Sunday 18 October 2015

औकात है तो हमारा " प्यार " वापस दो !

देश के जाने माने शायर मुनव्वर राना का असली चेहरा आज सामने आया। इस उम्र में इतनी घटिया एक्टिंग एक राष्ट्रीय चैनल पर करते हुए उन्हें देखा तो एक बार खुद पर भरोसा नहीं हुआ। लेकिन चैनल ने भी अपनी टीआरपी को और मजबूत करने का ठोस प्लान बना रखा था, लिहाजा मुनव्वर राना का वो घटिया कृत्य बार बार दिखाता रहा। राना का फूहड़ ड्रामा देखकर एक बार तो ये भी भ्रम हुआ कि मैं टीवी का टाँक शो देख रहा हूं या फिर कलर्स चैनल का रियलिटी शो बिग बाँस देख रहा हूं। वैसे नफरत की राजनीति करने वाले राना अगर बिग बाँस के घर के लिए परफेक्ट हैं !


आइये अब पूरा मसला बता दे, रविवार के दिन आमतौर पर न्यूज चैनलों के पास करने को ज्यादा कुछ होता नहीं है। उन्हें कुछ सनसनी टाइप चीजों की जरूरत होती है। इसके लिए आज ABP न्यूज चैनल पर राजनीतिज्ञों के साथ साहित्यकारों को बैठाया गया और साहित्य अकादमी पुरस्कारों के वापस करने पर बहस शुरू हुई। सच ये हैं कि देश की जनता आज तक ये नहीं समझ पाई कि साहित्यकार अचानक सम्मान वापस क्यों कर रहे हैं। सोशल साइट पर तो भले ही बात मजाक में कही जा रही हो लेकिन कुछ हद तक सही भी लगती है। " शायद साहित्यकारों ने अपना ही लिखा दोबारा पढ़ लिया और उन्हें शर्म आ रही है कि ऐसी लेखनी पर तो वाकई अवार्ड नहीं बनता, चलो वापस कर दें " । मुझे तो हंसी इस बात पर आ रही है कि साहित्य अकादमी का पुरस्कार वापसी के बाद पता चल रहा है कि इन्हें भी मिल चुका है ये अवार्ड ।


चलिए अब सीधे मुनव्वर राना से बात करते हैं । जनाब आप तो कमाल के आदमी हैं, अवार्ड में मिले रुपये का चेक और मोमेंटो हमेशा साथ झोले में रख कर चलते हैं। आप तो टीवी शो पर एक बहस मे हिस्सा लेने आए थे, यहीं आपने चेक और मोमेंटो एंकर को थमा दिया। मै जानता हूं आपको खबरों और उसकी सुर्खियों में बने रहने का सलीका पता है। राना साहब ये सब संयोग तो बिल्कुल नहीं हो सकता । मैं तो दावे के साथ कह सकता हूं कि या तो आपने चैनल के साथ समझौता किया कि हम यहां अवार्ड वापस करेंगे और आपको उसके बाद पूरा शो इसी पर दिखाना है या फिर रायबरेली की उस पार्टी इशारे पर नाच रहे हैं जिसकी आप चरण वंदना करते नहीं थकते हैं। वैसे राना साहब आपके ही किसी शायर की दो लाइन याद आ रही है ....


कौन सी बात कब कहां और कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है । 

शायर की ये बेसिक बात भी आप भूल गए राना जी। न्यूज रूम कैमरा देख इतना भावुक हो गए कि आपने देश की इज्जत को ही दांव पर लगा दिया । चलिए मैं देखता हूं कि आप कितने अमीर हैं और  हमारे कितने अवार्ड  वापस करते हैं। अगर है आप में दम और औकात तो आपको सुनने के लिए देर रात तक मुशायरे में बैठे रहने वाला समय हमें वापस कीजिए। है औकात तो देशवासियों से मिली तालियां वापस कीजिए, है इतनी हैसियत तो हमारी वाहवाही भी वापस कीजिए। इतना ही नहीं अगर आपके पूरे खानदान की औकात हो तो देशवासियों ने जो प्यार आपको दिया है वो वापस कीजिए। राना जी राजनीति घटिया खेल है, इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन आप उसी घटिया राजनीति के शुरू से हिस्सा रहे हैं।


टीवी पर एंकर कमजोर थी, शो का प्रोड्यूसर भी शायद आपके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखता था। वरना तो उसी ABP न्यूज चैनल पर आपका असली रूप दिखा और सुना भी सकता था। लोगों को भी आपकी असलियत का पता तो चलता । आप को कांग्रेस नेता सोनिया गांधी कितनी प्रिय हैं ये तो सबको पता होना ही चाहिए ।

सोनियां गांधी के चरणों में मुनव्वर राना की भेंट । पढ़ तो लीजिए ही उनकी भावनाओं को, लेकिन संभव हो तो यूट्यूब पर जाकर इसे राना साहब की आवाज में सुनें भी, देखिए कितना दर्द है उनके भीतर ...


