, इस पर लोगों को शक है।
मैं आज रायबरेली में हूं। सच बताऊं तो बहुत थका हुआ हूं, क्योंकि शनिवार को वाराणसी में रात नौ बजे कार्यक्रम खत्म होने के बाद मैने मुगलसराय से रांची राजधानी पकड़ लिया और दिल्ली के लिए रवाना हो गया, क्योंकि संडे को कोई कार्यक्रम नहीं था, सोमवार को ये चौपाल गांधी परिवार के गढ रायबरेली में लगनी थी। रविवार को दोपहर बाद मैं घर पहुंच गया, 15 दिन बाद बच्चों से मुलाकात हुई। कुछ देर घर मे रुकने के बाद मैं बच्चों को लेकर मांल घूमने चला गया। वापसी देर रात में हुई और सुबह जल्दी उठकर दिल्ली से हवाई जहाज से लखनऊ और लखनऊ से कार लेकर दोपहर दो बजे रायबरेली आया हूं। अभी शाम के चार बजने वाले हैं, जब में ये ब्लाग लिख रहा हूं। मैने ये सब सिर्फ इसलिए बताया कि इतना थका होने के बाद भी अगर ब्लाग लिखने बैठा हूं तो कुछ खास बात जरूर होगी।
दरअसल रायबरेली के जिस होटल में मैं हूं, ये यहां का जाना माना होटल है। लेकिन होटल के ज्यादातर कमरे खाली पड़े हैं। मैने वैसे ही होटल के कुछ लोगों से बातचीत के दौरान पूछ लिया कि भाई बहुत सन्नाटा है आपके होटल में। फिर उसने जो कुछ बताया वो हैरान करने वाला था। उसका कहना है कि यहां जब भी चुनाव होते हैं, यहां देश के बड़े बड़े कारपोरेट घरानों के नुमाइंदे यहां आकर डेरा डाल देते हैं और हर गांव में ना सिर्फ पैसे बांटे जाते हैं, बल्कि महीनों तक पूरे गांव का भरपूर मनोरंजन किया जाता है। करोडो रुपये इसी होटल से लोगों को बांट दिए जाते हैं। लेकिन इस बार रास्ते में इतनी चेकिंग हो रही है कि रुपये पैसों का बांटना इतना आसान नहीं रह गया है।
बताइये जब ये हाल उस निर्वाचन क्षेत्र का है जहां कांग्रेस का बोलबाला माना जाना है। सोनिया और राहुल गांधी का निर्वाचन क्षेत्र है। हालाकि मैं ये बात होटल से मिली जानकारी के आधार पर ही कह रहा हूं। लेकिन मुझे इनकी बातों में सच्चाई इसलिए लगती है कि यहां से राहुल सोनिया तो जीत जाते हैं, परंतु विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी के ही उम्मीदवार हार जाते हैं। क्या इसकी वजह ये तो नहीं कि बड़े चुनाव में खूब पैसे बंटते है और छोटे चुनाव में नहीं बंटते, लिहाजा लोग गुस्से में आकर कांग्रेस के खिलाफ वोट करते हैं।
खैर दिल्ली में बैठकर कुछ लोग कांग्रेस का झंडा बुलंद किए हुए हैं, कांग्रेस को लगभग 100 सीटें दे रहे हैं। लेकिन 25 से ज्यादा जिलों में घूमने के बाद मेरा मानना है कि इस चुनाव में कांग्रेस को किसी भी तरह की गलतफहमीं में नहीं रहना चाहिए, उनके गंठबंधन को 60 सीटें मिल जाएं तो वो इसे पार्टी और राहुल गांधी की कामयाबी समझें। हां एक बात तो मैं कह सकता हूं कि चुनाव में काग्रेसी भी इस बार मैदान में दिखाई दे रहे हैं। चुनाव भले हार जाएं, पर वो चुनाव लड़ते तो नजर आ रहे हैं। ऐसे में जहां पिछले चुनावो में 85 फीसदी से ज्यादा कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी, इस मुझे लगता है कि इस प्रतिशत में दस पांच प्रतिशत लोगों की गिरावट दर्ज होगी। यानि कुछ और भी कांग्रेस उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में कामयाब हो सकते हैं। बहरहाल देखना अब देखना ये है कि ” युवराज “ का ताज राहुल गांधी बचा पाते हैं या फिर मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव इस ताज को भी अपने नाम करने में कामयाब हो जाते हैं।
सही - सही कह दी आपने तो ...लेकिन राहुल की मेहनत कुछ न कुछ तो कांग्रेस को दे जाएगी ....फिर भी अनिश्चितता तो बनी रहती है .......! चुनाव हैं यह ....राजनीति ही यह ....!