एक बेनाम सी चाहत के लिए आयी थी,
आप लोंगों से मोहब्बत के लिए आयी थी,
मैं बड़े बूढों की खिदमत के लिए आयी थी,
कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी ?
शिज्रा-ए-रंग-व-गुल-व-बू नहीं देखा जाता,
शक की नज़रों से बहु को नहीं देखा जाता !
रुखसती होते ही माँ बाप का घर भूल गयी,
भाई के चेहरों को बहनों की नज़र भूल गयी,
घर को जाती हुयी हर राहगुज़र भूल गयी,
में वह चिड़िया हूँ जो अपना ही शजर भूल गयी,
में तो जिस देश में आयी थी वही याद रहा,
होके बेवा भी मुझे सिर्फ पति याद रहा !
नफरतों ने मेरे चेहरे से उजाला छीना,
जो मेरे पास था वह चाहने वाला छीना,
सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना,
मुझ से गिरजा भी लिया मेरा शिवाला छीना,
अब यह तकदीर तो बदली भी नहीं जा सकती,
में वो बेवा हूँ जो इटली भी नहीं जा सकती !
अपने घर में यह बहुत देर कहाँ रहती है,
लेके तकदीर जहाँ जाये वहां रहती है,
घर वही होता है औरत का जहाँ रहती है,
मेरे दरवाज़े पे लिख दो यहाँ माँ रहती है,
सब मेरे बाग़ के बुलबुल की तरह लगते है,
सारे बच्चे मुझे 'राहुल' की तरह लगते हैं !
हर दुखे दिल से मोहब्बत है बहु का ज़िम्मा,
घर की इज्ज़त की हिफाज़त है बहु का ज़िम्मा,
घर के सब लोंगों की खिदमत है बहु का ज़िम्मा,
नौजवानी की इबादत है बहु का ज़िम्मा आयी,
बाहर से मगर सब की चहीती बनकर,
वह बहु है जो रहे साथ में बेटी बनकर !



राना साहब आपकी हैसियत नहीं है देश से मिले सम्मान को वापस करने की। आपको देश से माफी मांगनी चाहिए । वरना देश आपको कभी माफ नहीं करेगा।






Monday 12 October 2015

इंदौर : जल्लाद से कम नहीं अफसर और डाक्टर !

रात के दो बज रहे हैं, कुछ देर पहले ही आफिस से आया हूं, नींद नहीं आ रही है, लेकिन मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं, वजह !  इंदौर में एक ऐसा हादसा जिसने कम से कम मुझे तो बुरी तरह झकझोर कर रख ही दिया है। पूरी घटना की चर्चा करूं,  इसके पहले आपका इतना जानना जरूरी है कि एक गरीब सड़क दुर्घटना में घायल हो गया, जब वो अस्पताल पहुंचा तो यहां डाक्टर इस घायल मजदूर के इलाज में कम उसके अंगदान करने पर ज्यादा रूचि लेते रहे।  इतना ही नहीं पर्दे के पीछे शहर में तैनात एक बड़ा हुक्मरान लगातार प्रगति पूछता रहा कि परिवार के लोग अंगदान खासतौर पर लिवर दान के लिए तैयार हुए या नहीं ? काफी मान मनौव्वल करके आखिर में परिवार को अंगदान के लिए डाक्टरों ने तैयार कर ही लिया और इस मरीज को " ब्रेनडेड " बताकर इसका लिवर, दोनों किडनी, दोनों आंखे और स्किन निकाल ली। इसके बाद इस परिवार के साथ जो हुआ उससे अफसर, अस्पताल और डाक्टरों की हैवानियत सामने आती है। परिवार को शव सौंपने के लिए पहले इलाज का बिल चुकाने का दबाव बनाया गया, 17 हजार जमा कराने के बाद ही शव दिया गया। अस्पताल से एंबुलेंस के जरिए ये शव जब मरीज के  गांव पहुंचा तो ड्राईवर शव उतारने के पहले किराए के 2800 रुपये वसूल लिए, तब लगता है कि मध्यप्रदेश में वो सब भी होता है जो यूपी और बिहार के अफसर भी करने के पहले सौ बार सोचते हैं। सच तो ये कि इन डाक्टरों और अफसरों को जल्लाद कहूं तो भी गलत नहीं है।


चलिए अब सीधे मुद्दे पर बात करते हैं। इंदौर से लगभग 150 किलोमीटर दूर खरगोन में सोमवार 5 अक्टूबर को सड़क दुर्घटना में एक मजदूर घायल हो गया, लोगों ने उसे वहां के जिला सरकारी अस्पताल पहुंचा दिया। डाक्टर ने प्राथमिक चिकित्सा के बाद परिवार से कहाकि अस्पताल की सीटी स्कैन मशीन खराब है, आप बाहर से सीटी स्कैन करा लें । ये सुनकर परिवार के लोग एक दूसरे की ओर देखने लगे, क्योंकि उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वो बाहर से सीटी स्कैन करा सकें। इस पर डाक्टर ने घायल मजदूर को ये कहकर इंदौर रैफर कर दिया कि यहां सुविधाएं नहीं है। परेशान परिजन रात करीब नौ बजे घायल मजदूर को वहां से लेकर इंदौर के लिए निकल जाते हैं।


असल कहानी यहां से शुरू होती है। तीन घंटे के रास्ते में परिवार के लोग इंदौर में रहने वाले अपने एक दूर के रिश्तेदार से बात करते हैं, जो एक साधारण सी नौकरी करता है। अंदरखाने इनकी क्या बातचीत होती है ये यही लोग बता सकते हैं, लेकिन हैरानी इस बात की हुई रात १२ बजे जब ये मरीज को लेकर इंदौर पहुंचते हैं तो वो यहां के सरकारी अस्पताल नहीं जाते, बल्कि सीधे एक प्राईवेट पांच सितारा अस्पताल में मरीज को ले जाते हैं। जबकि इस अस्पताल में मरीज को बाद में अंदर किया जाता है, पहले हजारों रुपये अंदर किए जाते हैं। अस्तपाल इस मामले में काफी बदनाम भी है, ज्यादातर लोग यहां से असंतुष्ट होकर ही जाते हैं। खैर मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि जिस परिवार के पास तीन घंटे पहले सीटी स्कैन कराने के पैसे नहीं थे, अचानक ऐसी कौन सी लाटरी लगी कि वो इस लुटेरे साँरी पांच सितारा अस्पताल में आ गए। खैर यहां उनका रिश्तेदार इंतजार कर रहा था, उसने तुरंत 10 हजार रुपये जमा किए और घायल मजदूर को अस्पताल वालो ने अंदर कर लिया।


परिवार के लोगों को रात भर नहीं पता चला कि उसके मरीज का क्या हाल है, क्या इलाज चल रहा है, मरीज कोई रिस्पांड दे भी रहा है या नहीं। कुछ भी परिवार के लोगों से चर्चा नहीं हुई, हां एक दो बार ये जरूर कहा गया कि इलाज चल रहा है। अरे भाई अस्पताल है तो इलाज तो होगा ही ना, ये क्या बात हुई ? अब सुबह हो चुकी थी यानि मंगलवार का दिन और सुबह के लगभग साढे सात ही बजे होंगे कि दिल्ली से दो डाक्टर इंदौर आ गए । इन डाक्टरों ने मजदूर के परिवार को बुलाया और बात शुरू की। जानते हैं क्या बात चीत की गई ?  बात ये कि कम उम्मीद है कि आपका मरीज ठीक हो, अगर ऐसा है तो आप लिवर दान कर दीजिए,  किसी की जान बच जाएगी। वेवजह इंतजार करना ठीक नहीं है। सुबह साढे सात बजे ये बात शुरू हुई और हर घंटे दो घंटे पर यही बात दुहराई जाने लगी। मंगलवार को शाम होते होते अस्पताल के भी डाक्टर अंगदान पर जोर देने लगे। शर्मनाक ये कि लिवर लेने के लिए इंदौर का एक बडा हुक्मरान भी अस्पताल पहुंच गया, पर उन्होंने मरीजों से सीधे बात नहीं की,  डाक्टरों के जरिए ही दबाव बनाते रहे। बहरहाल जो कुछ भी हुआ हो अगले दिन सुबह ही शहर में हलचल तेज हो गई । इस पांच सितारा अस्पताल से एयरपोर्ट तक " ग्रीन कांरीडोर " घोषित कर दिया गया । ग्रीन काँरीडोर मतलब एंबुलेंस निकले तो हर वाहन को रोक दिया जाए।