ReplyDeleteआपका आकलन बिल्कुल सही है!
ReplyDeleteक्या लोकतन्त्र समाप्त हो गया और राजतंत्र कायम हो गया है?वरना 'युवराज' शब्द का 'लोकतन्त्र'से क्या वास्ता?
ReplyDelete'युवराज'...राहुल गाँधी का क्या होगा ..ये तो चुनाव नतीजे के बाद ही पता चलेगा ...
ReplyDeleteआपके मूल्यांकन से सहमत हूँ मेरे ख्याल से लड़ाई तीसरा स्थान पाने की है,..लकिन राज्य में सरकार कोंग्रेस + समाजवादी मिलकर ही बनाएगे,केन्द्र में ममता को बाहर कर मुलायम सिंह को शामिल करगे,ऐसा करना दोनों की मजबूरी है
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा आपने,बढ़िया प्रस्तुति
NEW POST.... ...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
महेन्द्र जी आपके निष्पक्ष रुख देख कर साफ़ रिपोर्ट मिल रही है, नहीं तो आजकल तो अखबार टीवी सब में से पता ही नहीं चलता कि कौन बिका हुआ है?
ReplyDeleteयुवराज.....???????
ReplyDeleteमहेंद्र जी सही कहा अपने... लेकिन राहुल की सत्ता को कोई नुकसान नहीं पहुँचने वाला.. क्योंकि वो सोनिया गाँधी के लड़के हैं.. गाँधी परिवार के हैं... उनकी जगह और कोई नेता होता तो जरुर इस चुनाव के बाद उसका कैरियर ख़त्म हो जाता.... वैसे मीडिया तो पूरी तरह से कांग्रेसमय दिख रही है... न्यूज़ चेनल और अखवार देख कर तो लगता ही नहीं की कांग्रेस के खिलाफ भी उत्तर प्रदेश के चुनाव में कोई और दल भी है....
ReplyDeleteघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
ReplyDeleteलिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
अगर टीवी पर बैठ कर देखें तो मीडिया हर तरह से राहुल को युवराज साबित करने मे लगा है... पर आपके सटीक आंकलन निष्पक्ष लग रहे हैं...
ReplyDeleteइस चुनाव से तय होगा कौन मंद मति अस्थिर बालक है .कौन असली राजकुमार है कौन कथित राजकुमार है .यहाँ तो पर्दा नशीं भी परदे से बाहर आये हैं .गेस्ट आर्टिस्ट की तरह 'प्रियंका ' भी आईं हैं गेस्ट आइटम बनके .देखें हाथी किस करवट लेटता है .ढका हाथी धेले का या सवा लाख का .
ReplyDeleteराहुल के खिलाफ़ साजिश... भारत के उज्जवल भविष्य के लिए:)
ReplyDeleteक्या बात है महेन्द्रजी. लगता है कि यूपी भ्रमण के दौरान आपने वहां की राजनीति की अच्छी समीक्षा कर डाली है। बहुत खूब। अच्छा विश्लेषण है।
ReplyDeletewww.rajnishonline.blogspot.com
सही कहा आपने सर -अगर मैं आपके साथ गया होता तो मैं भी यूपी के हालात जान पाता और जीवन के कुछ नए अनुभव से रूबरू होता- शायद कुछ लिखता भी-लेकिन कोई बात नहीं - आपके लेख को पढ़कर लगा जैसे मैं वहीं हूं- इतना जीवंत लिखने और सही जानकारी देने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteu p ke halat ki jankari aapke karyakram se bhi mil rahi hai fir aapka steek vishleshan ...bahut bahut abhar..
ReplyDeleteदेखना है अब क्या होता है राजनीति है यह कब क्या हो कुछ कहा नहीं जा सकता...सटीक विश्लेषण
ReplyDeleteकाश! बी.जे.पी. और मायावती भी अपने अपने युवराज प्रस्तुत कर पाती चुनाव में.
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