ग्रीन कारीडोर की खबर शहर में फैलते ही मीडिया सक्रिय हुई तो पता चला कि एक घायल मजदूर को डाक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया है और अब उस मजदूर के परिवार की इच्छानुसार उसका अंगदान किया जाना है। मजदूर का लिवर दिल्ली जा रहा है, जबकि किडनी और आँख, स्किन इंदौर में इस्तेमाल किया जाएगा। यहां एक बात बताना जरूरी है, चमत्कार को मेडिकल साइंस भी पूरी तरह नकारता नहीं है, उसे भी लगता है कि कई बार चमत्कार होते हैं और ऐसे मरीज ठीक हो जाते हैं जिनकी उन्हें बिल्कुल उम्मीद नहीं होती है। अब देखिए यहां तो रात में मरीज भर्ती हुआ और सुबह ही डाक्टर उसका लिवर और किडनी आंख सब मांगने लगे। इसके आगे का सच सुनेंगे तो डाक्टरों और अफसर पर थूकने लगेंगे। बताया तो ये भी जा रहा है कि कुछ दिन पहले एक एक्सीडेंट हुआ था, उसके घायल का भी लिवर लेने का विचार हो रहा था, लेकिन मरीज दगा दे गया और उसने समय से पहले ही दम तोड़ दिया, इसलिए इस बार डाक्टर कोई रिश्क नहीं लेना चाहते थे।


जब तक डाक्टरों के हाथ लिवर नहीं लगा था, तब तक तो परिवार वालों को तरह तरह के लालच दिए जा रहे थे। मरीज के भाई से कहा गया कि उसके अंधे बेटे को निशुल्क आँख लगा दी जाएगी, वो देखने लगेगा। ऐसे ही ना जाने क्या क्या दिलासा दिलाया गया, लेकिन जैसे ही लिवर लेकर डाक्टरों ने दिल्ली के लिए उडान भरी, यहां घंटो से डेरा डाले रहा अफसर सबसे पहले खिसक गया। अब अस्पताल ने परिवार वालों को शव दिए जाने के पहले इलाज का पैसा देने को कहा। बहरहाल उनका जो रिश्तेदार इँदौर में मौजूद था उसने कुछ इंतजाम कर  17 हजार रुपये जमा किए। तब जाकर बाँडी दी गई, लेकिन गांव पहुंचने पर शव को उतारने से पहले ड्राईवर अड गया और उसने 2800 रुपये ऐंठ लिए।


दो दिन बाद मीडिया में जब ये खबर आई कि अस्पताल ने अंगदान करने वाले के परिवार से ऐसा बर्ताव किया तो पहले अस्पताल प्रबंधन की ओर से कहा गया कि बिल तो सवा लाख के करीब था लेकिन सिर्फ  27 हजार ही लिया गया है, लेकिन मामला तूल पकड रहा था, इसे देखकर फिर अखबार के दफ्तरों को फोन कर कहा गया कि जो पैसा लिया गया है वो वापस कर दिया जाएगा। एक दिन खबर छपी तो इंदौर से भोपाल तक डाक्टर, अफसर और नेताओं सभी के पसीने छूट गए। तुरंत एक अफसर मजदूर के गांव पहुंचा और रेडक्रास सोसाइटी की तरफ से अंगदान करने वाले परिवार को एक लाख रुपये का चेक दे आया। अगले दिन मुख्यमंत्री ने भी पांच लाख रुपये की घोषणा कर दी । मेरी समझ में नहीं आया कि ये सहायता है या फिर सौदा ?

बहरहाल अब मजदूर की मौत हो चुकी है, उसका अंतिम संस्कार भी हो चुका है, पर ये सवाल अभी भी बना हुआ है कि आखिर दिल्ली में किस बड़े आदमी को लिवर देने के लिए मजदूर की जान बचाने की कोशिश तक नहीं हुई और लिवर निकालने की डाक्टरों ने जल्दबाजी की। इंदौर के हुक्मरान ने तो नियम कायदे को भी ताख पर रख दिया और प्राईवेट अस्पताल के ओटी में पोस्टमार्टम करने के लिए सरकारी डाक्टरों को बुला लिया, जबकि नियमानुसार पोस्टमार्टम प्राईवेट अस्पताल में हो ही नहीं सकता। इससे भी लगता है कि कोई बडे नेता का रिश्तेदार होगा जिसे लिवर की जरूरत थी या फिर पैसे वाला। बहरहाल अब तड़के साढे तीन बजने वाले हैं, मन यही कह रहा है कि इँदौर का ये अफसर कहीं वाकई कातिल तो नहीं है ?


नोट :  मित्रों दिल को दहला देने वाली इस घटना ने मेरी तो नींद उड़ा दी है,  कहना सिर्फ इतना है कि ये वाकया हर आदमी तक पहुंचना चाहिए, जिससे मध्यप्रदेश और यहां के हुक्मरानों का असली चेहरा लोगों तक पहुंच सके । प्लीज ...